UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम पुरुषों के एक से अधिक विवाह करने के विषय में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मुस्लिम पुरुष को दूसरी शादी करने का अधिकार तभी है जब वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करने की क्षमता रखता हो। इस निर्णय में कोर्ट ने इस्लामी कानून, कुरान और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 को आधार बनाया है।
कब है बहुविवाह की अनुमति
कोर्ट ने बताया कि कुरान में विशेष परिस्थितियों में बहुविवाह की अनुमति दी गई है। प्रारंभिक इस्लामी काल में विधवाओं और अनाथों की सुरक्षा के लिए यह प्रावधान था। लेकिन आज के समय में पुरुष इसका गलत फायदा उठा रहे हैं, जो गलत है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि केवल स्वार्थ के लिए बहुविवाह करना स्वीकार्य नहीं है।
मुरादाबाद मामला
यह फैसला मुरादाबाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आया। याची फुरकान, खुशनुमा और अख्तर अली ने मुरादाबाद के सीजेएम कोर्ट के 8 नवंबर 2020 के चार्जशीट नोटिस को रद्द करने की मांग की थी। आरोप था कि फुरकान ने बिना बताए दूसरी शादी की और इस दौरान बलात्कार किया। पुलिस ने ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल की है।
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कोर्ट की राय और दलीलें
याची फुरकान के वकील ने दलील दी कि मुस्लिम कानून और शरीयत अधिनियम 1937 के तहत एक मुस्लिम पुरुष को चार विवाह करने की अनुमति है।
उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट के जाफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य केस का हवाला दिया, जहां दूसरी शादी को अमान्य नहीं माना गया।
राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि दूसरा विवाह हमेशा वैध नहीं होगा, खासकर जब पहला विवाह गैर-मुस्लिम कानून के तहत हुआ हो। ऐसे में दूसरा विवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध बनता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने टिप्पड़ी की कि दोनों विवाह मुस्लिम महिलाओं के साथ हैं इसलिए दूसरी शादी वैध है। आईपीसी की धारा 376, 495 और 120 बी के तहत कोई अपराध सिद्ध नहीं होता। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 26 मई 2025 से शुरू होने का नोटिस दिया है। कोर्ट ने याचियों के खिलाफ किसी भी उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक भी लगाई है।