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NEW DELHI. देश में तेजी से बढ़ रहे सांसदों और विधायकों पर आपराधिक मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 नवंबर) को देशभर के उच्च न्यायालयों को आदेश दिया है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के निपटारे में तेजी लाई जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि वे खुद ऐसे मामले दर्ज करें और उनकी मॉनिटरिंग करें। खासतौर पर उन मामलों को प्राथमिकता दें, जिनमें उम्रकैद या फिर फांसी तक की सजा का प्रावधान हो। अदालत ने सुझाव दिया कि हाईकोर्ट इसके लिए स्पेशल बेंच भी बना सकते हैं। हत्या के मामलों में दोषी ठहराए जाने पर उम्रकैद से लेकर हत्या तक की सजा का प्रावधान है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में टाइमलाइन को लेकर कोई निर्देश नहीं दिए जा सकते।
स्पेशल बेंच का नेतृत्व खुद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस करें
उच्च न्यायालयों के चीफ जस्टिस अपने अधिकार क्षेत्र में चल रहे ऐसे केसों की पूरी निगरानी करें और उनके ट्रायल समय पर खत्म हों, ऐसा सुनिश्चित करें। बेंच ने कहा कि यदि जरूरी हो तो स्पेशल बेंच समय-समय पर केस को लिस्ट कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई करने वाली स्पेशल बेंच का नेतृत्व खुद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी मामले में मौत या फिर उम्रकैद की सजा हो सकती हो तो उन्हें प्राथमिकता से सुना जाना चाहिए।
मामलों की लिस्ट बनाई जाए
चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट्स को उन मामलों की लिस्ट बनानी चाहिए, जिनका ट्रायल रुक गया है। ऐसे सभी मामलों में तेजी लानी चाहिए ताकि समय पर उनका निपटारा हो सके। अदालत ने एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर ये आदेश दिया, जिसमें मांग की गई थी कि अदालत मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों में तेजी लाएं।
मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ 5 हजार 175 केस लंबित
अदालत में सुनवाई के दौरान ये बात भी सामने आई कि देशभर में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ 5 हजार 175 केस लंबित हैं। इनमें से 2 हजार 116 यानी करीब 40 फीसदी केस ऐसे हैं, जो 5 साल से ज्यादा वक्त से लंबित हैं।
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उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा केस
लंबित मामलों में सबसे ज्यादा 1 हजार 377 केस तो उत्तर प्रदेश के ही हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां 546 केस लंबित हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र में 482 केस अभी लंबित हैं। इससे पहले 2014 में एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ आरोप तय होने के 1 साल के अंदर मामलों का निपटारा हो जाना चाहिए।