नई दिल्ली. सरकारी नौकरियों में SC और ST को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है। SC ने कहा कि 2006 के नागराज और 2018 के जरनैल सिंह के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट कोई नया पैमाना नहीं बना सकती है। आरक्षण के पैमाने तय किए हैं, उनमें हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि समय समय पर सरकार को यह रिव्यू करना चाहिए कि प्रमोशन में आरक्षण के दौरान दलितों को उचित प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं।
आंकड़ें जुटाना जरूरी है: जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि पहले के फैसलों में तय आरक्षण के प्रावधानों और पैमानों को हल्के नहीं किए जाएंगे। केंद्र और राज्य अपनी अपनी सेवाओं में एससी एसटी के लिए आरक्षण के अनुपात में समुचित प्रतिनिधित्व को लेकर तय समय अवधि पर रिव्यू जरूर करेंगे। प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी है। केंद्र और राज्यों से जुड़े आरक्षण के मामलों में स्पष्टता पर सुनवाई 24 फरवरी से शुरू होगी।
दलील-अब ठोस आधार का वक्त: इससे पहले 26 जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील वेणगोपाल ने दलील देते हुए कहा था कि ये भी एक सच्चाई है कि आजादी के 75 सालों बाद भी SC और ST के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है। एससी और एसटी समुदाय के लोगों के लिए ग्रुप 'A' श्रेणी की नौकरियों में उच्चतर पद हासिल करना कहीं अधिक मुश्किल है। उन्होंने कहा था अब वक्त आ गया है कि रिक्तियों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एससी, एसटी और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के वास्ते कुछ ठोस आधार देना चाहिए।
दलील-अब ठोस आधार का वक्त: केंद्र के वकील वेणुगोपाल ने दलील दी थी एससी और एसटी समुदाय के लोगों के लिए ग्रुप 'A' श्रेणी की नौकरियों में उच्चतर पद हासिल करना कहीं अधिक मुश्किल है। उन्होंने कहा था अब वक्त आ गया है कि रिक्तियों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एससी, एसटी और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के वास्ते कुछ ठोस आधार देना चाहिए।
2017 से अटका हुआ है प्रमोशन: देश भर में रिजर्व पदों पर प्रमोशन 2017 से अटका हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने याचिका दायर कर पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मामलों पर तत्काल सुनवाई की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले की वजह से देश भर में लाखों पदों पर नियुक्तियां रुकी हुई हैं।