भारत में 6 महीने से लेकर करीब 2 साल तक के बच्चों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सुझाया गया पोषक आहार नहीं मिल रहा है। देश के मध्य क्षेत्र में इस न्यूनतम आहार मानक को पूरा न करने वाले बच्चों की संख्या अधिक है। दरअसल, डब्ल्यूएचओ एक बच्चे के आहार की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए न्यूनतम आहार विविधता (एमडीडी) स्कोर इस्तेमाल करने का सुझाव देता है।
मध्य प्रदेश के बुरे हाल
जानकारी के मुताबिक, इसे विविधता तब माना जाता है जब इसमें मां का दूध, अंडे, फलियां, मेवे, फल और सब्जियां समेत पांच या उससे अधिक खाद्य समूह शामिल हों। नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुए रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 77 फीसदी से अधिक बच्चों के आहार में विविधता की कमी पाई गई है। इन राज्यों के अलावा दो पूर्वोत्तर राज्यों सिक्किम और मेघालय में 50 फीसदी से कम बच्चों में यह समस्या देखी गई है।
75% से अधिक आबादी न्यूनतम आहार नहीं खाती
राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान समेत कई शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (NFHS-5) के आंकड़ों का अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि 2005-06 में 87.4% लोग विविध आहार नहीं खा रहे थे, लेकिन 14 वर्षों में इसमें थोड़ा सुधार हुआ है। अब 75% से अधिक आबादी न्यूनतम विविध आहार नहीं खाती है।
फलों और सब्जियों की खपत में वृद्धि
शोधकर्ताओं के अनुसार, विटामिन ए से भरपूर फलों और सब्जियों की खपत में 7.3% की वृद्धि हुई। वहीं, इसी अवधि में फलों और सब्जियों की खपत में 13% की वृद्धि हुई। हालांकि, स्तन दूध और डेयरी उत्पादों की खपत एनएफएचएस-3 में 87% से घटकर एनएफएचएस-5 में 85% हो गई। यह 54% से घटकर 52% हो गई। वहीं, बच्चों के आहार में विविधता की कमी के बारे में शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका कारण ग्रामीण माताओं की अशिक्षा भी है, जिसके कारण बच्चों को समय पर पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं।
पोषण संबंधी सुझाव देने की जरुरत
शोधकर्ताओं ने बच्चों के आहार में विविधता की कमी से निपटने के लिए सरकार से बड़े स्तर पर काम करने की बात कही है। इसके लिए बेहतर सार्वजनिक वितरण प्रणाली, गहन एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम, सोशल मीडिया का उपयोग और स्थानीय प्रशासन के माध्यम से पोषण संबंधी सुझाव देने की आवश्यकता है।
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