MUMBAI. महाराष्ट्र के सातारा जिले के एक ऐसे गांव के युवाओं का जुनून जो 3 पीढ़ियों से देश से सेवा कर रहा है। दरअसल, इस गांव के हर घर से एक बच्चा नौसेना, वायुसेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ और अन्य सुरक्षा बलों में सेवारत है। इतना ही नहीं जिस तरह एक डॉक्टर का बेटा जैसे डॉक्टर बनता है, वैसे ही इस गांव का युवा अपने पिता की पदचिन्हों पर चलकर देश की सेवा में लगाता है। युवाओं के इस जज्बे को देखकर इस गांव का नाम 'मिलिट्री गांव' या मिलिट्री आपशिंगे रखा गया है। नाम में मिलिट्री होने की वजह है देश की सेवा करने का जज्बा यहां के युवाओं में कूट-कूट कर भरा रहता है। छत्रपति शिवाजी की सेना से शुरू हुई परंपरा आज भी कायम है। इस गांव से 1,650 से ज्यादा जवानों ने सेना और अन्य सुरक्षा बलों में सेवा की है। देश के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देने का इतिहास 60 साल से भी ज्यादा पुराना है।
इस गांव के वीर 1962 की जंग में भी हुए थे शहीद
सातारा गांव में 350 परिवार रहते हैं और 3 हजार लोगों के इस गांव के सोल्जर 1962 की जंग से लेकर आज तक शहीदों का इतिहास रहा है। सातारा शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आपशिंगे गांव को सशस्त्र बलों में अपने योगदान के लिए आपशिंगे मिलिट्री के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय सेना के दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिस कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह ने 1 मई को महाराष्ट्र के सातारा जिले में आपशिंगे 'मिलिट्री गांव' में एक लर्निंग सेंटर और जिम का उद्घाटन किया।
सातारा में ISR का सेटअप हुआ तैयार
पश्चिमी महाराष्ट्र में सातारा के युवाओं को सुसज्जित करने के उद्देश्य से जहां शनमुखानंद ललित कला, संगीता सभा और दक्षिण भारतीय शिक्षा सोसाइटी ने संयुक्त रूप से लर्निंग और फिजिकल फिटनेस के लिए इंस्टीट्यूशनल सोशल रिस्पांसिबिलिटी (ISR) का सेट-अप तैयार किया है। जिसका खर्चा करीब करीब 80 लाख रुपए है।
ये भी पढ़ें...
ब्रिटिश काल से भर्ती हो रहे सोल्जर
आपशिंगे गांव के लोग ब्रिटिश काल से देश सेवा के लिए अपनी जान न्यौछावर करते आ रहे हैं, और यह परंपरा आज भी जारी है। ब्रिटिश काल में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इस गांव के 46 जवान शहीद हुए थे। तभी से इस गांव का नाम मिलिट्री आपशिंगे रखा गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध में इस गांव के 4 जवान शहीद हुए थे।
चीन और पाकिस्तान के खिलाफ लड़ी जंग
इस गांव के वीरों ने चीन के खिलाफ 1962 और पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 में जंग लड़ी थी। इन युद्ध में गांव के नौजवानों ने हस्ते-हस्ते देश के नाम अपनी जान दी। जैसे एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, इंजीनियर का इंजीनियर और टीचर का बेटा टीचर बन रहा है, उसी तरह इस गांव के सोल्जर पिता की पदचिन्हों पर चलकर देश की सेवा में हैं। इस गांव के लोग नौसेना, वायुसेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ और अन्य सुरक्षा बलों में सेवारत हैं।