सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के लिए 'स्किन टू स्किन टच' जरूरी नहीं

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के लिए 'स्किन टू स्किन टच' जरूरी नहीं

नई दिल्ली. बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay Highcourt) की नागपुर बेंच ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि नाबालिग के ब्रेस्ट को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना छूना या टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बदलते हुए आरोपी को तीन साल की सजा सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय बेंच ने कहा कि गलत मंशा से किसी भी तरह से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श करना पॉक्सो एक्ट (Supreme court on pocso act) का मामला माना जाएगा। अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है। ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने पॉक्सो एक्ट के मकसद ही खत्म कर देगी।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 19 जनवरी को फैसला सुनाया था कि 12 साल के बच्चे के ब्रेस्ट को उसके कपड़े हटाए बिना दबाने से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 के तहत एक महिला की शील भंग करने की परिभाषा के अंतर्गत आता है। पॉक्सो के तहत यौन हमला नहीं। इसके खिलाफ  अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद 30 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 18 नबंबर को बेंच ने अपना फैसला सुनाया है। 

अटॉर्नी जनरल की अदालत में दलील

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि अधिनियम की धारा-आठ के तहत 'स्किन टू स्किन' के संपर्क को यौन हमले के अपराध के रूप में व्यक्त नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट जज ने यह देखा कि बच्चे के ब्रेस्ट को टटोलने के अपराध के लिए तीन वर्ष की सजा बहुत सख्त है लेकिन यह ध्यान नहीं दिया कि धारा-सात ऐसे सभी प्रकार के कृत्यों से व्यापक तरीके से निपटता है और ऐसे अपराधों के लिए न्यूनतम सजा के रूप में तीन साल निर्धारित करता है।

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