GUWAHATI. भारत के चीफ जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ ने कहा कि संवैधाानिक स्टेटसमैनशिप के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच सार्वजनिक दिखावे की जगह विचार-विमर्श और संवाद की जरूरत है। सीजेआई ने शुक्रवार, 7 अप्रैल को गुवाहाटी हाईकोर्ट के प्लेटिनम जुबली समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जजों और नागरिकों के लिए संवैधानिक शक्ति संविधान की प्रस्तावना के मूल्यों-बंधुत्व, गरिमा और समानता, में दिखाई देती है। सीजेआई ने यह भी कहा कि लोगों में धैर्य और सहनशीलता नहीं है, क्योंकि वे अपने से भिन्न दृष्टिकोणों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
कानून में हो मानवता का टच
सीजेआई ने यह भी कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका जैसे तीनों अंग राष्ट्र निर्माण के काम में लगे हुए हैं, लेकिन न्यायिक पक्ष पर नागरिकों का विश्वास न्यायिक स्वतंत्रता के लिहाज से सबसे ज्यादा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि कानून और प्रशासन न्याय को बनाए रखें, नाकि इसे विफल करें। सीजेआई ने कहा कि कानून में मानवता का टच होना चाहिए और समस्याओं की जड़ों को दूर करने के लिए हमेशा संवेदनशीलता के साथ इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब कानून को समझदारी से लागू किया जाता है और ऐसे न्यायाधीशों के हाथों में इसकी व्याख्या होती है, जो कानून के लागू करने में सामाजिक वास्तविकता और दया की भावना रखते हैं, तो यह न्याय को साकार करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ता है। सीजेआई ने कहा कि कानून सभी के हितों की रक्षा करे, यह सुनिश्चित करने के लिए एक मानवीय स्पर्श आवश्यक है। जब कानून को सिद्धांत के बिना चलाया जाता है तो यह मनमानेपन का बोझ उठा सकता है।
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फर्जी खबरों के युग में सच्चाई ‘शिकार’ बन गई
देश के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने मीडिया रिपोर्ट पर भी अपनी स्पष्ट राय रखी। उन्होंने कहा कि फर्जी खबरों के युग में सच्चाई ‘शिकार’ बन गई है। सोशल मीडिया के प्रसार के साथ छोटी सी कही हुई कोई बात भी बिना तर्क की कसौटी पर कैसे वर्चुअल रूप से व्यापक सिद्धांत का रूप ले लेती है। सीजेआई ने कहा कि आज हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहां लोगों में धैर्य और सहनशीलता नहीं है, क्योंकि वे अपने से भिन्न दृष्टिकोणों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। समोराह में सीजेआई ने विभिन्न मुद्दों पर बात की, जिसमें तकनीक और न्यायपालिका में इसके उपयोग, खासकर कोरोना संकट के दौरान, न्यायिक पेशे के समक्ष उत्पन्न चुनौतियां और अधिक महिला न्यायाधीशों का मामला शामिल है।