रविकांत दीक्षित, अयोध्या
इतिहास गवाह रहा है कि अयोध्या ने हमेशा सच्चे राजा के साथ विश्वास घात किया है। आज अयोध्या के हिंदुओ को देखकर रामलला भी दुखी होंगे। कुछ ऐसे ही लाखों पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हैं। इसके उलट एक दूसरा धड़ा वहां पिछले दिनों हुई अतिक्रमणरोधी कार्रवाई को लेकर बीजेपी को घेर रहा है।
कुल मिलाकर अयोध्या में बीजेपी हार गई। देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इस बात की चर्चा है। हर कोई वहां के मतदाताओं को कोस रहा है। 22 जनवरी को अवध में रामलला के मंदिर निर्माण के उद्घाटन के बाद यह दूसरा मौका है, जब वर्चुअल दुनिया में अयोध्या छाई हुई है।
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दरअसल, अयोध्या यूपी के फैजाबाद संसदीय क्षेत्र में आता है। यहां बीजेपी ने यहां लल्लू सिंह को प्रत्याशी बनाया था। वे दो बार इससे पहले सांसद रहे चुके हैं। उनके सामने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अवधेश प्रसाद थे। अवधेश प्रसाद ने लल्लू सिंह को 54 हजार 567 वोटों से हराया है।
फैजाबाद क्यों हारी बीजेपी 5 पॉइंट में समझिए
सवाल: बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह क्यों हारे?
जवाब: बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह इससे पहले 2014 और 2019 में सांसद चुने जा चुके हैं। इन 10 वर्षों में वे क्षेत्र में अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। बीजेपी संगठन ने भी श्रीराम मंदिर की आंधी में कार्यकर्ताओं या क्षेत्रीय नेताओं से कोई सलाह मशविरा नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि सच्चिदानंद पांडेय जैसे नेता बीजेपी से दूर चले गए। चुनाव के ऐलान से पहले ही पांडेय बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए थे। बसपा ने उन्हें फैजाबाद से टिकट भी दे दिया। अब नतीजों में उन्हें 40 हजार से ज्यादा वोट मिले। यानी लल्लू सिंह जो 54 हजार वोटों से हारे हैं, उसमें सच्चिदानंद ने भी उन्हें नुकसान पहुंचाया।
सवाल: बीजेपी से चूक कहां-कहां हुई?
जवाब: अयोध्या में श्रीराम मंदिर के बाद जमीन अधिग्रहण का मुद्दा सबसे आगे था। सड़क चौड़ीकरण और बाकी निर्माण कार्यों के लिए सरकार ने कब्जे हटाए। इससे लोगों में नाराजगी थी। बीजेपी इस नाराजगी को समझ नहीं पाई और इसका बदला लोगों ने चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह को हराकर लिया। बीजेपी तो पूरे समय इसी मोड में रही कि राम मंदिर के मुद्दे पर लोग पार्टी को बढ़-चढ़कर वोट करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ।
सवाल: क्या लल्लू सिंह का संविधान वाला बयान घातक साबित हुआ?
जवाब: जानकार कहते हैं कि एक तो लल्लू सिंह अपने पहले दो कार्यकाल में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। न तो वे आम जन के बीच पहुंच और न ही विकास कार्यों में ज्यादा रुचि दिखाई। लल्लू सिंह बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ते रहे। उन्होंने स्थानीय मुद्दों की तरफ गौर ही नहीं किया। दूसरा, लल्लू ने कहा था कि बीजेपी को 400 सीट इसलिए चाहिए, क्योंकि संविधान बदलना है। इस बयान को अखिलेश और राहुल गांधी ने इस तरह से सबके सामने रखा कि यदि भाजपा 400 पार जाती है, तो वह संविधान बदल सकती है।
सवाल: क्या सपा ने एक शानदार रणनीति बनाई थी?
जवाब: हां, बिल्कुल कह सकते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो एक सभा में अपने प्रत्याशी अवधेश प्रसाद को पूर्व विधायक कहते हुए वर्तमान सांसद करार दिया था। उनका यह वीडियो तब खूब वायरल हुआ। यही वीडियो अब फिर वायरल हो रहा है। जनता कह रही है कि अखिलेश ने पहले ही इसका ऐलान कर दिया था। रणनीति की बात करें तो सपा ने शहर और ग्रामीण इलाकों के लिए अलग—अलग रणनीति बनाई। जरूरत के हिसाब से प्रचार किया। अखिलेश ने स्वयं फैजाबाद संसदीय क्षेत्र के मिल्कीपुर और बीकापुर में बड़ी चुनावी सभाएं की। उन्होंने जमीन अधिग्रहण, मुआवजा और नौकरी जैसे मुद्दे उठाकर माहौल अपने पक्ष में किया।
सवाल: जातीय समीकरणों का कितना असर रहा?
जवाब: फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा क्षेत्र में 22 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं। इसके बाद 21 फीसदी दलित, 19 प्रतिशत मुस्लिम, 6 फीसदी ठाकुर, 18 प्रतिशत ब्राह्मण और करीब 10 फीसदी वैश्य वोटर्स हैं। विपक्ष ने दलित, मुस्लिम और ओबीसी कॉम्बिनेशन को साधा। लिहाजा, मुस्लिमों ने इंडिया गठबंधन यानी सपा प्रत्याशी को वोट दिए। इसी के साथ जिस हिंदू वोट के सहारे बीजेपी को जीत मिल रही थी, इंडिया गठबंधन उसे बांटने में कामयाब रहा। बसपा का दलित वोट, ओबीसी और ब्राह्मण और ठाकुर वोटों की नाराजगी भी एक वजह रही, जिससे भाजपा को बड़ा झटका लगा।
फ्लैशबैक: 7 बार जीत चुकी है Congress
पिछले चुनावों के नतीजों पर नजर दौड़ाएं तो फैजाबाद सीट पर 7 बार कांग्रेस जीती है। 4 बार बीजेपी को जीत मिली है। इसी के साथ यहां सपा, बसपा और भारतीय लोक दल के प्रत्याशी भी जीत चुके हैं।
कब-किस पार्टी के उम्मीदवार जीते
1952: श्यामा प्रसाद मुखर्जी (भारतीय जन संघ)
1957: चन्द्र भानु गुप्त (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1962: दीनदयाल उपाध्याय (भारतीय जन संघ)
1967: हेमवती नंदन बहुगुणा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1971: राम मनोहर लोहिया (समाजवादी पार्टी)
1977: अमरनाथ सिंह (जनता पार्टी)
1980: मिथिलेश कुमार (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1984: मिथिलेश कुमार (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989: विनय कटियार (भारतीय जनता पार्टी)
1991: विनय कटियार (भारतीय जनता पार्टी)
1996: राम विलास वेदांती (भारतीय जनता पार्टी)
1998: विनय कटियार (भारतीय जनता पार्टी)
1999: निर्मल खत्री (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2004: मिथिलेश कुमार (समाजवादी पार्टी)
2009: निर्मल खत्री (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2014: लल्लू सिंह (भारतीय जनता पार्टी)
2019: लल्लू सिंह (भारतीय जनता पार्टी)
अब आते हैं सोशल मीडिया पर...
एक यूजर ने एक्स पर लिखा,
जिस सरकार ने पूरे अयोध्या को चमका दिया।
नया एयरपोर्ट दिया, रेलवे स्टेशन दिया।
500 सालों के बाद राम मंदिर बनवाकर दिया।
पूरी की पूरी एक मंदिर इकोनॉमी बनाकर दी।
उस पार्टी को अयोध्या की सीट पर हार का सामना करना पड़ा। मैंने खुद देखा है जितना विकास अयोध्या का बीजेपी ने किया है।
दूसरे यूजर ने महिला का बिलखते हुए वीडियो पोस्ट कर लिखा,
ऐसे कैसे अयोध्या जीत जाते? तुमने देखा नहीं आंखों का समंदर होना।
इसी तरह एक्स, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर अयोध्या को लेकर तमाम पोस्ट किए जा रहे हैं।
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