MUMBAI. शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत को 1 अगस्त को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की 4 दिन की कस्टडी में भेज दिया गया। उन्हें 31 अगस्त को 6 घंटे चली पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। राउत पर पात्रा चॉल जमीन घोटाले में संलिप्तता के आरोप हैं। इस बीच राउत ने दावा किया वे निर्दोष हैं और उन्हें फंसाया जा रहा है।
सबके अपने-अपने तर्क
राउत की गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित: वकील
संजय राउत के वकील एडवोकेट अशोक मुंदरगी ने कोर्ट से कहा कि संजय राउत की गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित है। वह दिल से जुड़ी बीमारी के मरीज हैं। उनकी सर्जरी भी हुई थी। इससे जुड़े कागजात कोर्ट के सामने पेश किए गए हैं।
ईडी के वकील की दलील
ईडी के वकील ने दलील दी कि गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के पूर्व निदेशक प्रवीण राउत ने एक पैसा भी निवेश नहीं किया। उन्हें 112 करोड़ रुपए मिले। जांच से पता चलता है कि संजय और वर्षा राउत के खाते में 1.6 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए थे। राउत और परिवार 1.6 करोड़ रुपए के लाभार्थी (Beneficiary) थे। ईडी के वकील एड हितेन वेनेगांवकर ने अदालत को बताया कि जांच से पता चला है कि उस पैसे (1.6 करोड़ रु.) में से अलीबाग के किहिम बीच पर एक जमीन का टुकड़ा खरीदा गया था। एक प्लॉट सपना पाटकर के नाम पर लिया गया था। जांच में यह भी पता चला कि प्रवीण राउत संजय राउत के फ्रंट मैन थे। ईडी के वकील ने दी दलील दी कि राउत को 4 बार तलब किया गया, लेकिन वह सिर्फ एक बार एजेंसी के सामने पेश हुए। इस दौरान राउत ने सबूतों और अहम गवाहों से छेड़छाड़ की कोशिश की।
केंद्र पर बरसे उद्धव
राउत के परिवार से मिलने के बाद पूर्व सीएम उद्धव ने कहा कि देश में बदला लेने की राजनीति चल रही है। हमें अपने विरोधियों को जवाब देना होगा। जो भी हमारे खिलाफ बोलेगा, उसे बताना होगा कि हम क्या हैं? केंद्रीय एजेंसियों के जरिए हमें परेशान किया जा रहा है। जो भी उनका (केंद्र सरकार) विरोध कर रहा है, उसे जेल में डाला जा रहा है। जो झुक जाए, वो शिवसैनिक नहीं हो सकता। फिल्म 'पुष्पा' में एक डायलॉग है- 'झुकेगा नहीं'। असली शिवसैनिक जो झुकेगा नहीं, वो संजय राउत हैं। जो कहते थे, वो झुकेंगे नहीं, आज वो सब तरफ हैं। राउत ही सच्चे शिवसैनिक हैं।
संजय राउत का सफरनामा
संजय राउत आज महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा नाम हैं, लेकिन 80 के दशक में वे मुंबई में क्राइम रिपोर्टिंग करते थे। लोकप्रभा मैगजीन से करियर शुरु करने वाले राउत को अंडरवर्ल्ड रिपोर्टिंग का एक्सपर्ट माना जाता था। दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन और अंडरवर्ल्ड पर लिखी उनकी रिपोर्ट्स मुंबई में चर्चा का केंद्र हुआ करती थीं। वे रिपोर्टिंग की दुनिया में बढ़ते गए और बालासाहेब ठाकरे की नजरों में आ गए।
राउत का मातोश्री पर आना-जाना बढ़ा और शिवसेना प्रमुख ने सिर्फ 29 साल के राउत को शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' का कार्यकारी संपादक बनने का ऑफर दे डाला। शिवसेना प्रमुख के इस ऑफर को राउत ठुकरा नहीं सके और करीब 30 साल से वे ही इसके कार्यकारी संपादक हैं।
बालासाहेब के जाने के बाद वे उद्धव ठाकरे के करीब आए। 2019 में जिस तरह से उद्धव ने कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बनाई, उसके बाद से राउत को शिवसेना का 'थिंक टैंक' कहा जाने लगा।
दाऊद इब्राहिम को लगाई थी डांट!
राउत के बारे में कहा जाता है कि वे क्राइम रिपोर्टर होने के बावजूद ना तो कभी पुलिस स्टेशन गए और ना ही कभी किसी खबर को लेकर पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की। क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले राउत की खबरों का सूत्रधार हुआ करता था- दाऊद इब्राहीम। चर्चा यह भी है कि दाऊद कई बार राउत को खबरें देने के लिए एक्सप्रेस टॉवर आया करता था। दोनों यहां की कैंटीन में बैठकर बातचीत करते थे। यह बात 1993 ब्लास्ट में दाऊद का नाम आने से कई साल पहले की है। 16 जनवरी 2020 को पुणे में एक कार्यक्रम में संजय राउत ने खुद यह कबूला था कि दाऊद से उनकी मुलाकात हुई थी। उन्होंने कहा था, 'दाऊद इब्राहिम को मैंने देखा था, उससे बात भी की है। एक बार तो मैंने उसे डांट भी लगाई थी।'
और राउत बन गए बालासाहेब की आवाज
सामना से जुड़ने के बाद संजय राउत ने अखबार में कई बड़े बदलाव किए। संपादकीय में ऐसी बातें छपने लगीं, जो शिवसेना की विचारधारा से जुड़ी हुई थीं और धीरे-धीरे यह अखबार बालासाहेब ठाकरे की आवाज बन गया। वे संपादकीय को बाल ठाकरे की भाषा शैली में लिखने लगे। संपादकीय तो राउत लिखते थे, लेकिन उसे पढ़ने के बाद लोग समझते थे कि बाल ठाकरे ही लिख रहे हैं। सामना में यह प्रयोग काफी लोकप्रिय हुआ और आज भी अखबार के संपादकीय को शिवसेना का ऑफिशियल वर्जन माना जाता है।
ऐसे हुई पॉलिटिक्स में एंट्री
सामना से जुड़ने के बाद राउत बालासाहेब के बेहद करीब आ गए और धीरे-धीरे शिवसेना की अंदरूनी पॉलिटिक्स का हिस्सा बन गए। हालांकि अंबेडकर कॉलेज से B.Tech की पढ़ाई करने वाले राउत शिवसेना की स्टूडेंट यूनिट में सक्रिय थे।
राजनीति में उनकी सोच और दूरदर्शिता को देखते हुए बाल ठाकरे ने उन्हें शिवसेना का 'उप नेता' बना दिया। इसके बाद पार्टी बड़ी हुई और वे पहली बार 2004 में शिवसेना के टिकट से राज्यसभा पहुंचे। यहां वे शिवसेना के लीडर भी थे। राउत संसदीय और गृह विभाग से जुड़ी कमेटी के मेंबर भी रहे हैं। 2005 से 2009 के बीच राउत सिविल एविएशन मंत्रालय की कंसल्टेंसी कमेटी के सदस्य भी थे।
महाविकास अघाड़ी बनाने में राउत की बड़ी भूमिका
राउत दूसरी बार 2010, फिर 2016 में और अब 2022 में लगातार शिवसेना की ओर से राज्यसभा के सांसद हैं। लगातार चार बार सांसद रह चुके संजय सक्रिय तौर पर 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद एक्टिव हुए। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA), यानी शिवसेना, कांग्रेस और NCP की संयुक्त सरकार बनवाने में संजय राउत का बड़ा हाथ था।
शिवसेना में संजय राउत ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी महाराष्ट्र की लगभग हर पार्टी में अच्छी पैठ थी। वे NCP चीफ शरद पवार के बेहद करीब माने जाते हैं। यही वजह है कि MVA निर्माण का पूरा जिम्मा उद्धव ठाकरे ने संजय राउत को ही दे दिया था। उद्धव ठाकरे के CM रहने के दौरान राउत तीनों दलों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करते रहे।