सावधान ! गेहूं-चावल 'कमजोर' हुए, इंसान को इनसे कैंसर होने का भी खतरा

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Rahul Garhwal
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सावधान ! गेहूं-चावल 'कमजोर' हुए, इंसान को इनसे कैंसर होने का भी खतरा

NEW DELHI. देश की बड़ी आबादी धीमा जहर खाने को मजबूर है, क्योंकि इसके अलावा कोई 'चारा' नहीं है। हम बात कर रहे हैं खाने के साथ लिए जा रहे उस धीमे जहर की, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के जरिए अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो चुका है। प्रमुख खाद्य पदार्थों में शामिल गेहूं और चावल में जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ती जा रही है। दोनों अनाजों में खतरनाक आर्सेनिक और क्रोमियम का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। आर्सेनिक से कैंसर का खतरा होता है। इसके उलट दोनों अनाजों में पोषक तत्वों जैसे कैल्शियम, आयरन और जिंक की मात्रा घट रही है। पश्चिम बंगाल में वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन में इस तथ्य का खुलासा हुआ है।

गेहूं और चावल पर रिसर्च

शोध में वैज्ञानिकों ने 1960 से 2010 के बीच तक की चावल और गेहूं की किस्मों को चुना। इसमें उन्होंने पाया कि 2000 के दशक में उत्पादित चावल में कैल्शियम का औसत स्तर 1960 के दशक में पैदा हुए चावल की तुलना में 45 प्रतिशत कम था। ऐसे ही आयरन की मात्रा 27 प्रतिशत और जिंक की मात्रा 23 प्रतिशत तक कम थी। वहीं, 2010 में उत्पादित गेहूं में 1960 के दशक के गेहूं की तुलना में 30 प्रतिशत कम कैल्शियम, 19 प्रतिशत कम आयरन और 27 प्रतिशत कम जिंक था।

चिंता इसलिए ज्यादा

स्टडी के अनुसार, चावल के दानों में 1960 के दशक में उत्पादित चावल की तुलना में करीब 16 गुना ज्यादा आर्सेनिक और 4 गुना अधिक क्रोमियम मिला है। हालांकि साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित स्टडी कहती है कि अभी गेहूं के दानों में 1960 के दशक के गेहूं की तुलना में आर्सेनिक और क्रोमियम की मात्रा कम है, लेकिन ये भी चिंता की बात है कि गेहूं जैसी फसल में पोषक तत्वों की कमी हो रही है और लोग बीमारियों की जद में आ रहे हैं।

सोचा नहीं था, ऐसा कुछ होगा

पश्चिम बंगाल के मोहनपुर के बिधानचंद्र एग्रीकल्चर स्कूल में मृदा विज्ञान के प्रो. बिश्वपति मंडल के अनुसार हरित क्रांति पैदावार बढ़ाने और ऐसी किस्मों के प्रजनन पर केंद्रित थी, जो कीटों और अन्य संकटों के प्रति सहनशील या प्रतिरोधी थीं। किसी को भी अनाज की किस्मों में ऐसे बदलाव के बारे में परवाह नहीं थी। राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के एक वैज्ञानिक ने कहा कि कैल्शियम हड्डियों के निर्माण के लिए, आयरन हीमोग्लोबिन के लिए और जिंक प्रतिरक्षा और प्रजनन और तंत्रिका संबंधी स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन अनाज में इनकी कमी होना गंभीर चिंता की बात है।

वैज्ञानिकों ने आईसीएआर को चेताया

वैज्ञानिकों के प्रतिनिधि मंडल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को चेताया है। सलाह दी है कि प्रमुख फसलों की खेती की जाने से पहले उनकी स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए। हालांकि आईसीएआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि हमने बीते सालों में 1400 से ज्यादा किस्में जारी की हैं, जबकि स्टडी में चावल की केवल 16 और गेहूं की 18 किस्मों का नमूना लिया गया है। ऐसे में इन अनाजों की किस्मों पर शोध के नतीजों को लागू करना फिलहाल थोड़ी जल्दबाजी होगी।

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