UP : कांग्रेस विहीन हुई उत्तर प्रदेश विधान परिषद, कभी इसी यूपी से देश को दिए थे 4 प्रधानमंत्री

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Praveen Sharma
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UP : कांग्रेस विहीन हुई उत्तर प्रदेश विधान परिषद, कभी इसी यूपी से देश को दिए थे 4 प्रधानमंत्री

LUCKNOW. कभी देश को उत्तरप्रदेश (UP) से चार -चार प्रधानमंत्री (PM) देने वाली कांग्रेस (Congress)  बुधवार (06 जुलाई) को राज्य की विधान परिषद (UP Vidhan Parishad) में शून्य हो गई। यानी यूपी विधान परिषद कांग्रेस विहीन हो गई। इसमें कांग्रेस के इकलौते सदस्य यानी एमएलसी दीपक सिंह (UP  MLC Deepak Singh) भी कार्यकाल खत्म होने पर विदा हो गए। इस तरह यूपी के उच्च सदन में देश की 137 साल पुरानी पार्टी का वजूद खत्म हो गया। कहा जा रहा है कि बीजेपी (BJP) का सात साल पहले कांग्रेस मुक्त भारत (Congress Free India) का नारा यूपी विधान परिषद में सफल हो गया है।



साल दर साल मिटती गई सबसे पुरानी पार्टी



देश की सबसे पुरानी विधान परिषद में सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का वजूद साल दर साल मिटता चला गया है। अपने 135 साल के इतिहास में विधान परिषद आज पहली बार कांग्रेस विहीन हो गई। प्रदेश विधान मण्डल के इस उच्च सदन कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह बुधवार को रिटायर हो गए। पांच जनवरी 1887 को प्रांत की पहली विधान परिषद गठित हुई थी और आठ जनवरी 1887 को थार्नाहिल मेमोरियल हाल इलाहाबाद में संयुक्त प्रांत की पहली बैठक हुई थी। तब से अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ, जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व न रहा हो। मगर अब आज बुधवार 6 जुलाई से प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं रह गया। विधान परिषद के जो 13 सदस्य 6 जुलाई 2022 को रिटायर हुए हैं, उनमें 6 सपा के 3 बसपा के एक कांग्रेस व दो भाजपा के सदस्य हैं। इनमें सपा के जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डा.कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, राम सुन्दर दास निषाद और शतरूद्र प्रकाश का कार्यकाल बुधवार को खत्म हो रहा है। इनके अलावा बसपा के अतर सिंह राव, सुरेश कुमार कश्यप और दिनेश चन्द्रा भी रिटायर हो रहे हैं। कांग्रेस के दीपक सिंह भी कल से विधान परिषद के सदस्य नहीं रहेंगे।



डिप्टी सीएम मौर्य सहित 13 निर्विरोध चुने गए



उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव के लिए नामांकन के साथ ही 13 सीटों पर निर्विरोध जीत तय हो गई थी। यूपी की एमएलसी की 13 सीटों पर 13 प्रत्याशियों ने पर्चा भरा था। इनमें भाजपा के 9 और समाजवादी पार्टी के 4 प्रत्याशियों का अकेला नामांकन आने से सभी निर्विरोध निर्विरोध निर्वाचित हो गए थै। इन रिक्त पदों पर 20 जून को मतदान होना था, लेकिन एक सप्ताह पहले ही सभी 13 निर्विरोध चुन लिए गए। नामांकन कराने सीएम योगी आदित्यनाथ खुद पहुंचे थे, जो प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। इनमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं। इसके साथ ही कांग्रेस का शून्य में समाना भी तय हो गया। भाजपा के 9 और समाजवादी पार्टी के 4 उम्मीदवार सदन में निर्विरोध पहुंचे हैं। इसमें मुकेश शर्मा, बनवारी लाल दोहरे, जेपीएस राठौर, दानिश आजाद अंसारी, चौधरी भूपेंद्र सिंह, दयाशंकर मिश्र दयालु, केशव प्रसाद मौर्य, जसवंत सैनी शामिल हैं।



विधानसभा से ही दिखने लगी थी कांग्रेस की दुर्गति



कांग्रेस की जो गति विधान परिषद में आज हुई है, उसकी आहट विधानसभा में काफी पहले से ​ही सुनाई आने लगी थी। 37 साल पहले जब 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 269 सीटें जीती थीं लेकिन वीपी सिंह के बोफोर्स का मामला उछालने के बाद देश की राजनीति में ऐसा उछाल आया कि 1989 आते-आते फिजा बदलने लगी। 1989 के लोकसभा चुनाव में किसी को स्‍पष्‍ट बहुमत न मिलने पर केंद्र में वीपी सिंह की अगुवाई में लेफ्ट और बीजेपी के सहयोग से नेशनल फ्रंट की सरकार बनी, वहीं यूपी में एनडी तिवारी के हटे और जनता दल के सिपहसलार के तौर पर मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी। इसके बाद देश में शुरू हुई मंडल और कमंडल की राजनीति के दौर ने कांग्रेस की चमक पर ग्रहण लगना शुरू हो गया। 1989 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी संख्‍या में सीटें गंवा दीं। तब भी 94 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थीं। लेकिन 1993 के चुनाव में तो उसे सिर्फ 28 सीटें मिलीं। 1996 में कांग्रेस को 33 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसके बाद 2002 में कांग्रेस ने केंद्र में सत्‍ता हासिल की तो 2007 में उसे बहुत उम्‍मीद थी कि यूपी में भी प्रदर्शन बेहतर रहेगा, लेकिन उस चुनाव में भी कांग्रेस सिर्फ 22 सीटें जीत सकी। 2012 में भी केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीए की सरकार थी लेकिन यूपी में उसे 28 सीटें ही हासिल हुईं। 2017 में पार्टी ने सपा के साथ गठबंधन किया। कुल 114 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन हासिल हुईं सिर्फ 7 सीटें। इसके बाद इस साल हुए चुनाव में कांग्रेस की झोली में सारी ताकत झोंकने के बाद भी केवल दो सीटें आ सकीं। इस चुनाव में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पूरी कमान अपने हाथ रखी। सड़क पर संघर्ष के जरिए पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश की। चुनावी घोषणा पत्र में आधी आबादी सहित हर वर्ग को साधने के लिए वादे भी किए। मगर कोई भी टोटका और तंत्र-मंत्र काम नहीं आया। इसी का परिणाम है कि कांग्रेस आज विधान परिषद में अपने प्रत्याशी को लड़ाने की स्थिति में भी नहीं है। विधान परिषद में एक सीट जीतने के लिए कम से कम 31 विधायकों की जरूरत होती है, लेकिन कांग्रेस के पास इस वक्त केवल दो विधायक है।



जहां शून्य हुई कांग्रेस, उसने इसी उत्तर प्रदेश से देश को दिए थे 4 प्रधानमंत्री



जिस उत्तर प्रदेश के उच्च सदन में देश की 137 साल पुरानी पार्टी का वजूद खत्म हो गया है। उसी कांग्रेस ने इसी यूपी से देश को 4-4 प्रधानमंत्री दिए थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी उत्तर प्रदेश से ही प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे थे। इसमें पं.जवाहर लाल नेहरू सबसे लंबे समय ( 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964) तक लगातार तीन बार पूर्णकालिक प्रधानमंत्री रहे। उनके बाद लाल बहादुर शास्त्री ( 09 जून 1964 से 11 जनवरी 1966) तक देश के प्रधानमंत्री रहे। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी दो बार ( 24 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1977, 14 जनवरी 1980 से 31 अक्टूबर 1984) प्रधानमंत्री पद पर रहीं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बड़े राजीव गांधी (31 अक्टूबर 1984 से 02 दिसंबर 1989) प्रधानमंत्री के पद पर रहे। वहीं चरण सिंह, चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही थी।



बीजेपी ऐसे होती रही मजबूत



दूसरी तरफ यूपी विधान परिषद में बीजेपी अपनी ताकत लगातार बढ़ाती जा रही है। कांग्रेस के बाद बीजेपी सपा और बसपा को भी नुकसान पहुंचाने की स्थिति में आ गई है। फिलहाल सदन में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्यों की संख्या 66 है, जबकि सपा के 11 सदस्य हैं। जिन 13 सीटों पर चुनाव हुआ है, उसमें 9 पर बीजेपी और 4 सपा ने जीत दर्ज की है। विधान परिषद में एक सीट जीतने के लिए 31 सदस्यों की जरूरत होगी. बीजेपी गठबंधन की बात करें तो विधानसभा में उसके पास कुल 273 और सपा गठबंधन के पास 125 विधायक हैं। जबकि 10 साल पहले इसी सदन में बीजेपी के पास सिर्फ 7 सदस्य थे. वहीं अब उसी सदन में बीजेपी 81 तक पहुंच गई है। बीते दो दशकों में किसी भी सत्ताधारी दल के विधान परिषद के सदस्यों की संख्या इतनी नहीं रही। वहीं सपा के विपक्ष की कुर्सी की बात करें तो सपा के सदस्यों की संख्या 10 फीसदी से कम हो कर 9 रह गई है। ऐसे में उससे विधान परिषद में विपक्ष की कुर्सी छिन सकती है। हालांकि जानकारों का मानना है कि सभापति, सपा को नेता प्रतिपक्ष चुनने के लिए कह सकते हैं। बसपा के भी सदस्यों की संख्या सिर्फ एक रह गई है। 



सदन में पहले कांग्रेसी सदस्य थे मोतीलाल नेहरू



शुरुआत में सदन में 9 सदस्य होते थे। इसके बाद 1909 में इंडियन काउंसिल अधिनियम के प्रावधानों के तहत विधान परिषद के सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर 46 कर दिया गया। इसके बाद ये संख्या 100 हुई। फरवरी 1909 में कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू इस सदन के सदस्य बने थे। वे विधान परिषद में कांग्रेस के पहले सदस्य थे। अब 113 साल बाद पहली बार ऐसा होगा जब उच्च सदन में कांग्रेस का कोई भी सदस्य नहीं होगा। 


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