96 साल का हुआ संघ: विभाजन की टीस अब तक है, पाक, चीन का रवैया नहीं बदला- भागवत

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96 साल का हुआ संघ: विभाजन की टीस अब तक है, पाक, चीन का रवैया नहीं बदला- भागवत

नागपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के 96वें साल पूरे हो गए। 1925 में दशहरे के दिन ही इसकी स्थापना हुई थी। हर साल दशहरे के दिन नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में शस्त्र पूजा होती है। 15 अक्टूबर को इस मौके पर सरसंघचालक (संघ प्रमुख) मोहन भागवत ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि विभाजन की टीस अब तक नहीं गई है। हमारी पीढ़ियों को इतिहास के बारे में बताया जाना चाहिए जिससे की आने वाली पीढ़ी भी अपने आगे की पीढ़ी को इस बारे में बताए। पाकिस्तान और चीन के रवैये में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

जनसंख्या दर में अंतर के चलते बढ़ी मुस्लिम आबादी

भागवत के मुताबिक, 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर (Population Growth Rate) में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88% से घटकर 83.8% रह गया। वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8% से बढ़कर 14.24% हो गया है। जनसंख्या नीति होनी चाहिए। इस बारे में एक बार फिर विचार करना चाहिए। अभी भारत युवाओं का देश है। 30 साल के बाद ये सब बूढ़े बनेंगे, तब इन्हें खिलाने के लिए भी हाथ लगेंगे। और उसके लिए काम करने वाले कितने लगेंगे, इन दोनों बातों पर विचार करना होगा।

स्वतंत्रता रातों-रात नहीं मिली

भागवत ने ये भी कहा, ये हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है। 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था। हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली। कालांतर में सुबह की कल्पना ढीली पड़ी, उसके कारण स्वतंत्रता होना, अपना स्व क्या है, ये पता नहीं। स्व को भूल गए तो स्वजनों को भी भूल गए। जो विविधता (Diversity) थी, उसकी चौड़ी खाइयां बन गईं, हमको बांटने वाली। इसका लाभ विदेशियों ने लिया और जिस दिन हम स्वतंत्र हुए उस दिन देश का विभाजन हुआ। जिस शत्रुता के चलते विभाजन (Partition) हुआ, उसकी पुनरावृत्ति (Repeat) नहीं करनी है।

आपस में मेल-जोल बढ़ाना होगा

संघ प्रमुख ने कहा कि व्यवस्था बदलने के साथ-साथ या उसके पहले मन बदलना चाहिए। समाज के भेद बढ़ाने वाली भाषा नहीं चाहिए, जोड़ने वाली भाषा चाहिए। प्रेम को बढ़ाने वाली भाषा होनी चाहिए। मन से किसी के पास जाने के लिए तो बातचीत करनी पड़ेगी। इसलिए पर्व-त्योहारों में आपस का मेलजोल, मिल जुलकर पुण्य तिथियां, जयंतियां मनानी चाहिए। पर्व-त्योहारों पर एक-दूसरे के घर जाना, मिलना, इस प्रकार के काम हों। ये काम स्वंयसेवक कर रहे हैं। 

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