NEW DELHI. समलैंगिक जोड़ों की समस्याओं का हल करने के लिए केंद्र सरकार पैनल बनाने को तैयार हो गई है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सरकार ने यह कहा है। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- समलैंगिक जोड़ों के सामने आने वाली समस्याओं को लेकर एक पैनल का गठन होगा। जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव के गठन में की जाएगी। इसके लिए याचिकाकर्ता भी अपना सुझाव दे सकते हैं। ज्ञात हो कि 1 मई को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को संवैधानिक बेंच ने कहा- अगर पति-पत्नी का रिश्ता टूट चुका है और उसमें सुलह की बिल्कुल भी गुंजाइश नहीं बची है, तो ऐसी स्थिति में कोर्ट संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए तलाक को मंजूरी दे सकता है।
समलैंगिक जोड़ों पर विचार करेगी समिति
सेम-सेक्स मैरिज के मामले पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान बेंच सुनवाई कर रही है। देशभर से समलैंगिकों ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है। उनकी मांग है कि समलैंगिक जोड़ों के विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कानूनी मान्यता दी जाए। सेम-सेक्स मैरिज के मामले पर केंद्र सरकार ने कहा है कि वह समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक फायदे देने पर विचार के लिए समिति बनाएगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में विभिन्न मंत्रालयों के बीच कोऑर्डिनेशन की जरूरत पड़ेगी। कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में समिति बनाई जाएगी और वह याचिकाकर्ताओं के सुझावों पर विचार करेगी।
25 अप्रैल को हुई थी सुनवाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानिक पीठ ने 25 अप्रैल को सुनवाई हुई थी। इस दौरान शीर्ष कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने अहम टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाना इतना आसान भी नहीं है, जितना कि यह दिखता है। इस मुद्दे पर कानून बनाने के लिए संसद के पास निर्विवाद रूप से विधायी शक्ति हैं। ऐसे में हमें इस विचार करना है कि हम इस दिशा में कितनी दूर तक जा सकते हैं।
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याचिकाकर्ताओं ने दी थी यह दलील
समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अपनी दलील पेश की थी। समलैंगिक विवाह के अधिकार को मान्यता देने का अनुरोध करते उन्होंने पीठ से कहा कि अदालत ऐसा कहकर कि वह इस मुद्दे पर कुछ नहीं कर सकती, अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती। उन्हें कुछ राहत तो देनी ही चाहिए।
LGBTQIA+ से भारत की जीडीपी का 7 प्रतिशत प्रभावित होगा
समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी न देना किसी व्यक्ति के साथ लैंगिक आधार पर खुला भेदभाव होगा। इतना ही नहीं, यह ऐसे व्यक्तियों को दूसरे देशों में जाने के लिए मजबूर करेगा, जहां समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी दी गई है। याचिकाकर्ताओं के पक्ष की ओर से पेश किरपाल ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि LGBTQIA+ से भारत की जीडीपी का सात प्रतिशत प्रभावित होगा।