अमेरिका भले ही चीन को नहीं झुका पाया लेकिन भारत ने यह काम कर दिखाया है। टैरिफ युद्ध का असर ऐसा हुआ कि चीन की कंपनियां भारत में निवेश के लिए तमाम शर्तों को मानने पर तैयार हो गई हैं। चीन की कई बड़ी कंपनियां जैसे हायर (Haier) और शंघाई हाईली ग्रुप (Shanghai Highly Group) अब भारत की शर्तों पर भारत में निवेश को तैयार हैं। सूत्रों के अनुसार, इन कंपनियों ने भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रमुख नियमों को मानने का फैसला किया है — खासकर ज्वाइंट वेंचर में माइनोरिटी हिस्सेदारी बनाए रखने की शर्त।
हायर पहले 26% हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रहा था, अब यह 51-55% तक हिस्सेदारी बेचने के लिए तैयार हो गया है। यह बदलाव भारत सरकार के एफडीआई (FDI) दिशानिर्देशों और पीएलआई योजना (PLI Scheme) की सफलता को दर्शाता है।
शंघाई हाईली ग्रुप अब वोल्टास (Voltas) के साथ एक नया समझौता करने को तैयार है जिसमें वह माइनोरिटी स्टेक रखेगी। साथ ही, वह तकनीकी साझेदारी के अंतर्गत टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी करेगी।
क्यों बदला चीन का रवैया?
अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार तनाव ने चीनी कंपनियों को वैश्विक बाजार में अस्थिर बना दिया है। टैरिफ बढ़ने से अमेरिकी बाजार में चीनी सामान महंगे हो गए हैं। ऐसे में भारत उनके लिए एक बड़ा और रणनीतिक बाजार बनकर उभरा है।
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कौन सी शर्तें मानेगा चीन
- चीनी कंपनियों को अब भारत में 50% से कम हिस्सेदारी के साथ काम करना होगा।
- नई तकनीक के साथ स्थानीय उत्पादन (Local Manufacturing) बढ़ाने पर जोर।
- नए वेंचर्स में भारतीयों को बोर्ड में बहुमत देना अनिवार्य।
पीएलआई स्कीम का रोल
पीएलआई स्कीम (Production Linked Incentive Scheme) ने भारत को इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण में एक नया आयाम दिया है। इसके तहत उत्पादन लागत को तटस्थ बनाए रखा गया है, जिससे कंपनियों को भारत में उत्पादन करना अधिक लाभकारी हो गया है।
अमेरिका चीन के रिश्तों का असर
अमेरिका और चीन के आपसी रिश्ते बिगड़ने का लाभ भारत को मिला हैे। चीनी सामानों के आयात पर अमेरिकी टैरिफ 245 फीसदी कर दिया है। चीन द्वारा बोइंग विमानों की डिलीवरी रोकने से अमेरिका ज्यादा भड़क गया है। चीन ने दुर्लभअर्थ मेटल के निर्यात पर भी रोक लगा दी है। इसी बीच चीन भारत के साथ निवेश बढ़ाने का मौका तलाश रहा है। ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को वीसा देना भी इसी का परिणाम है।
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