NEW DELHI. समलैंगिक विवाह (सेम सेक्स मैरिज) को कानूनी मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ फैसला सुना रही है। मंगलवार (17 अक्टूबर) को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कोर्ट कानून नहीं बना सकता, सिर्फ व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है। स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं? यह तय करना संसद का काम है। सीजेआई ने कहा, जीवन साथी चुनना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। साथी चुनने और उस साथी के साथ जीवन जीने की क्षमता जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आती है। जीवन के अधिकार के अंतर्गत जीवन साथी चुनने का अधिकार है। एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को साथी चुनने का अधिकार है। सीजेआई ने कहा कि इस मामले में 4 जजमेंट हैं। एक जजमेंट मेरी तरफ से है। एक जस्टिस कॉल, एक जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा की तरफ से है। इसमें से एक डिग्री सहमति की है और एक डिग्री असहमति की है कि हमें किस हद तक जाना होगा।
विदेश : कुछ देशों में मान्यता तो कहीं अपराध माना
कई देशों में समलैंगिक विवाह को मान्यता है तो कई देशों में इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है। भारत में समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ही समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला सुनाया था। इसके बाद समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग उठने लगी, लेकिन सरकार इसके पक्ष में नहीं है। सरकार का कहना है कि ये न सिर्फ भारतीय सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है, बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 158 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी बदलाव करना पड़ेगा।
सरकार ने इसे भारतीय समाज के खिलाफ बताया
सेम सेक्स मैरिज का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं ने इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करने की मांग की है। केंद्र सरकार ने इसे भारतीय समाज के खिलाफ बताया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 20 याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक पार्ट को रद्द कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- होमोस्क्शुअलिटी सिर्फ अर्बन तक सीमित नहीं
सुनवाई के फैसले के दौरान सीजेआई ने कहा- होमोस्क्शुअलिटी या क्वीरनेस सिर्फ अर्बन इलीट क्लास तक सीमित नहीं है। ये सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाले और अच्छी जॉब करने वाले व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों में खेती करने वाली महिलाएं भी क्वीर हो सकती हैं। ऐसा सोचना कि क्वीर लोग सिर्फ अर्बन या इलीट क्लासेस में ही होते हैं, ये बाकियों को मिटाने जैसा है। शहरों में रहने वाले सभी लोगों को क्वीर नहीं कहा जा सकता है। क्वीरनेस किसी की जाति या क्लास या सोशल-इकोनॉमिक पर निर्भर नहीं करती है। ये कहना भी गलत है कि शादी एक स्थायी और कभी न बदलने वाला संस्थान है। विधानपालिका कई एक्ट्स के जरिए विवाह के कानून में कई सुधार ला चुकी है।
20 याचिकाएं, 7 दिन सुनवाई के बाद केंद्र ने बनाई थी कमेटी
सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र समस्याओं का हल तलाशने के लिए एक कमेटी बनाने को तैयार है। मेहता ने कहा था कि यह कमेटी इन कपल की शादी को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे में दाखिल नहीं होगी। समस्याओं को लेकर याचिकाकर्ता यानी सेम सेक्स कपल अपने सुझाव दे सकते हैं। सरकार इस पर सकारात्मक है।