RISHIKESH. टनल के अंदर न तो मोबाइल काम कर रहा था और न ही वॉकी टॉकी। पहले तो मजदूरों ने कागज की चिट बनाकर राजा-मंत्री, चोर-सिपाही का गेम खेलकर वक्त गुजारा। कुछ दिन बाद पाइप के जरिए ताश की गड्डियां बुलवा ली थीं। ताश खेलकर वक्त गुजारते रहे। मलबे के अंदर की तरफ करीब 1.5 से 2 किलोमीटर का हिस्सा था, उस पर वॉक करके सो जाते थे। टीम के सीनियर मेंबर सभी का हौसला बनाए हुए थे। मजदूरों को बता रखा था कि कंपनी कोशिश कर रही है, टाइम लगेगा पर सबको निकाल लिया जाएगा।
रसद की पहली खेप पहुंचने में लगा था समय
टनल में फंसे मजदूरों के टीम लीडर सबा अहमद ने बताया कि तड़के सुबह 5 से 5.30 बजे हादसा हुआ था। अंदर हमारे पास बोलेरो जीप थी, मजदूरों की सूचना पर जीप से मौके पर पहुंचा तो देखा कि सुरंग पूरी तरह से कोलेप्स हो गई है। हमारे पास 4 इंच की पाइप लाइन थी। उसे बंद-चालू करते रहे, ताकि बाहर वालों को यह संदेश मिल सके कि हम फंसे हुए हैं। बाहर मौजूद लोगों ने भी इसे समझने में देर नहीं की। ऑक्सीजन की सप्लाई चालू कर दी गई। हालांकि अंदर काफी ऑक्सीजन थी। फिर तीसरे दिन पाइप के जरिए चने- मोबाइल चार्जर भेजे गए।
पोकलेन से बनाए अस्थाई टॉयलेट
सबा अहमद ने बताया कि मैं 14 सालों से यही काम कर रहा हूं, हमने ऐसे मामले सुने थे जब मजदूर अंदर फंस जाते थे। वही अनुभव काम आया, हमें पता था कि अंदर किसी को बीमार नहीं होने देना है। इसलिए सबका हौसला बनाए रखा। हमारे पास पोकलेन भी थी, टनल के अंदर डेढ़ किमी की दूरी पर हमने कई गड्ढे बना दिए थे। सभी उसमें टॉयलेट जाते थे और फिर मिट्टी डाल देते थे। गंदगी में रहते तो बीमार भी पड़ते।
पाइप के जरिए हो रही थी बात
सबा अहमद ने बताया कि पाइप के जरिए ही बाहर वालों से हल्की फुल्की बात हो पाती थी। रात में नींद नहीं आती थी और दिन में सो नहीं पाते थे। थोड़ी-थोड़ी नींद ले पाते थे। सभी चिट से चोर-सिपाही खेलते थे। फिर बाहर से ताश मंगा ली थी। अंदर पर्याप्त लाइट थी, जिनके मोबाइल पर फिल्म डाउनलोड थी तो सब साथ में फिल्म देखते थे।
सबा और गब्बर सिंह कर रहे थे लीड
सबा अहमद ने बताया कि मेरे अलावा गब्बर सिंह नेगी भी थे, वे पोस्ट में मेरे से जूनियर हैं लेकिन उम्र में बड़े थे। हम दोनों मिलकर सबको मोटिवेट करते थे, कह दिया था कि सबको बिंदास रहना हैं। कंपनी के पास 4-5 ऑप्शन हैं, समय जरूर लग सकता है लेकिन हमें निकाला जाएगा। किसी को घबराना नहीं है।
3-4 लाख का ड्रायफ्रूट छोड़ आए हैं
जब सबा से पूछा गया कि अंदर मजदूरों को खाने-पीने की समस्या तो नहीं हुई, तो सबा ने बताया कि शुरुआती समय में जरूर खाने को कुछ नहीं था,फिर चने भिजवाए गए। लेकिन बाद में इतना खाने का सामान भेजा गया जो जरूरत से ज्यादा था। उन्होंने बताया कि 3-4 लाख का तो ड्रायफ्रूट ही हम टनल में छो़ड़ आए हैं।
कंपनी ने दिया 2 लाख मुआवजा और बोनस
इधर मजदूरों की कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग लिमिटेड ने सभी मजदूरों को बिना किसी पोस्ट के भेदभाव के 2-2 लाख रुपए मुआवजे का चेक प्रदान किया है। साथ ही सभी को दो माह का बोनस दिया गया है। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि सभी मजदूर काम पर लौटने से पहले घर पर आराम करें।