गर्मियों में चिलचिलाती धूप से बचने के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते। अगर आप भी गर्मी से परेशान हैं तो क्लाइमेट ट्रेंड की यह रिपोर्ट आपके काम की है। इसके अनुसार देश में भीषण गर्मियों के दिन कम हो सकते हैं। हिमालय क्षेत्र में पहले जो बर्फवारी दिसंबर-जनवरी तक रहती थी, अब मार्च-अप्रैल में भी देखने को मिल रही है। ऐसा पश्चिमी विक्षोभ का पैटर्न बदलने के कारण हो रहा है।
क्या है पश्चिमी विक्षोभ
पश्चिमी विक्षोभ एक एक्स्ट्राट्रॉपिकल तूफान होता है जो भूमध्य सागर से उत्पन्न होकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान बारिश और बर्फबारी लाता है। यह प्रणाली भारतीय उपमहाद्वीप के लिए जल संसाधनों और कृषि के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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घटते जा रहे पश्चिमी विक्षोभ
जनवरी-फरवरी 2023: 12 वेस्टर्न डिस्टर्बेंस आए। इनसे पहाड़ों पर बर्फबारी हुई और मैदानों में बारिश हुई।
जनवरी-फरवरी 2024: कुल 12 वेस्टर्न डिस्टर्बेंस आए। इनमें से 7 ही सक्रिय थे।
जनवरी-फरवरी 2025 : कुल 14 वेस्टर्न डिस्टर्बेंस आए। इनमें से दो सक्रिय थे।
बर्फबारी का समय क्यों बदल रहा
पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता सर्दियों (जनवरी-फरवरी) से खिसककर वसंत (मार्च-अप्रैल) में बढ़ गई है। इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं:
जलवायु परिवर्तन (Climate Change): ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडलीआईय धाराओं में बदलाव आ रहा है, जिससे पश्चिमी विक्षोभ का मार्ग और समय प्रभावित हो रहा है।
सबट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम: यह वायुमंडलीय धारा अब देर से उत्तर की ओर खिसक रही है, जिससे western disturbance देर से सक्रिय हो रहे हैं।
एल नीनो प्रभाव (El Niño Effect): एल नीनो के कारण भी पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति और तीव्रता में बदलाव देखा गया है।
इसरो के भुवन प्लेटफॉर्म के अनुसार, मार्च 2025 में सिंधु बेसिन में 2.02 लाख वर्ग किमी, गंगा बेसिन में 53 हजार वर्ग किमी, और ब्रह्मपुत्र बेसिन में एक लाख वर्ग किमी क्षेत्र बर्फ से ढंका था।
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हीटवेव और मानसून पर असर
हीटवेव में कमी: मार्च-अप्रैल में बर्फबारी के कारण तापमान में गिरावट आई है, जिससे हीटवेव की तीव्रता में कमी देखी गई है।
मानसून पर प्रभाव: पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता मानसून के समय और तीव्रता को प्रभावित कर सकती है, जिससे कृषि और जल संसाधनों पर प्रभाव पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन का संकेत
IMD के महानिदेशक डॉ मृत्युंजय महापात्र के अनुसार, यह बदलाव जलवायु परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है। हालांकि, मौसम में किसी भी बदलाव को जलवायु परिवर्तन मानने के लिए दो से तीन दशक तक लगातार एक जैसी प्रवृत्ति देखनी होती है।