भीष्म साहनी : एक ऐसे साहित्यकार जिन्होंने 'तमस' में बयां कर दी विभाजन की त्रासदी

8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हरवंशलाल साहनी और लक्ष्मी देवी के घर एक बालक का जन्म हुआ। इस बालक का नाम रखा गया भीष्म साहनी। भीष्म साहनी मका बचपन रावलपिंडी में गुजरा। वे एक माध्यम वर्गीय परिवार से थे

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Shrawan mavai
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Bhishma Sahni Birthday Tamas
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हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद के बाद अगर किसी साहित्यकार या कहानीकार का नाम आता है तो वे भीष्म साहनी हैं। अगर किसी को विभाजन के दर्द को पढ़ना ,समझना हो तो 'तमस' उपन्यास एक खजाने के बक्से की तरह है। इसके लेखक भीष्म साहनी ही थे। इस उपन्यास से प्रेरित होकर बॉलीवुड में कई फिल्मों का निर्माण किया जा चुका है। साल 1998 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया गया था। 

भीष्म साहनी न केवल अच्छे उपन्यासकार थे बल्कि, एक अनुवादक, संपादक और अध्यापक भी थे। वे हिंदी साहित्य की 'प्रगतिशील धारा' के प्रमुख रचनाकार थे। हिंदी साहित्य के प्रेमियों के लिए उनकी रचनाएं किसी खजाने से कम नहीं है। भारत के विभाजन और लाखों - करोड़ों लोगों के विस्थापन की जो तस्वीर उन्होंने अपने उपन्यास में उकेरी है उसका कोई जवाब ही नहीं। उपन्यास 'तमस' के लिए तो उन्हें साल 1975 में "साहित्य अकादमी पुरस्कार" (Sahitya Akademi Award) तक मिल चुका है। 

पाकिस्तान में जन्में थे भीष्म साहनी

8 अगस्त 1915 को में रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हरवंशलाल साहनी और 'लक्ष्मी देवी’ के घर एक बालक का जन्म हुआ। इस बालक का नाम रखा गया भीष्म। भीष्म साहनी का बचपन रावलपिंडी में गुजरा। वे एक माध्यम वर्गीय परिवार से थे। उनके बड़े भाई का नाम 'बलराम साहनी' था। भारतीय सिनेमा उनका अहम योगदान रहा है। रावलपिंडी में रहते हुए भीष्म प्रगतिशील विचारों से प्रभावित हुए। इसके कारण आगे जाकर वे प्रगतिशील साहित्य के अग्रणी साहित्यकार बन गए।

गुरुकुल में ली शिक्षा

भीष्म साहनी ने एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लिया था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल में ही हुई।  मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परीक्षा डीएवी कॉलेज में प्राप्त की। गुरुकुल में प्रारंभिक शिक्षा के कारण वे हिंदी और संस्कृत में माहिर थे, लेकिन आगे की शिक्षा लेने के लिए वे लाहौर चले गए। लाहौर में उन्हें सरकारी कॉलेज में दाखिला मिल गया।  सरकारी कॉलेज में दाखिला लेने के बाद उन्होंने तय कर लिया था कि अब वे एक साहित्यकार बनेंगे। उन्होंने अंग्रेजी में बीए और एमए किया।

16 की उम्र में लिखने लगे थे कहानियां और लेख 

जिस उम्र में बालक मौज मस्ती किया करते हैं उस उम्र में ही भीष्म कहानियां, लेख और संस्मरण लिख अपनी लिखावट को निखारने का प्रयास करने लगे थे। वे देश की मौजूदा परिस्थितियों और इसके प्रभाव को भी समझने लगे थे। उनकी लिखावट में वो गंभीरता आने लगी थी जिसने उन्हें तमस जैसे उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित किया।

एक अध्यापक के रूप में भीष्म साहनी

MA की पढ़ाई पूरी करने के बाद भीष्म साहनी ने पिता के साथ व्यापार में हाथ बंटाया, लेकिन मन न लगने के कारण शिक्षक के रूप में काम करने लगे। उन्होंने ‘खालसा कॉलेज’ में शिक्षक का कार्य किया। इसके साथ ही वह ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ व ‘अफ्रो-एशियाई लेखक संघ’ के सदस्य भी थे। वे एक कुशल अनुवादक भी थे। भारत सरकार द्वारा उन्हें रूस भेजा गया था ताकि वे रूसी भाषा में लिखी किताबों का अनुवाद कर सकें। भारत लौटने के बाद उन्होंने ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ के ‘जाकिर हुसैन कॉलेज’ में शिक्षक के रूप में काम किया।

भीष्म साहनी की रचनाएं

उनके द्वारा उपन्यास से लेकर कहानियां तक लिखी गई। उपन्यास में तमस, झरोखे, मय्यादास की माड़ी, बसंती, कुंतो, नीलू नीलिमा नीलोफर और कड़ियां शामिल हैं। वही कहानियों की बात की जाए तो भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती, राख, पटरियां, वाङ्चू, शोभा यात्रा, निशाचर, पाली, डायन जैसी कहानियां बेहतरीन मानी जाती है। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी जिसका शीर्षक था - 'आज के अतीत'। 

11 जुलाई 2003 को 88 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी कई साहित्यकारों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। उनके उपन्यास में प्रगतिशील विचार और मार्मिक विवरण...अपने साहित्य के जरिए वे सदैव विचारों में जीवित रहेंगे।  

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