नई दिल्ली. देश में जातिगत जनगणना की मांग उठ रही है। बिहार इसकी अगुआई कर रहा है। 23 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) समेत 10 पार्टियों के नेताओं ने मुलाकात की। राजद नेता तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) भी मीटिंग में शामिल रहे। नीतीश ने कहा कि बिहार की जातियों के संबंध में हमने प्रधानमंत्री को जानकारी दी, उन्होंने ध्यान से सुना। बिहार की सभी पार्टियां की इसमें एकराय हैं। प्रधानमंत्री ने जातिगत जनगणना की मांग को नकारा नहीं। तेजस्वी बोले कि जब पेड़-पौधों, जानवरों की गिनती हो सकती है तो जातियों की क्यों नहीं, ये राष्ट्रहित में है।
आंकड़े आने के बाद लागू होंगी कल्याणकारी योजनाएं
राजद नेता तेजस्वी ने ये भी कहा कि जातियों को ओबीसी में शामिल करने का हक राज्य सरकारों को दे दिया गया है, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि, हमारे पास कोई आंकड़े ही नहीं हैं। एक बार आंकड़े सामने आ जाएंगे तो सरकारें उसके हिसाब से कल्याणकारी योजनाओं को भी लागू कर पाएंगी।
आरक्षण में ट्रांसपेरेंसी आएगी
कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने कहा कि जाति आधारित जनगणना महत्वपूर्ण है। यह आरक्षण को पारदर्शी बनाएगी, जिससे समाज में द्वेष दूर होगा। क्रीमीलेयर और नॉन-क्रीमी लेयर के लोगों का भी पता चल सकेगा। वहीं, सीपीआईएम (CPI-M) के अजय कुमार ने कहा कि जाति आधारित शोषण से मुक्ति के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है।
बिहार में दो बार पास हो चुका है प्रस्ताव
बिहार विधानसभा में दो बार जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित हो चुका है। देश में आखिरी जातीय जनगणना 1931 में हुई। इससे पहले 10-10 साल में जातीय जनगणना होती रही है। 2011 में भी जाति आधारित जनगणना कराई गई थी, लेकिन सरकार ने इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए थे।