NEW DELHI. कानून मंत्री किरण रिजिजू ने CJI को चिट्ठी लिखकर कहा है कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकारी प्रतिनिधि शामिल करने से सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और जनता के प्रति जवाबदेही भी तय होगी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी है कि कॉलेजियम में उसके प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए। रिजिजू ने पिछले साल नवंबर कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है। हाईकोर्ट में भी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में संबंधित राज्य की सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए। लोकसभा उपाध्यक्ष भी कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट अक्सर विधायिका के कामकाज में दखलंदाजी करता है।
केजरीवाल बोले- न्यायिक नियुक्तियों में सरकारी हस्तक्षेप न हो
अब इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह बेहद खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में सरकारी हस्तक्षेप बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
दो बड़े सवाल...केंद्र के सुझाव और जजों की नियुक्ति पर
टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कानून मंत्री के सुझाव को सुप्रीम कोर्ट मान ले, ऐसा मुश्किल है। CJI चंद्रचूड़ की अगुआई वाले कॉलेजियम में 5 और सदस्य हैं। इनमें जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस.अब्दुल नजीर, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल हैं। पहले इसमें सीजेआई के अलावा 4 और जस्टिस थे, जिनमें कोई भी CJI का उत्तराधिकारी नहीं था। इसीलिए बाद में जस्टिस संजीव खन्ना को 6वें मेंबर के तौर पर कॉलेजियम में शामिल किया गया, जो कि CJI के उत्तराधिकारी हैं।
नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट लाने की कोशिश
कॉलेजियम इस सुझाव को सुप्रीम कोर्ट सरकार की नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट (NJAC) लाने की सरकार की नई कोशिश के तौर पर देख रहा है। NJAC को 2015 में संसद में पास किया गया था, लेकिन अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया था।
केंद्र जजों के चयन में कैसा बदलाव चाहता है?
जिस NJAC को सुप्रीम कोर्ट 2015 में असंवैधानिक कह चुका है। उसमें जजों की नियुक्ति को लेकर कई बदलाव किए गए थे। इसमें NJAC की अगुआई CJI को करनी थी। इनके अलावा 2 सबसे वरिष्ठ जजों को रखा जाना था। इनके अलावा कानून मंत्री और 2 प्रतिष्ठित लोगों को NJAC में रखे जाने की व्यवस्था थी। प्रतिष्ठित लोगों का चयन प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और CJI के पैनल को करने की व्यवस्था थी। अभी जजों की नियुक्ति पर रिजिजू का पत्र ऐसी ही व्यवस्था के लिए माना जा रहा है।
यह विवाद कब से और क्यों शुरू हुआ...
1. जस्टिस रूमा पाल ने पहले कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की थी
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रूमा पाल ने करीब एक दशक पहले कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम प्रक्रिया ने ऐसी धारणा बनाई है कि आप मेरा बचाव करो और मैं आपका।
2. कॉलेजियम की ओर से भेजे नामों को मंजूरी देने में देरी
केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नामों को मंजूरी देने में देरी कर रही है। सरकार के पास कॉलेजियम की ओर से भेजी गईं करीब 104 सिफारिशें लंबित हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने सरकार से लंबित नामों को जल्द से जल्द निपटाने को कहा था।
3. देश में 5 करोड़ से अधिक केस लंबित
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है। जबकि जजों की नियुक्ति करना सरकार का अधिकार है। देश में 5 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। इसके पीछे मुख्य कारण जजों की नियुक्ति है।
4. यह देश का कानून है, सभी इसका पालन करें
कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जारी बयानबाजी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके खिलाफ टिप्पणी ठीक नहीं है। यह देश का कानून है और हर किसी को इसका पालन करना चाहिए।
ऐसे समझें सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम क्या है
यह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रणाली है। कॉलेजियम के सदस्य जज ही होते हैं। वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नए जजों की नियुक्ति के लिए नामों का सुझाव भेजते हैं। मंजूरी मिलने के बाद जजों को अप्वाइंट किया जाता है। देश में कॉलेजियम सिस्टम साल 1993 में लागू हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में पांच सदस्य होते हैं
कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं। CJI इसमें प्रमुख होते हैं। इसके अलावा 4 मोस्ट सीनियर जज होते हैं। इसमें CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अजय रस्तोगी शामिल हैं। कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके नाम की सिफारिश केंद्र से करता है।