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PATNA. जातीय गणना के आंकड़े जारी करने के मामले में शुक्रवार (6 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट से बिहार सरकार को बड़ी राहत मिली है। पीठ ने जातीय गणना के जारी आंकड़ों पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा है कि हम राज्य सरकार के किसी काम पर रोक नहीं लगा सकते। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर बिहार सरकार को नोटिस जारी किया। जनवरी 2024 तक इस पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में विस्तृत सुनवाई करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की उठाई थी मांग
3 अक्टूबर को याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट से जातीय आंकड़े जारी किए जाने के मामले मे हस्तक्षेप की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। याचिकाकर्ताओं में एक सोच, एक प्रयास और यूथ फॉर इक्वेलिटी जैसे संगठन शामिल हैं। जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की बेंच जातीय गणना मामले की सुनवाई हुई।
बिहार की आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310
बिहार सरकार ने जातीय गणना का आंकड़े जारी किया है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर यह आंकड़ा जारी किया गया। जारी आंकड़े के अनुसार बिहार की आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है। इसमें सबसे बड़ी संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है। यह 4 करोड़ 70 हजार 80 हजार 514 है। दूसरे नंबर पर अति पिछड़ा वर्ग 3 करोड़ 54 लाख 63 हजार 936 है। अनुसूचित जाति की संख्या कुल 2 करोड़ 56 लाख 89 हजार 820 है। अनुसूचित जनजाति की आबादी मात्र 21 लाख 99 हजार 361 बताई गई है। सामान्य वर्ग की संख्या 2 करोड़ 2 लाख 91 हजार 679 हैं।
28 अगस्त को बदला गया था हलफनामा
सुप्रीम कोर्ट में 28 अगस्त को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर किया था। केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल किया, जिसे कुछ घंटे बाद उसे वापस लेते हुए दूसरा हलफनामा दाखिल किया। पहले हलफनामे के पैरा 5 में लिखा था कि सेंसस एक्ट 1948 के तहत केंद्र के अलावा किसी और सरकार को जनगणना या इससे मिलती-जुलती प्रकिया को अंजाम देने का अधिकार नहीं है। हालांकि, फिर केंद्र ने इस हिस्से को हटाते हुए नया हलफनामा दायर किया था । इसमें कहा था कि पैरा 5 अनजाने में शामिल हो गया था। नया हलफनामा संवैधानिक और कानूनी स्थिति साफ करने के लिए दायर किया है।