Bhopal. मध्य प्रदेश में उमा भारती एक बार फिर अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल (2014-19) में मंत्री रहीं उमा ने 2019 में चुनाव ही नहीं लड़ा। इस समय वे ना तो विधायक हैं और ना ही सांसद। मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले उमा अपना कद और हैसियत पाना चाहती हैं। पहले उन्होंने मध्य प्रदेश में शराबबंदी का मुद्दा उठाया। जब बात नहीं बनी तो वे मध्य प्रदेश में रायसेन स्थित सोमेश्वर धाम मंदिर पहुंचीं और पूजा की। बीजेपी का मंदिरों से क्या नाता रहा, समय-समय पर इसे आंदोलन कैसे बनाया गया, आइए जानते हैं....
सबसे पहले बात सोमनाथ मंदिर की...
गुजरात के सौराष्ट्र के प्रभास पाटन में सोमनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। सोमनाथ मंदिर को विदेशी आक्रांताओं ने क्षति पहुंचाई और हर बार इसका पुनर्निमाण किया गया।
वर्तमान सोमनाथ मंदिर का निर्माण गुजरात की चालुक्य वास्तुकला शैली में 1951 में किया गया है। चालुक्य वास्तुकला शैली उत्तर भारत की मंदिर निर्माण नागर शैली का ही एक प्रकार है। प्राचीन ऐतिहासिक शिलालेखों के अनुसार, सोमनाथ में पहले शिव मंदिर के स्थान के बारे में अब जानकारी नहीं है।
सोमनाथ में दूसरा शिव मंदिर वल्लभी के यादव राजाओं ने 649 ईसवी में बनवाया गया था, इसे 725 ईसवी में सिंध के गवर्नर अल-जुनैद ने नष्ट कर दिया। बाद में गुर्ज- प्रतिहार वंश के राजा नागभट्ट द्वितीय ने 815 ईसवी में तीसरी बार शिव मंदिर का निर्माण किया गया। इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया। नागभट्ट द्वारा सौराष्ट्र में सोमनाथ मंदिर के दर्शन का ऐतिहासिक प्रमाण भी मिलता है।
चालुक्य राजा मूलराज ने 997 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 1025-26 ईसवी में सोमनाथ मंदिर को गजनी के तुर्क शासक महमूद गजनवी ने तोड़ दिया। महमूद ने मंदिर से करीब 2 करोड़ दीनार लूट कर ज्योतिर्लिंग को तोड़ दिया।
महमूद के हमले के बाद राजा कुमारपाल ने 1169 ईसवी में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात विजय के दौरान 1299 ईसवी में इसे फिर तोड़ा गया। 1308 में सौराष्ट्र के राजा महिपाल ने इसका पुनर्निर्माण कराया गया। 1395 में इस मंदिर को एक बार फिर गुजरात के गवर्नर जफर खान ने नष्ट कर दिया। गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा (शासक 1458-1511) द्वारा भी इसे अपवित्र किया गया। सोमनाथ मंदिर को अंतिम बार 1665 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने नष्ट किया था।
सरदार पटेल ने कराया पुनर्निर्माण
वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1951 में करवाया। 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था। जूनागढ़ रियासत को भारत का हिस्सा बनाने के बाद तत्कालीन भारत के गृहमंत्री सरदार पटेल ने जुलाई 1947 में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया था।
सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव लेकर सरदार पटेल महात्मा गांधी के पास गए थे। गांधी जी ने प्रस्ताव पर ना केवल अपना आशीर्वाद दिया, बल्कि जनता से धन जुटाकर मंदिर निर्माण का सुझाव दिया था। बाद में सरदार पटेल के निधन के बाद मंदिर पुनर्निर्माण का कार्य केएम मुंशी के निर्देशन में पूरा किया गया। मुंशी उस समय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री थे। इस दौरान सरदार पटेल का निधन हो गया। मंदिर की ओर से तब राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को न्योता भेजा गया।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद से भारत देश के सेक्युलर होने की दुहाई देते हुए मंदिर के उद्घाटन समारोह में ना जाने को कहा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद नहीं माने और मंदिर के उद्घाटन में गए। वहां उन्होंने देश की पुरानी परंपरा और इस परंपरा को कायम रखने में मंदिरों के योगदान के बारे में भाषण भी दिया। उस वक्त भारतीय राजनीति में नेहरू और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बीच की इस तल्खी को खूब उछाला गया।
आधुनिक सोमनाथ मंदिर के डिजाइनर
सोमनाथ मंदिर के आर्किटेक्ट पद्मश्री प्रभाशंकर सोमपुरा थे। उत्तर भारत में सोमपुरा परिवार नागर शैली के मंदिरों के निर्माण और डिजाइन से चार पीढ़ियों से जुडा हुआ है। अयोध्या राम मंदिर मॉडल का भी निर्माण इन्हीं के पोते चंद्रकांत सोमपुरा ने ही किया है।
बीजेपी के केंद्र में कैसे आया मंदिर
सोमनाथ मंदिर बीजेपी की राजनीति के केंद्र में 1990 में आया। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक की रथयात्रा निकाली। बिहार में इस रथयात्रा को उस वक्त के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने रोक दिया और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन इसके बीजेपी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।
जब गुजरात राज्य अस्तित्व में आया तो सोमनाथ मंदिर जूनागढ़ जिले में था। 2013 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने राज्य में 7 नए जिलों को बनाने की मंजूरी दी थी। इन 7 जिलों में एक जिला था गिर सोमनाथ। इस जिले को जूनागढ़ से काटकर बनाया गया था।
बीजेपी और राम मंदिर आंदोलन
1980 में ही जनसंघ और जनता पार्टी के एक धड़े ने साथ आकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नींव रखी थी। अटल बिहारी वाजपेयी पहले अध्यक्ष थे और 1980 में शुरुआत से ही बीजेपी ने राम जन्मभूमि को मुद्दा बनाया था। असल में, जिस जगह विवादित ढांचा था, वहां 'अयोध्या राम जन्मस्थान की आजादी' को लेकर पहले आरएसएस का आंदोलन जारी था, जिसे बीजेपी ने बहुमत आधारित राजनीति में हिंदुत्व की धारणा से जोड़ा।
1989 के पालमपुर सम्मेलन में बीजेपी ने तय किया कि उसका मुख्य राजनीतिक एजेंडा 'राम जन्मभूमि को मुक्त करवाकर विवादित स्थान पर भव्य मंदिर बनवाना' होगा। हिंदुत्व के कट्टर चेहरे लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया। अगले ही साल यानी 1990 में आडवाणी ने अपनी सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा शुरू की। बीजेपी को जब इस आंदोलन से बड़े फायदे की उम्मीद थी, तभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई। बीजेपी के हिसाब से इस घटना से उसके राजनीतिक समीकरण बिगड़ गए और पार्टी 10वीं लोकसभा में 123 सांसदों के साथ रह गई। लेकिन यूपी में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और पहली बार बीजेपी सरकार बनी।
1996 और 1999 के चुनावों में बीजेपी को खासी कामयाबी मिलती दिखी और देश में 1999 में पहली बार पूरे कार्यकाल वाली बीजेपी सरकार बनी। दूसरी तरफ, राज्यों में मुलायम, मायावती और लालू जैसे नेताओं की राजनीति चमक रही थी। अब राम मंदिर मुद्दा बोतल से बाहर आया जिन्न बन चुका था और एक कानूनी लड़ाई में था। 2014 में नरेंद्र मोदी हिंदुत्व का नया चेहरा बनने में कामयाब हो चुके थे, लेकिन उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर से दूरी बनाए रखना ही ठीक समझा। पीएम रहते हुए कभी अयोध्या किसी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे मोदी ने यही कहा कि 'मंदिर का रास्ता कोर्ट से ही निकलेगा।' आखिरकार हुआ भी यही, जब 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। एक लंबी कानूनी और सियासी लड़ाई पर विराम लगा।
मथुरा के लिए भी सुनाई दिए सुर
यूपी में चुनाव से पहले मथुरा का मुद्दा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने जोरशोर से उठाया था। माना जा रहा है कि बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने का यह अगला अभियान हो सकता है। एक दिसंबर 2021 को केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट किया था- 'अयोध्या-काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, अब मथुरा की बारी है।' हालांकि, मथुरा मे पहले से एक विशाल मंदिर है, लेकिन केशव देव मंदिर कॉम्प्लेक्स से सटी हुई शाही ईदगाह को लेकर विवाद है। माना जाता है कि इसका निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने कराया था। अयोध्या के राम जन्मभूमि मामले की तरह यहां भी मथुरा कोर्ट में एक दीवानी मुकदमा चल रहा है। जिसमें मस्जिद को इस स्थान से हटाने की मांग की गई है।
उमा सोमेश्वर को कहां तक ले जाएंगी?
इधर, मध्य प्रदेश में 11 अप्रैल को पूर्व मुख्यमंत्री रायसेन के किले में स्थित सोमेश्वर महादेव के मंदिर पहुंचीं और पूजा की। मंदिर के पट पर ताले रहते हैं, इसलिए उमा ने बाहर से ही पूजा की। उमा ने ये भी कहा कि हम ताला नहीं तोड़ते। आगे बढ़ो, जोर से बोलो और राम जन्मभूमि का ताला खोलो, ये नारा था। ताला तोड़ो नारा नहीं था। ये ताला बहुत छोटा है। मेरे भी एक घूंसे से टूट जाएगा। हम मर्यादा में रहे हैं। मैं अन्न त्याग कर रही हूं, जब तक ये ताला नहीं खुलेगा।
ये है सोमेश्वर धाम का इतिहास
1543 तक यह स्थान मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित रहा। इसके बाद रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह सूरी ने हरा दिया। उसके शासनकाल में यहां से शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी गई, लेकिन गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति समेत अन्य चिह्न स्थापित रहे। इससे इसके मंदिर होने के प्रमाण मिलते हैं।
आजादी के बाद से 1974 तक मंदिर पर ताला लगा रहे। फिर एक बड़ा आंदोलन हुआ था, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता प्रकाशचंद सेठी ने खुद मंदिर के ताले खुलवाए थे। उस दौरान केके अग्रवाल यहां के कलेक्टर थे। आंदोलन के बाद से मंदिर के पट साल में एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं। अब उमा का प्रण मंदिर के ताले खोलने और उनकी राजनीतिक कद को कितना ऊपर ले जाएगा, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।