NEW DELHI. ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन यानी बीबीसी की गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री पर भारत में विवाद हो रहा है। कई यूनिवर्सिटीज में छात्र डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर आमादा हैं। उधर, केंद्र सरकार ने डॉक्यूमेंट्री को प्रतिबंधित कर दिया है। डॉक्यूमेंट्री में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दंगों का आरोपी बताया गया है। लेकिन सच तो ये है कि सुप्रीम कोर्ट से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट मिल चुकी है।
पिछले साल गुजरात के पूर्व सांसद की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मोदी को निर्दोष करार दिया था। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार ने खारिज कर दिया, लेकिन बात यहीं नहीं थमी। जेएनयू, जामिया मिलिया, दिल्ली यूनिवर्सिटी, जाधवपुर यूनिवर्सिटी, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु से डॉक्यूमेंट्री को लेकर विवाद की खबरें सामने आईं। बात हिंसा तक भी पहुंची।
क्या है डॉक्यूमेंट्री में?
इंडिया: द मोदी क्वेश्चन में गुजरात दंगों में तत्कालीन गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। इस डॉक्यूमेंट्री में गुजरात में मोदी के शासन को मुसलमानों और लोकतंत्र के लिए खतरा दर्शाया गया। ब्रिटेन में रह रहे भारतीय समुदाय ने भी इस पर सवाल किए। भारतीय समुदाय ने बीबीसी की एक अन्य डॉक्यूमेंट्री को लेकर कहा कि आईएसआईएस की आतंकी की पत्नी के साथ बीबीसी की सहानुभूति है, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुने हुए प्रधानमंत्री की इमेज खराब की जा रही है।
क्या हुआ था गुजरात में?
गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को कारसेवकों से भरी ट्रेन की एक बोगी एस-6 में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हुई थी। इसका आरोप स्थानीय मुस्लिम संगठनों पर लगा था और 1500 लोगों पर एफआईआर की गई थी। इसके बाद 28 फरवरी को पूरे गुजरात में भीषण दंगा शुरू हो गया था।
मामला कोर्ट में गया, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
गुजरात दंगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च 2008 को एसआईटी का गठन किया। शीर्ष कोर्ट ने एसआईटी को 11 सितंबर 2011 को अपनी रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। 8 फरवरी 2012 को एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी, जिसमें गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को क्लीन चिट दी गई।
इस रिपोर्ट के विरोध में जकिया जाफरी ने प्रोटेस्ट पिटीशन स्थानीय अदालत में दायर की। इस याचिका को मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट ने खारिज कर एसआईटी रिपोर्ट को मान्य किया। फैसले के खिलाफ जकिया हाईकोर्ट गईं, जहां से भी उनकी याचिका खारिज की गई। इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट गईं, जहां 24 जुलाई 2022 को याचिका खारिज कर दी गई।