अरविंद केजरीवाल : रामलीला मैदान से उठा तूफान, भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंस गया

अरविंद केजरीवाल के आंदोलन ने सबसे अधिक युवाओं को आकर्षित किया। आम युवाओं के साथ एमबीए, विदेश से डिग्री पाए युवा, विदेशी संस्थानों में नौकरी करने वाले युवा इस आंदोलन से जुड़ गए...

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Dr Rameshwar Dayal
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ARVIND KEJRIWAL
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क्या अरविंद केजरीवाल (AK) वाकई भ्रष्टाचार (curreption) के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एक योद्धा हैं, या भारतीय राजनीति ( indian politics) के अफलातून हैं। उनके अपने या विरोधी उन्हें जिस तरह से ट्रीट करें, लेकिन यह सच है कि रामलीला मैदान ( ramleela maidan) से उनके द्वारा उठा भ्रष्टाचार के खिलाफ तूफान दूसरे मायनों में आजादी के बाद दूसरा और सही मायनों में पहला युवा जनआंदोलन था। इस आंदोलन के अश्वमेध पर सवार होकर एके ने जिस तरह की प्रसिद्धि पाई, वह आजाद भारत में किसी विरले नेता को ही मिल पाई है। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि ऐतिहासिक रामलीला मैदान से उठा यह तूफान खुद ही भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंसा नजर आ रहा है। ऐसा क्या हुआ कि खुद को देश का बेटा कहलाने वाला यह नेता विरोधी नेताओं और देश के एक वर्ग में विलेन के रूप में जाना जाने लगा। 

रामलीला मैदान ने बडे़ आंदोलन को जन्म दिया

वर्ष 2011 में केजरीवाल ने रामलीला मैदान से देश के सुकुमार बुजुर्ग आंदोलनकारी अन्ना हजारे के साथ इंडिया अगेंस्ट करप्शन (India Against Corruption) अभियान की शुरुआत की। इससे पहले तक वह एक एनजीओ चलाते थे और दूरदर्शन पर आरटीआई से जुड़े सवालों का जवाब देते थे। यह अभियान जल्द ही बवंडर में बदल गया और दिल्ली ही नहीं बल्कि देशभर के युवाओं ने इसमें भारी शिरकत की। तब दिल्ली के बुजुर्ग बताते हैं कि आजादी के बाद उन्होंने दिल्ली में पहला आंदोलन साल 1977 में जयप्रकाश नारायण का देखा था और आज ऐसा ही जोश रामलीला मैदान के इस आंदोलन में देख रहे हैं। यही से AK ने देश के भ्रष्ट लोकतंत्र व भ्रष्टाचार पर चोट की और रातों-रात नायक की छवि पा गए। उनकी बातों में इतना तेज था, उनकी बॉडी लैंग्वेज इतनी आकर्षक थी कि अन्ना का तेज इस सूरज के आगे फीका पड़ता दिखने लगा।

मैदान में ‘अंधेरे में’ कविता के पात्र दिखाई देते थे

AK के इस आंदोलन ने सबसे अधिक युवाओं को आकर्षित किया। आम युवाओं के साथ एमबीए, विदेश से डिग्री पाए युवा, विदेशी संस्थानों में नौकरी करने वाले युवा इस आंदोलन से जुड़ गए। लोग बताते हैं कि दिल्ली की सड़कों, बसों और मेट्रो में युवाओें का जुनून देखते ही बनता था। सफेद टोपी लगाए इन युवाओं को देखकर लग रहा था कि देश वाकई भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा। वह इसलिए लगा कि इस आंदोलन में कुमार विश्वास, किरण बेदी, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रो. आनंद कुमार जैसे लोग जुड़ते चले गए। इसके अलावा देश की नामी हस्तियों ने इस आंदोलन का समर्थन किया था। रामलीला मैदान में एक अलग ही नजारा दिखाई देता था और मुक्तिबोध की लंबी कविता ‘अंधेरे में’ के ‘उद्योगपति, विद्वान और डोमी जी उस्ताद’ भी वहां दिखाई दिए, लेकिन उनका एक ही मकसद था, देश से भ्रष्टाचार को हटाना है।

कांटों का ताज बनी उनकी पहली सरकार

युवाओं का जोश, मीडिया में होता नाम और बड़े नेताओं के खिलाफ उठाए गए भ्रष्टाचार के मुद्दों ने केजरीवाल की इच्छाओं को पर लगाए, अगले ही साल उन्होंने आम आदमी पार्टी नामक राजनैतिक दल का गठन किया। साल 2013 के दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 28 सीटें जीतकर पार्टी ने शानदार शुरुआत की। लेकिन बहुमत किसी के पास नहीं था। केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकारी बनाई। लोगों का लगा कि अब दिल्ली और देश में रामराज आ गया है। लेकिन कांटों में उलझी उनकी यह सरकार 49 दिन का ही सफर पूरा कर पाई। उन्होंने लोकपाल के मामले में इस्तीफा दे दिया। वैसे सूत्र बताते हैं कि बीजेपी ने उनकी पार्टी को तोड़कर सरकार बनाने की पूरी तैयारी कर ली थी। आप के विधायक रंगरूट थे। केजरीवाल को पता था कि उनकी पार्टी टूट सकती है। इसलिए विधानसभा भंग कर दी।   

AK से बिछुड़े सभी बारी-बारी

अब हम सीधे उनके राजनैतिक उछाल की ओर बढ़ते हैं। केजरीवाल ने साल 2015 में दिल्ली में स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। सरकार चलने लगी, वादे पूरे होते, इससे पहले ही पार्टी में मनमुटाव शुरू हो गया। जो नेता केजरीवाल के साथ गलबहियां डाले हुए थे, वे विभिन्न कारणों से एक के बाद एक केजरीवाल से अलग होते गए। इनमें अन्ना हजारे भी शामिल थे।  केजरीवाल ने एकला चलो रे वाल रुख अपना लिया। उनकी कार्यप्रणाली को लेकर संदेह उठे, लेकिन उन्होंने सरकार की तिजोरी खोल दी और दिल्ली वाले गदगद हो उठे। उन्होंने दिल्ली वाली रणनीति दूसरे प्रदेशों में भी फैलाने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। उनकी इच्छाएं अनंत थी, लेकिन राह में रोड़े भी नजर आने लगे।

वर्ष 2020 के बाद संकट के बाद मंडराने लगे

साल 2020 में दिल्ली में केजरीवाल को फिर से दिल्ली की सत्ता प्राप्त हुई। इससे आगे-पीछे उनकी पार्टी ने कई राज्यों में चुनाव लड़े, लोकसभा चुनाव में भी हाथ आजमाया लेकिन दिल्ली जैसी फतह नहीं मिल पाई। मुद्दा उनका सब जगह भ्रष्टाचार के ही खिलाफ था, लेकिन लोगों ने उसमें रुचि नहीं दिखाई। इस दौरान पार्टी पर संकट के बादल मंडराने लगे। मनी लॉन्ड्रिंग के चलते उनकी सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन जेल चले गए। उसके बाद आया करोड़ों रुपयों का शराब घोटाला। इसकी जद में पहले आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया जेल गए, सांसद संजय सिंह भी सलाखों के पीछे पहुंच गए और अब केजरीवाल भी गिरफ्तार कर लिए गए हैं।

कई घोटालों में फंस गई केजरीवाल सरकार

हैरानी की बात यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ही केजरीवाल ने लड़ाई शुरू की थी। उसी ने उन्हें हीरो बनाया ओर आज वह भ्रष्टाचार के आरोप में ही जकड़े गए हैं। वह खुद और उनकी पार्टी के नेता लगातार आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी और उनकी एजेंसियां उन्हें गलत आरोप में फंसा रही हैं, लेकिन इन्हीं आरोपों में उनके नेताओं की जमानत तक नहीं हो पा रही हैं। अभी जल बोर्ड घोटाले की जांच चल रही है। स्कूलों की इमारतों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और देश का एक बड़ा वर्ग उन्हें संदेह की नजरों से देख रहा है। अब अगर कोर्ट उन्हें आरोपों से बरी कर देता है तो सब कुछ ठीक हो जाएगा वरना देश एक बार फिर से किसी नेता के वादों से गदगद होकर और फिर उसका हश्र देखकर अपने का छला हुआ महसूस करेगा।

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