Bhopal. ओमकारेश्वर में ओंकार पर्वत पर आदिगुरू शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित होना है। मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड ने इसके लिए सीया से एन्वायरन्मेंट क्लीयरेंस लिया है। प्रोजेक्ट किसी भी हाल में पूरा हो इसके लिए सरकार ने किस तरह से नियमों को ताक पर रखा, इसे इस बात से समझ सकते हैं कि 10 हेक्टेयर की फॉरेस्ट लैंड के मद को परिवर्तित कर नॉन फॉरेस्ट कर दिया गया। एक्सपर्ट के मुताबिक ऐसा होता नहीं है।
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पर्यावरणविद डॉ. सुभाष सी पांडे के अनुसार यदि निर्माण की इजाजत दी भी जाती है तो जमीन फॉरेस्ट की ही होती है। इस प्रोजेक्ट को मिली अनुमति किसी अपवाद से कम नहीं। लैंड यूज चेंज करवाने के बड़े सख्त नियम और कई सारी परमीशन होती है, जो सामान्यत: कोई प्रोजेक्ट फुलफिल नहीं करता है।
साथ ही ग्रीन बेल्ट को भी कम किया गया तो कैचमेंट की परिभाषा ही बदल दी और तो और ओंकार पहाड़ी पर निर्माण पर रोक है इसके लिए एक बिंदु ऐसा जोड़ा गया जिससे कि निर्माण किया जा सके। डॉ. सुभाष सी पांडे ने कहा कि 2031 के ओमकारेश्वर विकास योजना में नर्मदा के ग्रीन बेल्ट को 30 मीटर कर दिया, जबकि जंगल वाले इलाके में नर्मदा का ग्रीन बेल्ट शहरी क्षेत्र में 50 मीटर और ग्रामीण क्षेत्र में 500 मीटर से कम नहीं होता है। वे इसे कोर्ट में चैलेंज करेंगे।
एमओईएफ में 318 तो ईसी में बताया 418 पेड़ का काटना
केंद्र से मिली अनुमति में एमओईएफ के अनुसार पेड़ काटने की संख्या 350 बताई गई, लेकिन बाद में जब एन्वॉयरमेंट क्लियरेंस यानी ईसी लिया गया तो 480 पेड़ काटना बताए गए। जबकि तमाम परमीशन एमओईएफ के अनुसार ही मिली है, तो ऐसे कैसे हो गया। प्रोजेक्ट में जीरो डिस्चार्ज की बात की गई है लेकिन एक्सपर्ट की राय में ऐसा होना संभव ही नहीं है। सुभाष पांडे ने बताया कि भारत के किसी भी मंदिर या अन्य संस्थान में जीरो डिस्चार्ज संभव ही नहीं है।
ओंकारेश्वर सीस्मिक जोन में, पर नहीं ली एनओसी
ईसी में परमीशन प्रतिमा की ऊंचाई 197 फीट की ली गई थी, लेकिन 108 फीट की लगाई जा रही है। दरअसल नर्मदा वैली सिस्मिक जोन यानी भूकंप क्षेत्र में आती है और यहां पहले भी झटके महसूस किए गए हैं। होल्कर कॉलेज इंदौर के रिटायर्ड प्रोफेसर नरेंद्र जोशी के अनुसार ओमकारेश्वर में कोई भी बड़ा, भारी और गहरा निर्माण कार्य भूकंप के दृष्टि से ठीक नहीं है। इससे खतरा और बढ़ेगा। प्रतिमा की उंचाई में आई कमी को पर्यावरणविद भूकंप की इसी संभावना से जोड़कर देखते हैं। सुभाष पांडे ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए सिस्मिक क्लियरेंस से संबंधित कोई एनओसी नहीं ली गई है।
दिसंबर 2022 तक लगाना है पेड़, अभी बाउंड्रीवाल तक नहीं
अब इस प्रोजेक्ट का नर्मदा वैली पर क्या प्रभाव पड़ेगा वो भी समझना जरूरी है। यहां जितने पेड़ काटे गए उतने दिसंबर 2022 तक लगाने का दावा किया गया है। संस्कृति विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर शैलेंद्र मिश्रा के अनुसार 30 हजार पेड़ लगाए जाएंगे। पर हकीकत इससे उलट है। सुभाष पांडे कहते हैं कि आज तक किसी प्रोजेक्ट में ऐसा नहीं हुआ कि सरकार ने किसी प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटे हो और उसके बदले में जंगल लगा दिया हो। साथ ही प्रोजेक्ट की साइट पर चारों तरफ से बाउंड्रीवॉल लगाने की बात की गई लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नजर नहीं आया।
कैचमेंट के नजदीक नहीं बल्कि उसी पर हो रहा काम
ईसी में कहा गया कि कैचमेंट के नजदीक काम हो रहा है। जबकि प्रोजेक्ट का कुछ हिस्सा यदि 50 मीटर वाला दायरा लिया जाए तो कैचमेंट पर ही हो रहा है। क्योंकि पहाड़ी दोनो ओर से नर्मदा से घिरी है, इसलिए कैचमेंट और ग्रीनरी भी दोनो ओर से ली जाएगी। सुभाष पांडे के अनुसार पूरी पहाड़ी ही नर्मदा का कैचमेंट कहलाएगी।
दस्तावेज में ओमकारेश्वर की पहाड़ी पर निर्माण पर रोक और ग्रीनरी के लिए आरक्षित होने की बात कही गई है, लेकिन प्रोजेक्ट के निर्माण में कोई दिक्कत न आए, इसके एक प्वाइंट जोड़ा गया है कि धार्मिक न्यास बना सकते हैं, ऐसा क्यों? क्या निर्माण—निर्माण में अंतर होता है।
प्रोजेक्ट को लेकर और भी है कई खामियां
इस प्रोजेक्ट को लेकर भी कई खामियां है, मसलन नर्मदा का 10 हजार एमएलडी पानी का इस्तेमाल होगा..पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग से कैसे इतनी बड़ी मात्रा में नर्मदा को पानी वासप भेजा जाएगा, इसका कोई उल्लेख ही नहीं है। डाक्यूमेंट में प्रोजेक्ट को लेकर कहा गया कि इससे जैवविविधता बढ़ेगी। इसके पीछे तर्क दिया कि जितने पेड़ कटेंगे हम उससे ज्यादा लगाएंगे। जबकि हकीकत में यदि शासन इस तरह के प्रोजेक्ट को लेकर पूरी तरह से इमानदारी बरते तब भी इसका असर हमें 20 साल बाद देखने को मिलेगा, क्योंकि पेड़ तो तब ही व्यस्क होंगे। इसके अलावा पीपल जैसे घने वृक्ष जो प्रकृति खुद लगाती है, उनका क्या होगा। ?
2500 करोड़ का नया प्रोजेक्ट, पर मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान न देना कितना सही?
सरकार 2500 करोड़ का नया प्रोजेक्ट तो ले आई, पर ओंकारेश्वर में हर साल जो लाखों भक्त पहुंचते हैं उनके लिए सुविधाएं न के बराबर है, यही लोगों के लिए गुस्से का कारण है। भारत हित रक्षा अभियान के विशाल बिंदल कहते हैं कि ब्रह्मपुरी घाट, नागरघाट, ओमकार घाट बेहद गंदे हैं, क्या इन्हें पहले नहीं सुधारा जाना चाहिए। भारत भर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं, वे क्या छवि लेकर जा रहे होंगे। ओंकार घाट पर ढाई लाख लीटर, जेपी घाट ढाई लाख लीटर, बालवाड़ी में डेढ़ लाख लीटर और झूला पुल के पास 5 लाख लीटर क्षमता का ट्रीटमेंट प्लांट है। पर इससे कही ज्यादा गंदगी आती है, ऐसे में जेपी चौक वाले पुल के पास जैसी तमाम जगहों से नर्मदा में गंदगी मिल रही है, ये कितना ठीक है। सात किमी परिक्रमा पथ पर शासन द्वारा एक भी पीने की पानी की व्यवस्था या ठहरने की व्यवस्था नहीं की गई है, इक्का—दुक्का होगी भी तो बंद पड़ी है।
प्रोजेक्ट को पूरा करने की जल्दबाजी के कारण बनी स्थिति
आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित होने का कोई भी विरोधी नहीं है। पूरा विवाद स्थान को लेकर बना हुआ है। सरकार को आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करना ही थी तो पहले ओंकारेश्वर में मूलभूत सुविधाएं जुटाई जाती। बाद में इस प्रोजेक्ट पर 2500 करोड़ खर्च किए जाते, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रोजेक्ट के पूरा करने की जल्दबाजी में कई ऐसे सवाल है जिनका जवाब सरकार के पास भी नहीं है, ऐसे में यदि प्रतिमा ओंकार पहाड़ी की बजाए किसी दूसरी जगह पूरे प्लान के साथ लगाई जाती तो शायद प्रोजेक्ट पर कोई सवाल खड़े नहीं करता।