NEW DELHI. केंद्र सरकार की अग्निपथ स्कीम के खिलाफ लगी सभी याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है और कोर्ट ने कहा कि इस स्कीम को लाने को उद्देश्य हमारी सेनाओं को बेहतर तरीके से तैयार करना है। ये देश हित में है। वहीं, जो लोग पुरानी नीति के आधार पर ही नियुक्ति की मांग कर रह थे। कोर्ट ने उनकी मांग को जायज ना बताते हुए खारिज कर दिया।
सरकार का तर्क, सबसे बड़े नीतिगत बदलावों में से एक
देश के अलग-अलग हिस्सों में अग्नीपथ स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की थी जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर की थी। आज (27 फरवरी ) दिल्ली हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाया। वहीं, केंद्र ने अपना तर्क देते हुए कहा था कि अग्निपथ स्कीम डिफेंस रिक्रूटमेंट में सबसे बड़े नीतिगत बदलावों में से एक है।
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सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को आदेश सुरक्षित रखा था
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने 15 दिसंबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती पिछले साल 14 जून से शुरू की गई थी। इस योजना के नियम के मुताबिक, 17 से 21 साल के लोग इस योजना के लिए आवेदन करने के पात्र हैं। इन्हें चार साल के लिए सेना में शामिल किया जाएगा।
याचिकाकर्ताओं का तर्क, छह महीने बहुत कम समय
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि बाकी 75 प्रतिशत उम्मीदवार चार साल बाद बेरोजगार हो जाएंगे और उनके लिए कोई योजना भी नहीं है। पेश हुए याचिकाकर्ताओं में से एक ने 12 दिसंबर को तर्क दिया था- छह महीने में, मुझे शारीरिक सहनशक्ति विकसित करनी है और हथियारों का उपयोग करना सीखना है। छह महीने बहुत कम समय है। हम राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने जा रहे हैं। इस बारे में भी तर्क दिए गए कि क्या अग्निवीरों के चार साल के कार्यकाल को उनकी समग्र सेवा में गिना जाएगा, जब उनमें से एक चौथाई सेना में शामिल हो जाएंगे।