56 साल पहले 24 जनवरी यानी आज देश ने अपने महान साइंटिस्ट को खोया था। 1966 में परमाणु वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा की एक प्लेन दुर्घटना में मौत हो गई थी। कई रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि भाभा की मौत के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी (CIA) का हाथ है। भाभा के जीवन की कहानी आधुनिक भारत के निर्माण की कहानी भी है। आइए पढ़ते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से.....
फ्रांस में क्रैश हुआ विमान: फ्रांस के मॉन्ट ब्लांक में 24 जनवरी को एयर इंडिया का एक विमान क्रैश हो गया। इसमें सवार सभी यात्री मारे गए थे। साइंटिस्ट भाभा की ये आखिरी यात्रा थी। एक न्यूज वेबसाइट ने 2008 में पत्रकार ग्रेगरी डगलस और CIA के अधिकारी रॉबर्ट टी क्राओली के बीच हुई कथित बातचीत को पेश किया। जिसमें रॉबर्ट कहते हैं कि भारत ने 60 के दशक में आगे बढ़ते हुए परमाणु बम पर काम शुरू कर दिया था। ये हमारे लिए समस्या थी। रॉबर्ट ने इस दौरान रूस का भी जिक्र किया, जो कथित तौर पर भारत की मदद कर रहा था। इसके बाद होमी जहांगीर भाभा का जिक्र आता है। CIA अधिकारी रॉबर्ट ने कहा, ‘मुझ पर भरोसा करो, वे खतरनाक थे। उनके साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हुआ। वह परेशानी को और बढ़ाने के लिए वियना की उड़ान में थे, तभी उनके बोइंग 707 के कार्गो में रखे बम में विस्फोट हो गया।
परमाणु उर्जा की नींव रखने वाले भाभा का जीवन: ऑल इंडिया रेडियो पर भाभा ने कहा था कि छूट मिलने पर महज 18 महीनों में भारत को परमाणु संपन्न बना दूंगा। अपने काम के दीवाने भाभा उम्र भर अविवाहित रहे। भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को एक फारसी परिवार में हुआ था। पिता चाहते थे कि भाभा इंजीनियर बने, लेकिन भाभा का मन फिजिक्स में लगता था। अपने पिता को भाभा ने पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा कि 'मैं आपसे गंभीरतापूर्वक कहता हूं कि इंजीनियर के रूप में व्यवसाय या नौकरी करना मेरी प्रकृति में नहीं है। यह मौलिक रूप से मेरे स्वभाव और विचारों के विपरीत है। भौतिकी मेरी दिशा है।'
पहला न्यूक्लियर रिएक्टर स्थापित किया: 15 मार्च 1955 को भारत के पहले न्यूक्लियर रिसर्च रिएक्टर को बनाने का फैसला लिया गया। डॉक्टर भाभा इस पूरे प्रोग्राम के हेड थे। फैसला लिया गया कि ये रिएक्टर एक स्विमिंग पूल की तरह होगा और इसकी क्षमता 1 मेगावॉट थर्मल (MWt) होगी। देशभर के तमाम वैज्ञानिकों ने दिन-रात मेहनत कर केवल 15 महीने में रिएक्टर का काम पूरा कर दिया। 1956 में इस रिएक्टर को शुरू किया गया। ये भारत के साथ ही पूरे एशिया का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर था। भाभा ने क्वांटम थ्योरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में उन्होंने कॉस्मिक किरणों की खोज के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की। कॉस्मिक किरणों पर उनकी खोज के चलते उन्हें विशेष ख्याति मिली।
कुत्ते ने एक महीने खाना नहीं खाया: भाभा का एक कुत्ता हुआ करता था। उसके बहुत लंबे कान होते थे जिसे वो क्यूपिड कहकर पुकारते थे और रोज़ उसे सड़क पर घुमाने ले जाते थे। जैसे ही भाभा घर लौटते थे वो कुत्ता दौड़कर उनके पास आकर उनके पैर चाटता था। जब भाभा का एक विमान दुर्घटना में निधन हुआ तो उस कुत्ते ने पूरे एक महीने तक कुछ नहीं खाया।
15 की उम्र में समझा सापेक्षता का सिद्धांत: जब भाभा महज 15 के थे, तभी उन्होंने अलबर्ट आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत (Theory of Relativity) समझ लिया था। भाभा ने एल्फिंस्टन कॉलेज मुंबई से साइंस में B.Sc की डिग्री हासिल की। 1927 से भाभा इंग्लैंड गए। वहां रहकर उन्होंने साल 1930 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से अपनी आगे की पढ़ाई की। इसके बाद 1934 में कैम्ब्रिज से ही भाभा ने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
कई कलाओं में माहिर थे: भाभा को परमाणु साइंटिस्ट के तौर पर ही याद किया जाता है। लेकिन बेहद कम लोग जानते हैं कि भाभा शास्त्रीय संगीत, नृत्य एवं पेंटिंग्स में माहिर थे। इसके साथ ही उन्हें बागवानी का शौक भी था। उनके गुणों को देखते हुए डॉ. रमन उनकी तुलना इटली के फेमस चित्रकार लियोनार्दो द विंची से करते थे, और उन्हें इसी नाम से बुलाते थे।
नेहरू को भाई कहा करते थे भाभा: भाभा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी लोगों में शुमार थे। वो नेहरू को भाई कहा करते थे। भाभा ने ही नेहरू को परमाणु आयोग की स्थापना के लिए मनाया था।
भाभा को मिले सम्मान: भाभा को 5 बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए भी नॉमिनेट किया गया, लेकिन उन्हें विज्ञान के क्षेत्र का सबसे बड़ा सम्मान नहीं मिल पाया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान से नवाजा था। भाभा को सम्मान देने के लिए भारतीय परमाणु रिसर्च सेंटर का नाम बदलकर भाभा परमाणु रिसर्च सेंटर किया गया था।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना: भाभा ने JRD टाटा की मदद से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना मुंबई में की थी। साल 1945 तक वह इसके निदेशक बने रहे। भाभा ने 1948 में भारतीय परमाणु उर्जा आयोग की स्थापना की थी। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय परमाणु मंचों पर वे भारत का प्रतिनिधित्व करते थे। भाभा को ‘आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम’ भी कहा जाता है।