नई दिल्ली. शत्रुघ्न सिन्हा एक बार फिर चर्चा में हैं। अब वे फिर सांसद बन गए हैं, लेकिन तृणमूल कांग्रेस (TMC) से। तृणमूल ने शत्रुघ्न को आसनसोल से उतारा था। इस सीट से बाबुल सुप्रियो बीजेपी सांसद थे, बाद में बाबुल ने बीजेपी छोड़ दी। 12 अप्रैल को हुए उपचुनाव के वोटों की गिनती 16 अप्रैल को हुई, जिसमें शत्रुघ्न ने बीजेपी की अग्निमित्रा पॉल को हराया। उधर, बाबुल सुप्रियो बंगाल की बालीगंज विधानसभा सीट पर जीत गए।
कमाल की रही बीजेपी में एंट्री
1991 के लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर और नई दिल्ली दो सीटों से चुनाव जीते। आडवाणी ने राजेश खन्ना को नई दिल्ली सीट पर दो हजार से भी कम वोटों के अंतर से चुनाव हराया। पर आडवाणी को एक सीट छोड़नी थी तो नई दिल्ली छोड़ दी। लिहाजा इस सीट पर उपचुनाव होने थे। 1992 में नई दिल्ली के उपचुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा को बीजेपी की तरफ से उतार दिया। कांग्रेस ने फिर से राजेश खन्ना को ही चुनाव में उतारा।
शत्रुघ्न के इस सीट पर उतरने से ही राजेश उनसे नाराज हो गए। सिन्हा ने उन्हें कड़ी टक्कर दी लेकिन आखिरकार राजेश खन्ना उपचुनाव में करीब 27 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल करने में कामयाब हुए। इस तरह, अपने पहले चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा को हार का मुंह देखना पड़ा। शत्रुघ्न सिन्हा ने इस बारे में खुद ही बताया कि उनके चुनाव लड़ने से राजेश खन्ना उनसे बुरी तरह नाराज हो गए। इस बात का शत्रुघ्न को हमेशा अफसोस भी रहा कि उन्होंने एक दोस्त को नाराज कर दिया। 2012 (राजेश खन्ना का निधन) तक राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच चीजें ठीक नहीं हो पाईं।
ऐसे बढ़ा बीजेपी में कद
1992 उपचुनाव के बाद शत्रुघ्न बीजेपी के स्टार प्रचारकों में शामिल हो गए। उन्हें जगह-जगह उन्हें बुलाया जाने लगा। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने शत्रुघ्न को खासी अहमियत दी। 1996 में बिहार से बीजेपी ने शत्रु को राज्यसभा भेजा। कार्यकाल खत्म होने पर शत्रुघ्न दोबारा राज्यसभा पहुंचे।
अटल सरकार में मंत्री रहे
वाजपेयी ने 2002 में शत्रुघ्न को अपनी सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनाया। 2003 में मंत्रालय बदलकर उन्हें जहाजरानी मंत्री बनाया गया। 2009 लोकसभा चुनाव में आडवाणी ने शत्रुघ्न को बिहार की पटना साहिब सीट से उतारा। शत्रुघ्न ने यहां से राजद के विजय कुमार को 1 लाख 66 हजार वोटों के अंतर से हराया। इसी सीट पर कांग्रेस के टिकट पर उतरे टीवी कलाकार शेखर सुमन को महज 60,000 वोट मिले थे। हालांकि, 2009 में बीजेपी सत्ता में नहीं आ पाई और यूपीए-2 की सरकार बनी।
2014 में दोबारा जीता लोकसभा चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी पर आडवाणी का कंट्रोल कम होने लगा था और नरेंद्र मोदी की पकड़ मजबूत होती जा रही थी। तब रविशंकर प्रसाद भी पटना साहिब से लड़ना चाहते थे, लेकिन बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं ने शत्रुघ्न का दावा कमजोर नहीं होने दिया और उन्हें फिर से टिकट दिला दिया। शत्रुघ्न ने अपने हमदर्दों का भरोसा कायम रखा और भोजपुरी फिल्मों के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले कांग्रेस कैंडिडेट कुणाल सिंह को 2 लाख 65 हजार से ज्यादा वोटों से हराया।
ऐसे पड़ी मोदी से रार
2014 में जीतकर आए शत्रुघ्न को उम्मीद थी कि वे इस बार भी मंत्री बनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां तक कि काफी वरिष्ठ हो चुके नेताओं मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी को भी मोदी के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। यहीं से शत्रुघ्न की नाराजगी का दौर शुरू हो गया। गाहे-बगाहे वह मोदी और उनकी टीम पर हमला करते नजर आए। कथित तौर पर मोदी-शाह की जोड़ी से नाराज बीजेपी के एक गुट में शत्रुघ्न भी गिने जाने लगे।
धीरे-धीरे शत्रुघ्न विपक्षी पार्टियों के साथ नजर आने लगे। शत्रुघ्न नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी कहे जाने वाले अरविंद केजरीवाल के साथ सार्वजनिक मंचों पर नजर आए और अपनी ही पार्टी पर खुलकर हमला बोला। बीजेपी ने भी शत्रुघ्न से दूरी बना ली और 2019 चुनाव के लिए पटना साहिब सीट से उनका टिकट भी काट दिया गया।
2019 में कांग्रेस और 2022 में टीएमसी के साथ आए
शत्रुघ्न ने अप्रैल 2019 में कांग्रेस जॉइन कर ली। कांग्रेस ने उन्हें पटना साहिब से टिकट भी दिया। हालांकि 2019 का लोकसभा चुनाव शत्रुघ्न, बीजेपी के रविशंकर प्रसाद से चुनाव हार गए। मार्च 2022 में शत्रुघ्न तृणमूल में आ गए। अप्रैल में तृणमूल के टिकट पर आसनसोल लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ा और जीते।
एक्सपर्ट व्यू: शत्रुघ्न के टीएमसी के साथ जाने के मायने
वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल कहते हैं कि जितने भी फिल्म स्टार हैं, उनकी फेस वैल्यू पार्लियामेंट के बाहर होती है। हेमामालिनी, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, रेखा को ले लें, ये लोग पार्लियामेंट में किस तरह बिजनेस (कार्यवाही) में भाग लेते हैं, इसके बारे में आज तक कोई खास जानकारी नहीं है। सामान्य लोग स्टार को फेंटेसी की तरह देखते हैं कि वो फिल्म में इस तरह के डायलॉग बोलता है तो बाकी जगह भी ऐसा ही होगा। तृणमूल कांग्रेस का एक ही मकसद है- संसद में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध। लोकसभा में टीएमसी के पास बोलने के लिए डेरेक ओ’ब्रायन और सुदीप्तो भट्टाचार्य जैसे सांसद हैं और ये अच्छा बोलते हैं। ममता बनर्जी को अच्छी फेस वैल्यू वाले लोगों की लोगों की तलाश है और इसमें शत्रुघ्न फिट होते हैं।