BHOPAL. एक बार फिर कोरोना ( corona ) की चर्चा शुरू है, लेकिन वायरस नहीं बल्कि कोविड वैक्सीन की। पहले कोरोना से डर लगता था तो वहीं अब कोरोना वैक्सीन के नाम से अचानक लोगों को डर लगने लगा है। इस डर की शुरुआत हुई ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका के एक खुलासे से। इस खुलासे के बाद कोरोना की वैक्सीन लेने वाले लोगों के मन में कई सवाल पैदा हो गए। वैक्सीन निर्माता ने कोर्ट में माना है कि कोविशील्ड ( Covishield ) दुर्लभ मामलों में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम ( thrombocytopenia syndrome ) के साथ थ्रोम्बोसिस (TTS) का कारण बन सकता है। इससे खून के थक्के बन सकते हैं और प्लेटलेट काउंट कम हो जाता है। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के कई गंभीर मामलों में यह स्ट्रोक और हार्ट अटैक का कारण भी बन सकता है। इस खुलासे के बाद भारत में भी इसकी चर्चा शुरू हो गई। एस्ट्राजेनेका का जो फॉर्मूला था उसी से भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कोविशील्ड वैक्सीन बनाई। भारत में बड़े पैमाने पर ये वैक्सीन लगाई गई है। लोगों के मन में कई सवाल हैं। तमाम तरह के इन सवालों के बीच मीडिया समूह ने अधिकतर हेल्थ एक्सपर्ट से बात की है। आइए जानते है क्या कहते हैं एक्सपर्ट...
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10 लाख में जानलेवा खतरा सिर्फ एक को
रांची रिम्स के न्यूरो सर्जन ने बताया कि अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी के पब्लिकेशन के मुताबिक, वैक्सीन से साइड इफेक्ट का खतरा 10 लाख लोगों में से 13-15 लोगों को ही होता है। इनमें भी 90% ठीक हो जाते हैं। इसमें मौत की आशंका सिर्फ 0.00013% को ही है। यानी 10 लाख में 13 को साइड इफेक्ट है, तो इनमें से जानलेवा रिस्क सिर्फ एक को होगा।
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वैक्सीन दुष्प्रभाव के मुकाबले लाभ अधिक- एम्स
एम्स दिल्ली के कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. संजय राय का कहना है कि महामारी के दायरे में आने वाली प्रति दस लाख आबादी में से 15 हजार पर जान का खतरा था। ऐसे में इस आबादी को वैक्सीन देकर महामारी की घातकता 80 से 90% तक घटाई गई। ऐसे में दुष्प्रभाव के मुकाबले लाभ अधिक थे। अच्छी बात है कि दुष्प्रभाव का खतरा समय के साथ कम होता जाता है। कुछ मामलों में साइड इफेक्ट चिंता की बात नहीं है, क्योंकि यह बहुत दुर्लभ मामलों में हो सकता है।
हफ्ते में 2 दिन उपवास करें, एस 1-2 प्रोटीन की जांच कराएं
अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंटिस्ट डॉ. राम उपाध्याय ने कहा कि सबका मेटाबॉलिज्म एक जैसा नहीं होता है। किसी को वैक्सीन का साइड इफेक्ट जीरो होता है, तो किसी को 100%। सवाल है कि अपनी देखभाल आगे कैसे करें? जवाब है ऑटोफेजी (Autophagy)। यानी हफ्ते में दो दिन उपवास। इसमें दिन में सिर्फ एक बार खाना है।
कोरोना वैक्सीन से पहले भी आती रही TTS की समस्या
महामारी विशेषज्ञ चंद्रकांत लहरिया के मुताबिक जब शरीर के किसी हिस्से में खून का थक्का जमता है तो उसे थ्रोम्बोसिस सिंड्रोम यानी TTS कहते हैं। कोरोना वैक्सीन से पहले भी ये समस्या सामने आती रही है। जब कोई वैक्सीन लगने की वजह से थ्रोम्बोसिस सिंड्रोम की समस्या हो जाए तो उसे वैक्सीन इंड्यूस्ड थ्रोम्बोसाइटोपेनिया यानी VITT कहते हैं।
पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ने कोवीशील्ड वैक्सीन बनाई
यूनाइटेड किंगडम की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने पहली बार माना है कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालांकि, ऐसा बहुत रेयर (दुर्लभ) मामलों में ही होगा। ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में कंपनी ने कहा है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। यूके की फार्मा कंपनी की इस वैक्सीन का फॉर्मूला इस्तेमाल कर पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ने भारत में कोवीशील्ड वैक्सीन बनाई थी। भारत में कोवीशील्ड की 175 करोड़ डोज अब तक लगाई जा चुकी हैं।