नई दिल्ली. 10 मार्च के नतीजों में स्थिति साफ हो गई है। यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बन रही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी और गोवा में बीजेपी को जीत मिली है। वहीं, मणिपुर में बीजेपी जीत की ओर बढ़ती दिख रही है। इन पांच राज्यों में 690 विधानसभा सीट (उत्तर प्रदेश:403; पंजाब:117, उत्तराखंड:70, मणिपुर: 60 और गोवा: 40) हैं। इन राज्यों के रिजल्ट से राज्यसभा की तस्वीर बदलेगी, क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव से पहले 73 राज्यसभा सीट को भरा जाना है। इनमें से 19 सीट चुनावी राज्यों से है। इसके साथ ही राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों का इलेक्टोरल कॉलेज भी प्रभावित होगा। इसकी वजह है कि इलेक्टोरल कॉलेज में इन राज्यों के विधायक भी वोट करेंगे। पंजाब, यूपी और उत्तराखंड के जिस तरह से समीकरण बदलते दिख रहे हैं। इससे साफ है कि आने वाला राष्ट्रपति चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है।
राज्यसभा की तस्वीर बदलेगी: राज्यसभा की 75 सीट इस साल खाली होने वाली है। इनमें से 73 सीट को राष्ट्रपति चुनावों से पहले भरा जाएगा। इसमें 66 सांसद राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालेंगे। जबकि 7 सदस्य नॉमिनेटेड होंगे। इन पांच चुनाव राज्यों से 19 सीट भरी जाएगी। इसमें यूपी से 11, पंजाब से 7 और उत्तराखंड से 1 सीट है। फिलहाल की स्थिति में यूपी में 5 सीट बीजेपी के पास है। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीट कम होती दिख रही है। इस वजह से बीजेपी के खाते की कुछ सीट सपा के पास जा सकती है। वहीं, पंजाब में जिस तरह आप की लहर है, उससे इन 7 सीट की तस्वीरें बदलेगी। बाकी 54 राज्यसभा सीटें महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, झारखंड, केरल, कर्नाटक, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से है।
यूपी की वोट वैल्यू सबसे ज्यादा: राष्ट्रपति चुनाव में दोनों सदनों के 776 सांसद वोट करेंगे। इनके अलावा राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों के 4,120 विधायक भी वोटिंग में हिस्सा लेंगे। वोटिंग में विधायकों के वोट की वैल्यू जनसंख्या के लिहाज से होती है। इस तरह देखा जाए तो उत्तर प्रदेश के हर विधायक के वोट की वैल्यू 208 है, जो देश में सबसे अधिक है। यानी यूपी के विधायकों के वोट की कुल वैल्यू 83,824 है। यह वैल्यू आबादी के अनुपात में तय होती है। इसके बाद महाराष्ट्र (50,400) और पश्चिम बंगाल (44,394) का नंबर आता है। इस वजह से यूपी के विधायक राष्ट्रपति चुनावों में भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। बता दें कि इलेक्टोरल कॉलेज 10,98,903 वोट्स का है। राष्ट्रपति बनने के लिए 5,49,452 वैल्यू वोट्स चाहिए होते हैं।
बीजेपी का उम्मीदवार राष्ट्रपति बनना आसान नहीं होगा: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी के पक्ष में 2017 की तरह नतीजे रहते हैं तो उसके पास निर्णायक इलेक्टोरल कॉलेज हो सकता है। 2017 में एनडीए के पास अच्छी बढ़त थी क्योंकि बीजेपी और उसके गठबंधन ने यूपी में 403 में से 325 और उत्तराखंड में 70 में से 57 सीटों पर जीत हासिल की थी। लोकसभा में बीजेपी के सांसदों की संख्या अच्छी-खासी है। ऐसे में उसे अच्छी बढ़त मिल गई थी। 2017 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी बीजेपी के पास थे। इस वजह से बीजेपी के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की जीत आसान रही थी। इस बार ऐसा नहीं है।
फिर कौन बन सकता है राष्ट्रपति? पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली में क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारें हैं। इन 10 राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है। वहीं, मध्य प्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस के विधायक करीब-करीब बराबर ही है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं। अगर कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां मिलकर किसी संयुक्त उम्मीदवार को सामने लाती है, उसकी जीत की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। HD देवीगौड़ा से शरद पवार तक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। राष्ट्रपति चुनावों के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के मुख्यमंत्रियों की लामबंदी भी शुरू हो गई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी तृणमूल कांग्रेस को पूरे देश में फैलाना चाहती है। आप ने दिल्ली से निकलकर पंजाब में भी सरकार बना ली है।
साउथ का गणित: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यूं तो महत्वपूर्ण कानूनों पर केंद्र की मोदी सरकार का समर्थन करते रहे हैं, पर उन्हें भी राज्य में तेजी से बढ़ने के ख्वाब देख रही BJP का खतरा तो है ही। राव ने भी पिछले दिनों शिवसेना चीफ और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी। केसीआर की तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन के अलावा ममता से भी मीटिंग फिक्स है। एचडी देवीगौड़ा को राव का सपोर्ट मिल सकता है। महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में 200 से अधिक लोकसभा सीटें हैं। साथ ही अगले राष्ट्रपति चुनावों के इलेक्टोरल कॉलेज की आधी वैल्यू इन्हीं राज्यों से है। एनसीपी चीफ शदर पवार भी तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्रसमिति, वायएसआर सीपी, माकपा और भाकपा समेत अन्य पार्टियों का समर्थन जुटा सकते हैं। इससे भाजपा की राह और मुश्किल हो जाएगी। अगर लोकल पार्टियां एकजुट हुई तो बीजेपी का उम्मीदवार जीतना बेहद मुश्किल है।