NEW DELHI. गंभीर और दुर्लभ बीमारियों के इलाज के जरूरी दवाएं और खाने की चीजों के दामों में कमी आ सकती है। वित्त मंत्रालय ने गंभीर बीमारियों के इलाज खातिर निजी उपयोग के लिए जरुरी ड्रग्स और फूड के आयात पर कस्टम ड्यूटी को पूरी तरह खत्म करने का फैसला किया है। इसके लेकर गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है। कस्टमर ड्यूटी को खत्म किए जाने का फैसला एक अप्रैल 2023 से लागू माना जाएगा।
कैंसर का इलाज के जरूरी Pembrolizumab (Keytruda) की कस्टम ड्यूटी खत्म की
दवाओं पर अभी 10 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगता है। तो कुछ श्रेणी के जीवन रक्षक दवाओं के आयात पर 5 फीसदी या शून्य कस्टम ड्यूटी देना पड़ता है। वित्त मंत्रालय ने प्रेस रिलीज कर कहा कि केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर नेशनल पॉलिसी फार रेयर डिजिज 2021 के तहत सूचीबद्ध सभी गंभीर रोगों के इलाज के लिए विशेष चिकित्सा उद्देश्यों के तहत निजी उपयोग के लिए आयातित सभी दवाओं और खाद्य वस्तुओं पर बेसिक कस्टम ड्यूटी को खत्म करने का फैसला किया है। केंद्र सरकार ने अलग-अलग प्रकार के कैंसर की बीमारियों के इलाज के जरुरी Pembrolizumab (Keytruda) के आयात पर भी कस्टम ड्यूटी खत्म करने का निर्णय किया है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक कस्टम ड्यूटी में छूट के इस एलान से बचत के साथ मरीजों को राहत मिलेगी।
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सिविल सर्जन द्वारा जारी किया गया सर्टिफिकेट पेश करना होगा
कस्टम ड्यूटी में छूट हासिल करने के लिए इंडिविजुअल इंपोर्टर को सेंट्रल या स्टेट डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज या डिस्ट्रिक्ट मेडिकल ऑफिसर या जिले के सिविल सर्जन द्वारा जारी किया गया सर्टिफिकेट पेश करना होगा। मौजूदा समय में स्पाइनल मसक्यूलर एट्रॉफी (Spinal Muscular Atrophy) या डचेन मसक्यूलर डिस्ट्रॉफी (Duchenne Muscular Dystrophy) के दवाओं के आयात पर सरकार पहले से कस्टमर ड्यूटी में छूट दे रही है। लेकिन दूसरी गंभीर बीमारियों के लिए जरूरी दवाओं और मेडिसीन के आयात पर कस्टमर ड्यूटी में छूट दिए जाने की मांग की जा रही थी।
दुर्लभ बीमारी पर सालाना 10 लाख से 1 एक करोड़ रुपए तक खर्च आता है
इन गंभीर बीमारियों के इलाज के जरूरी दवाओं और स्पेशल फूड्स बहुत महंगे होते हैं और उन्हें आयात करना पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक 10 किलो का बच्चा जो दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है उसके इलाज पर सालाना 10 लाख रुपए से लेकर 1 एक करोड़ रुपए तक का खर्च आता है। ये इलाज पूरे जीवन काल तक चलता रहता है और उम्र और वजन के बढ़ने के साथ दवाओं का डोज और उसपर किए जाने वाला खर्च भी बढ़ता चला जाता है।