इजरायल के साथ खुलकर आए पीएम मोदी तो कांग्रेस हुई खफा, बोली- भारत को फिलिस्तान में शांति के करने चाहिए थे प्रयास

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Chandresh Sharma
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इजरायल के साथ खुलकर आए पीएम मोदी तो कांग्रेस हुई खफा, बोली- भारत को फिलिस्तान में शांति के करने चाहिए थे प्रयास

NEW DELHI. इजरायल और हमास में भीषण जंग जारी है। अमेरिका, भारत, फ्रांस समेत दुनिया के कई बड़े देश इजरायल के समर्थन में खड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास के हमले को आतंकी हमला करार देकर मुश्किल की घड़ी में भारत इजरायल के साथ खड़ा होने की बात कही थी, वहीं 11 अक्टूबर को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी से फोन पर बात की। इस बातचीत में भी मोदी ने फिर से दोहराया कि भारत इजरायल के साथ है और आतंकवाद के हर रूप की घोर निंदा करता है। मोदी के इस कदम से कांग्रेस नाराज हो गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि भारत को फिलिस्तान में शांति के प्रयास करने चाहिए थे। भारत ने ऐसा नहीं किया, मुझे इस बात से निराशा महसूस होती है।

यूएई, बहरीन जैसे देशों ने भी हमास की निंदा की

मध्य-पूर्व के इस्लामिक देश फिलिस्तीन के साथ मजबूती से खड़े दिखते हैं और वो फिलिस्तीनियों के लिए अलग राष्ट्र की मांग करते रहे हैंख् हालांकि यूएई, बहरीन, मोरक्को जैसे कुछ इस्लामिक देशों का रुख अब इजरायल को लेकर बदल रहा है। यूएई, बहरीन ने तो हमले के लिए हमास की निंदा भी की है। भारत में भी इस मामले पर सियासी चर्चा तेज हो गई है क्योंकि भारत परंपरागत रूप से फिलीस्तीन का समर्थन करता आ रहा है, लेकिन मोदी सरकार खुलकर इजरायल के साथ खड़ी दिख रही है.

मोदी के खुलकर इजरायल के समर्थन को लेकर कांग्रेस हुई नाराज

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद इजरायल-हमास जंग में भारत के रुख को लेकर सहमत नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में खुर्शीद ने कहा, काश ऐसा होता कि भारत फिलिस्तीन में शांति की स्थापना के लिए कोशिश करता। फिलिस्तीन को लेकर हमारा ऐतिहासिक रिकॉर्ड यही रहा है, लेकिन दुर्भाग्य से अब यह बदल गया है। मुझे लगता है कि शांति के लिए मिस्र, कतर और कई देश कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भारत इस प्रयास में कही नहीं है। मुझे इस बात से निराशा महसूस होती है।

खुर्शीद बोले- कांग्रेस सरकार के अनुभवों से सीख ले लेती मोदी सरकार

प्रधानमंत्री ने अपने बयान में इजरायल का समर्थन किया लेकिन फिलिस्तीन का जिक्र नहीं किया। इसे लेकर सलमान खुर्शीद ने कहा, आज दुनिया में जिन मुद्दों का भी हम सामना कर रहे हैं, वो बेहद चुनौतीपूर्ण हैं और उसे लेकर कोई फैसला लेना मुश्किल है लेकिन हम उन मुद्दों पर अपने इतिहास से सीख सकते हैं। अगर सरकार कांग्रेस सरकार के अनुभवों से नहीं सीखना चाहती तो हम कुछ नहीं कर सकते। मेरा मानना है कि हमें हर स्थिति में संतुलन बनाकर रहना चाहिए। खुर्शीद ने कहा कि भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रणेता रहा है और गुट निरपेक्षता आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं लगता कि अब भारत गुटनिरपेक्षता का अनुसरण कर रहा है।

विश्लेषक बोले- मोदी सरकार की इजरायल-फिलीस्तीन पर बदली नीति

भारत ने मामले पर जितनी जल्दी प्रतिक्रिया दी और इजरायल का पक्ष लिया, उसे कई विश्लेषक मोदी सरकार की इजरायल-फिलीस्तीन पर बदली नीति के रूप में देख रहे हैं। भारत इस तरह के संकट में किसी एक देश का पक्ष लेने के लिए नहीं जाना जाता, लेकिन इस बार भारत ने तुरंत इजरायल का पक्ष लिया है। भारत ने इससे पहले फिलिस्तीन की तरफ से किसी हमले को आतंकी हमला कहकर भी संबोधित नहीं किया था।

फिलिस्तीन के साथ खड़ा भारत क्यों करने लगा इजरायल का समर्थन?

पीएम मोदी के बयान दिखाते हैं कि भारत और इजरायल कितने करीब आ गए हैं। एक वक्त था जब भारत इजरायल से दूरी बनाकर रखता था। 1948 में बने इजरायल से भारत ने चार दशकों से भी ज्यादा समय तक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत उस दौर के सभी नेताओं का मानना था कि धर्म के आधार पर किसी भी देश का निर्माण नहीं होना चाहिए और यहूदी बहुल इजरायल धर्म के आधार पर ही बना था।

भारत 1950 से इजरायल के खिलाफ ही रहा

भारत फिलिस्तीन की आजादी के लिए लड़ने वाले संगठन फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन को मान्यता देने वाला पहला नॉन अरब देश था, लेकिन इजरायल को मान्यता देने में उसने काफी वक्त लगा दिया। भारत इजरायल को मान्यता देने वाला आखिरी नॉन मुस्लिम देश बना। भारत ने सितंबर 1950 में इजरायल को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी थी, लेकिन इसके बाद भी भारत इजरायल के खिलाफ ही रहा।

पीएम मोदी के आने से इजरायल-भारत संबंधों में मजबूती

भारत-इजरायल संबंधों में ऐतिहासिक बदलाव तब आया जब साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए। भाजपा हमेशा से यह तर्क देती रही है कि भारत और इजरायल स्वाभाविक सहयोगी हैं। इसके उलट, पहले की गैर-भाजपा सरकारें तर्क देती रही थीं कि भारत को अपनी मुस्लिम आबादी के कारण इस्लामिक देशों का साथ देना पड़ा। पीएम मोदी और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के व्यक्तिगत संबंध काफी मजबूत माने जाते हैं। पीएम मोदी से पहले किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल की यात्रा तक नहीं की थी। साल 2017 में पीएम मोदी इजरायल के दौरे पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने।

पीएम मोदी के बयान पर एक्सपर्ट क्या बोले?

भारत के रुख को लेकर पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा है कि यहां बात इजरायल को समर्थन करने या न करने की नहीं है बल्कि बात इजरायल पर हमास के आतंकी हमले की है और भारत के प्रधानमंत्री ने इजरायल पर आतंकी हमले की निंदा की है। कंवल सिब्बल ने कहा, 'हमारे प्रधानमंत्री ने हमास के आतंकी हमले को लेकर तुरंत प्रतिक्रिया दी कि वो हमलों से स्तब्ध हैं। हम सभी जानते हैं कि आतंकवाद का मुद्दा भारत के लिए बेहद बड़ा मुद्दा है और हम सभी बड़े अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसे उठाते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस बात को लेकर सहमत है कि चाहे उसका कारण कुछ भी हो, आतंकवाद को सही नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए हमास और फिलिस्तीनियों के पास भले ही हमले के लिए कोई कारण था, उनके हमले को हम सही नहीं ठहरा सकते। कंवल सिब्बल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो बयान दिया है, उसे राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि उसका संदर्भ केवल और केवल आतंकवाद है।

राजीव गांधी ने की थी इजरायल से रिश्ते बेहतर करने की पहल

विदेश मामलों के जानकार पत्रकार सी राजा मोहन का मानना है कि हमास की आलोचना को फिलिस्तीन के खिलाफ इसलिए भी नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि हमास पूरे फिलिस्तीन का प्रतिनिधित्व नहीं करता। सी राजा मोहन कहते हैं कि भले ही पीएम मोदी ने इजरायल के साथ संबंधों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है लेकिन इजरायल से रिश्ते सुधारने की पहल कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय में ही शुरू हो गई थी। राजीव गांधी ने इजरायल से दूरी बनाकर रखने की भारत की नीति को खत्म किया था। उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए पी वी नरसिम्हा राव ने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे।

इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2003 में तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन की मेजबानी कर दोनों देशों के मजबूत रिश्तों की नींव तैयार की थी। उन्होंने अपने आर्टिकल में आगे लिखा है, हालांकि, वाजपेयी के बाद यूपीए की सरकार इजरायल के साथ संबंधों को खुलकर आगे बढ़ाने में हिचकिचाने लगी। यह इसलिए हुआ क्योंकि सरकार पर लेफ्ट पार्टियों का दबाव था और मध्य-पूर्व की नीति को लेकर कांग्रेस भ्रम की स्थिति में थी, लेकिन मोदी सरकार ने इजरायल के साथ अपने हितों को देखते हुए भारत के पारंपरिक रुख को बदल दिया। प्रधानमंत्री मोदी इजरायल दौरे पर भी गए।

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