भोपाल. कनार्टक से बीजेपी के सांसद अनंत हेगड़े (Anant Hegde) के एक बयान ने राजनीतिक ( political ) हलकों में हलचल मचा दी। उनका बयान इतना संवेदनशील ( sensitive ) है कि बीजेपी ( BJP ) ने उनके बयान को निजी बताकर उससे किनारा कर लिया है तो कांग्रेस ( congress ) का आरोप है कि संविधान को फिर से लिखना और नष्ट करना बीजेपी और आरएसएस का एजेंडा है। हेगड़े ने कहा है कि बीजेपी को संविधान में संशोधन (constitutional amendment ) करने के लिए और कांग्रेस द्वारा इसमें जोड़ी गई अनावश्यक चोजों को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। अब हम आपको बताते हैं कि संविधान में वाकई संशोधन हो सकता है और इसके लिए क्या और किस तरह का प्रावधान है।
संविधान में लगातार होते रहे हैं बदलाव
अनंत कुमार हेगड़े लोकसभा से छह बार चुनाव जीतकर आ चुके हैं। उनके बयान ने इतना बवाल मचाया है कि बीजेपी ने उनसे स्पष्टीकरण मांग लिया है। हेगड़े ने अपने बयान में कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसने देश में हिंदुओं को नीचा दिखाने के संविधान में अनावश्यक संशोधन किए। उनका कहना है कि संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द हटाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत है। उन्होंने लोगों से कहा कि राज्यसभा में हमें बहुमत नहीं है। इसलिए लोकसभा में बीजेपी को 400 से अधिक सीटें चाहिएं। आपको बता दें कि संविधान में संशोधन होने का मसला नया नहीं है और साल 1951 से संविधान में संशोधन होते आ रहे हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है। इन संशोधनों का अगर औसत निकाला जाएगा तो समझ में आ जाएगा कि संविधान में हर साल दो संशोधन होते रहते हैं। सूत्र बताते हैं कि अगस्त 2023 तक संविधान में 127 संशोधन हो चुके हें। हम बताते हैं कि इसकी प्रक्रिया क्या है।
तीन तरह से हो सकता है संविधान में संशोधन
कानून से जुड़े एक्सपर्ट बताते हैं कि भारत के संविधान में तीन तरह के संशोधन किए जा सकते हैं। इनमें से दूसरा व तीसरा संशोधन संविधान के अनुच्छेद की धारा 368 के अंतर्गत होते हैं। इनमें पहले संविधान संशोधन में ऐसे विधेयक होते हैं जो संसद ( लोकसभा व राज्यसभा ) में साधारण बहुमत से पारित हो जाते हैं और उनको लेकर कोई समस्या नहीं आती। दूसरे, ऐसे विधेयक होते हैं संविधान के अनुच्छेद 368 ( 2 ) के अनुसार विशेष ( दो-तिहाई ) बहुमत से संसद में पारित कर दिए जाते हैं। तीसरे, कुछ ऐसे विधेयक होते हैं जो संसद में विशेष बहुमत से तो पारित होते ही है, साथ ही उन्हें पूरे तौर पर पारित करने और लागू करने के लिए देश के कम से कम आधे राज्य विधानमंडलों का भी समर्थन आवश्यक है।
संविधान में विशेष बदलाव के लिए क्या करना होगा
हम यह बता चुके हैं कि एक तो होता है संविधान में संशोधन, यानि किसी धारा में कम-ज्यादा संशोधन कर दिया जाए और दूसरा होगा संविधान में बदलाव, जैसा कि बीजेपी सांसद चाह रहे हैं कि धर्मनिरपेक्षता जैसे मसलों को हटा दिया जाए। संविधान विशेषज्ञों के अनुसार अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान में बदलाव का अधिकार है लेकिन इसके लिएसंसद में विशेष बहुमत की जरूरत होगी। इसके लिए संसद के दोनों संसद में सत्ता पक्ष के पास दो-तिहाई का बहुमत जरूरी है। दो-तिहाई राज्यों में भी बहुमत होगा जरूरी
विधानसभा में बहुमत का इतना प्रतिशत भी जरूरी
एक्सपर्ट बताते हैं कि लोकसभा में बहुमत पाने के बाद भी मसले को आगे ले जाना होगा। इसके लिए देश के दो-तिहाई राज्यों में बहुमत पाना होगा। इसके अलावा आधे राज्यों के विधानमंडल में साधारण बहुमत से उक्त बदलाव को बहुमत से पारित कराना होगा। संसद-विधानसभा-विधानसमंडलों से पारित होने के बाद इस विधेयक को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास ले जाना होगा। विशेष बात यह है कि राष्ट्रपति इस विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेज सकते हैं। इसके बाद ही संविधान में बड़ा बदलाव हो पाएगा, जैसा की हेगड़े कह रहे हैं।