बजट में सरकार बताती है कि वो कहां से कितना कमाएगी और कहां खर्च करेगी? निर्मला सीतारमण ने बताया है कि 2024-25 में सरकार 48.20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करेगी। ये सिर्फ बजट अनुमान है। आमतौर पर जितना अनुमान होता है, उससे ज्यादा ही खर्च हो जाता है।
सरकार का अनुमान है कि एक साल में वो जो 48.20 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी, उसके लिए 31.29 लाख करोड़ तो टैक्स से आ जाएंगे, लेकिन बाकी का खर्च चलाने के लिए सरकार उधार लेगी। सरकार 16.13 लाख करोड़ रुपए उधार लेगी। सरकार के खर्च का एक बड़ा हिस्सा उधारी पर लगे ब्याज को चुकाने में ही चला जाता है।
कहां से कमाएगी ?
अगर सरकार 1 रुपया कमाएगी तो उसमें 27 पैसा उधारी का होगा। इसके बाद 19 पैसा इनकम टैक्स से, 18 पैसा जीएसटी से और 17 पैसा कॉर्पोरेशन टैक्स से मिलेगा। इसके अलावा 9 पैसा नॉन-टैक्स रेवेन्यू से, 5 पैसा एक्साइज ड्यूटी से, 4 पैसा कस्टम ड्यूटी से और 1 पैसा नॉन-डेट रिसीट से कमाएगी।
कहां खर्च करेगी?
सरकार के 1 रुपए के खर्च में 19 पैसा ब्याज चुकाने में चला जाएगा। 21 पैसा राज्यों को टैक्स और ड्यूटी में हिस्सा देने में खर्च हो जाएगा। इसके अलावा 16 पैसा केंद्र और 8 पैसा केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में खर्च होगा। 8 पैसा रक्षा, 6 पैसा सब्सिडी और 4 पैसा पेंशन पर खर्च होगा। बाकी का 18 पैसा अन्य खर्चों में लगेगा।
सरकार कहां से लेगी कर्ज
ऐसे में सवाल उठता है सरकार तो सरकार है, उसे उधार लेने की क्या जरूरत? और अगर उधार ले भी रही है तो कहां से? इसका जवाब है कि सरकार के पास उधार लेने के दर्जनों रास्ते हैं।
एक होता है देसी कर्ज, जिसे इंटरनल डेट भी कहा जाता है। इसमें सरकार बीमा कंपनियों, कॉर्पोरेट कंपनियों, आरबीआई और दूसरे बैंकों से कर्ज लेती है। दूसरा होता पब्लिक डेट यानी सार्वजनिक कर्ज, जिसमें ट्रेजरी बिल, गोल्ड बॉन्ड और स्मॉल सेविंग स्कीम होती हैं।
कितना कर्ज है सरकार पर?
वित्त मंत्रालय के मुताबिक, 31 मार्च 2024 तक केंद्र सरकार पर 168.72 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था। इसमें से 163.35 लाख करोड़ इंटरनल डेट थी, जबकि, 5.37 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बाहर से लिया गया था। भारत पर इस वक्त जीडीपी का 81% कर्ज है। इसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का कर्ज शामिल है। हालांकि, कोरोना महामारी के वक्त 2020-21 में ये कर्ज बढ़कर 89% तक पहुंच गया था।
क्या है इसका समाधान ?
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की सरकारें देश चलाने के लिए कर्ज लेती हैं। हालांकि अमेरिका और चीन जैसे विकसित देश अपने ही रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं, जबकि भारत अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और कॉर्पोरेट कंपनियों से ज्यादा कर्ज लेता है। ऐसी स्थिति में उसके लिए कर्ज चुका पाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
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