चुनावी घोषणाओं पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राजस्थान, मध्यप्रदेश और केंद्र सरकार को नोटिस, चुनाव आयोग से भी मांगा जवाब

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Pratibha Rana
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चुनावी घोषणाओं पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राजस्थान, मध्यप्रदेश और केंद्र सरकार को नोटिस, चुनाव आयोग से भी मांगा जवाब

New Delhi. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुफ्त की रेवड़ी बांटने जैसी घोषणाओं और योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, राजस्थान, मध्य प्रदेश सरकार और आरबीआई को नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत ने इनसे चार सप्ताह में जवाब मांगा है। कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने नई जनहित याचिका को पहले से चल रही अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है। सभी मामलों की सुनवाई अब एक साथ होगी।

करदाताओं के पैसों का हो रहा दुरुपयोग

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जनहित याचिका पर केंद्र, चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक को नोटिस भी जारी किया। इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि मतदाताओं को लुभाने के लिए दो राज्य सरकारों द्वारा करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग किया जा रहा है।

जनवरी 2022 में बीजेपी नेता ने दायर की थी जनहित याचिका

बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय जनवरी 2022 में फ्रीबीज के खिलाफ एक जनहित याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। अपनी याचिका में उपाध्याय ने चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों के वोटर्स से फ्रीबीज (मुफ्त) या मुफ्त उपहार के वादों पर रोक लगाने की अपील की। इसमें मांग की गई है कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियां की मान्यता रद्द करनी चाहिए।

ये देश को 'भविष्य की आर्थिक आपदा' की ओर ले जाएगा

केंद्र सरकार ने अश्विनी से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से फ्रीबीज की परिभाषा तय करने की अपील की। केंद्र ने कहा कि अगर फ्रीबीज का बंटना जारी रहा, तो ये देश को 'भविष्य की आर्थिक आपदा' की ओर ले जाएगा।

फ्रीबीज के मुद्दे से चुनाव आयोग ने पल्ला झाड़ा

11 अगस्त को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा था कि फ्रीबीज पर पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है। चुनावों से पहले फ्रीबीज का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला होता है। इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग करना होगा। कोर्ट ही तय करें कि फ्री स्कीम्स क्या हैं और क्या नहीं। इसके बाद हम इसे लागू करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट में अब तक क्या हुआ ?

पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुआई में फ्रीबीज मामले की सुनवाई 3 सदस्यीय बेंच ने अगस्त 2022 में शुरू की थी। इस बेंच में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थे।

3 अगस्त 2022

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्रीबीज मुद्दे पर फैसले के लिए एक समिति गठित की जानी चाहिए। इसमें केंद्र, राज्य सरकारें, नीति आयोग, फाइनेंस कमीशन, चुनाव आयोग, RBI, CAG और राजनीतिक पार्टियां शामिल हों।

11 अगस्त 2022

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गरीबों का पेट भरने की जरूरत है, लेकिन लोगों की भलाई के कामों को संतुलित रखने की जरूरत है, क्योंकि फ्रीबीज की वजह से इकॉनमी पैसे गंवा रही है। हम इस बात से सहमत हैं कि फ्रीबीज और वेलफेयर के बीच अंतर है।

17 अगस्त 2022

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को वोटर्स से वादे करने से नहीं रोका जा सकता...अब ये तय करना होगा कि फ्रीबीज क्या है। क्या सबके लिए हेल्थकेयर, पीने के पानी की सुविधा...मनरेगा जैसी योजनाएं, जो जीवन को बेहतर बनाती हैं, क्या उन्हें फ्रीबीज माना जा सकता है?' कोर्ट ने इस मामले के सभी पक्षों से अपनी राय देने को कहा।

23 अगस्त 2022

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि आप सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाते? राजनीतिक दलों को ही इस पर सबकुछ तय करना है।

26 अगस्त 2022

पूर्व सीजेआई एनवी रमना ने मामले को नई बेंच में रैफर कर दिया। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि कमेटी बनाई जा सकती है, लेकिन क्या कमेटी इसकी परिभाषा सही से तय कर पाएगी। रमना ने ये भी कहा था कि इस केस में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

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