New Delhi. वर्तमान में देश बड़े परिवर्तन के दौर में है। बार-बार चुनाव से होने वाले खर्च को बचाने के लिए ‘एक देश-एक चुनाव’ की चर्चा के बीच केंद्र सरकार ने ‘एक देश-एक वोटर लिस्ट’ लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार को अब रामनाथ कोविंद कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है। ‘एक देश-एक चुनाव’ पर विचार और सुझाव के लिए बनाई गई ‘कोविंद कमेटी’ को एक देश-एक वोटर लिस्ट लागू करने के तरीकों पर भी सुझाव देना है। ऐसे में संभावना है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह लागू हो सकता है।
क्या है सरकार का रोडमैप?
मोदी सरकार ने तीनों स्तर (लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय) के चुनाव के लिए एक ही मतदाता सूची का रोडमैप तैयार किया है। इसमें सभी राज्यों को सहमत करने की योजना है। इसके लिए न सिर्फ निर्वाचन आयोग के मतदाता सूची तैयार करने के तरीके में बदलाव होगा, बल्कि राज्यों के चुनाव संबंधी कानून में भी परिवर्तन की जरूरत होगी। ऐसी कई बातों को लेकर मंथन जारी है।
किनकी शिफारिश पर हो रहा बदलाव
काफी समय पहले से लॉ कमीशन और चुनाव आयोग ‘एक देश-एक वोटर लिस्ट’ की सिफारिश कर चुके हैं। अगस्त 2023 में संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को राज्यों और सभी दलों से परामर्श कर संवैधानिक प्रावधानों व राज्यों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इसे लागू करने की योजना बनाने को कहा था। एक महीने से भी कम समय में इसको लेकर कवायद शुरू हो गई है। ऐसे में संभावना है कि वर्ष के अंत तक इस पर मुहर लग सकती है।
क्या कहता है संविधान
मौजूदा स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 325 के तहत देश में एक मतदाता सूची लागू करना केंद्र सरकार के दायरे से बाहर है। अभी लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय के लिए अलग सूची होती है। ऐसे में नई पहल में कितना वक्त लगेगा, यह अभी तय नहीं है।
चुनाव के प्रकार और मतदाता सूची का अधिकार
भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के जिम्मे लोकसभा और विधानसभा चुनाव
है, जबकि नगर निगम, नगर पालिका परिषद और ग्राम पंचायत जैसे स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग के दायरे में आते हैं। दोनों निर्वाचन एजेंसियों को संविधान ने अपनी मतदाता सूची बनाने का अधिकार दिया है।
कैसे तैयार होती है सूची
भारत निर्वाचन आयोग के पोलिंग स्टेशन की सीमाएं स्थानीय निकाय के वार्ड और पंचायतों की सीमाओं से मेल खाएं, यह जरूरी नहीं है। राज्य निर्वाचन आयोग आमतौर पर ईसीआई की मतदाता सूची को ड्राफ्ट की तरह इस्तेमाल करते हैं। वे उसमें अपने वार्ड चिह्नित करते हैं और अपना डेटा शामिल करके दावे-आपत्तियां बुलाते हैं। फिर अंतिम सूची जारी की जाती है।
नया प्रस्ताव क्या है?
नए प्रस्ताव में राज्यों की जिम्मेदारी बढ़ सकती है। जिस तरह संसदीय सीट के दायरे की विधानसभा सीटों की सीमाएं उसी लोकसभा सीट की सीमा के दायरे में रहती हैं, ठीक उसी तरह वार्ड और पंचायतों की सीमाएं भी विधानसभा सीट के दायरे में ही रखी जाएं। इसके लिए राज्यों का चुनाव कानून बदलना होगा। ऐसे में राज्यों की सहमति भी बहुत जरूरी है।
एक मतदाता सूची में कहां दिक्कत?
एक देश-एक लिस्ट को लेकर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने बताया है कि 2002 में संविधान में संशोधन कर यह बंदिश लगा ली गई थी कि 2026 के बाद जनगणना के आंकड़े आने तक परिसीमन नहीं किया जाएगा, लेकिन राज्यों के अधिनियम में नगर पालिका व पंचायत के लिए यह बंदिश नहीं लगाई गई थी। एक मतदाता सूची के लिए नगर पालिका व पंचायत अधिनियम में भी यह बंदिश लगानी होगी।
योग्यता तारीख... केंद्र और राज्यों की तारीखें अलग-अलग
देश में दो स्तर पर मतदान की योग्यता की उम्र को लेकर तारीख तय कर रखी है।
राज्य ईसीआई की सूची का इस्तेमाल योग्यता तारीख के चलते नहीं कर पाते हैं। राज्यों की सूची में शामिल होने की योग्यता तारीख 1 जनवरी है यानी 2 जनवरी या उसके बाद उम्र 18 साल पूरी हुई है तो व्यक्ति को एक साल इंतजार करना पड़ता है, जबकि केंद्र सरकार ने कानून संशोधन कर योग्यता की 4 तारीखें तय कर दी हैं, ये 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर हैं। ऐसे में इसको लेकर भी बदलाव करना पड़ सकता है।
वर्तमान में राज्यों में यह है मतदाता सूची
1 - मप्र, उप्र, असम, उत्तराखंड, ओडिशा, केरल, अरुणाचल, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर भारत निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची का इस्तेमाल नहीं करते हैं। वे अपनी अलग सूची बनाते हैं।
2 - तमिलनाडु, चंडीगढ़, दिल्ली व अंडमान-निकोबार भारत निर्वाचन आयोग की ताजा मतदाता सूची, सिक्किम व गुजरात भारत निर्वाचन आयोग की अंतिम मतदाता सूची और बाकी 17 राज्य भारत निर्वाचन आयोग की ड्राफ्ट मतदाता सूची का इस्तेमाल करते हैं।
एक साथ चुनाव : 10 लाख करोड़ रुपए तक आ सकता है खर्च
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के प्रमुख और विश्लेषक एन. भास्कर राव का आकलन है कि लोकसभा से लेकर विधानसभा और स्थानीय निकाय तक सभी चुनाव साथ कराए जाएं तो भी कुल खर्च 10 लाख करोड़ रुपए तक आ सकता है।
कम होगा या बढ़ेगा खर्च?
1- लोकसभा : 2024 के लोकसभा चुनाव पर 1.20 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान जताया जा रहा है।
2- विधानसभा : देश में विधानसभा चुनाव भी साथ हों तो तीन लाख करोड़ रुपए खर्च हो सकते हैं। कुल विधानसभा सीटें 4500 हैं।
3- निकाय : नगरीय निकाय के चुनाव साथ हों तो 1 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च होंगे। नगरीय निकाय की 500 सीटें हैं।
4- परिषद : जिला परिषद (650 सीटें), मंडल (7000 सीटें) और ग्राम पंचायत (2.5 लाख सीटें) भी साथ हों तो 4.30 लाख करोड़ रुपए खर्च हो सकते हैं।
और भी खर्च हैं...
मतदान अवधि एक हफ्ते हो और पार्टियां आचार संहिता का सख्ती से पालन करें तो यह खर्च घटकर 3 से 5 लाख करोड़ रुपए रह सकता है। एन. भास्कर राव के अनुसार, सिर्फ एक साथ चुनाव से ही खर्च कम नहीं होगा। इसमें आदर्श आचार संहिता का सख्ती से पालन अहम भूमिका निभाएगा।