दिवाली पर माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। विधि-विधान से माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति को देवी से मनचाहा वर प्राप्त होता है। अमावस्या 31 अक्टूबर को शाम 4 बजे के बाद शुरू होगी और 1 नवंबर की शाम तक रहेगी। इस कारण देश के अधिकांश हिस्सों में दिवाली 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। इस दिन कई ऐसे योग बन रहे हैं, जो लक्ष्मी पूजन से लेकर नए काम की शुरुआत तक हर काम के लिए शुभ रहेंगे। पंडितों का मानना है कि दिवाली के दिन शाम के समय समृद्धि लाने वाले 4 राजयोग बनेंगे। इस महापर्व का शुभ फल और बढ़ जाएगा। इस बार दिवाली पर सिद्ध महालक्ष्मी योग बन रहा है।
दीपावली पर सिद्ध महालक्ष्मी योग
गुरुवार 31 अक्टूबर को चित्रा नक्षत्र में दीपावली का पर्व मनाया जाएगा। इससे सिद्ध महालक्ष्मी योग बन रहा है। पूजन का पहला मुहूर्त शाम 6 बजे से रात्रि 8:15 बजे तक वृक लग्न में है। इस समय मां लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा की जाएगी। घर में श्रीयंत्र या कनकधारा यंत्र स्थापित करना चाहिए। मां लक्ष्मी को पीला भोग लगाना चाहिए और पीले फूल चढ़ाने चाहिए। दूसरा मुहूर्त सिंह लग्न में रात्रि 11:22 बजे से रात्रि 1 बजे तक है। इस समय मां काली की पूजा की जाती है। अगले दिन शुक्रवार को स्नान-दान की अमावस्या है।
दिवाली पूजन का शुभ मुहूर्त
दिवाली कार्तिक अमावस्या को है और इस साल कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को सुबह 3:52 बजे से शुरू हो रही है। कार्तिक अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर को शाम 6:16 बजे होगी। जबकि 31 अक्टूबर को सूर्यास्त शाम 5:36 बजे है। ऐसे में दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर को शाम 5:36 बजे से शुरू हो रहा है। लेकिन स्थिर लग्न वृषभ शाम 6:32 बजे से 8:33 बजे तक रहेगा। लेकिन इस बीच अमृत चौघड़िया शाम 7:14 बजे तक रहेगा। इसलिए 31 अक्टूबर को दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय शाम 6:32 बजे से 7:14 बजे तक रहेगा। हालांकि आप दिवाली की पूजा स्थिर लग्न वृषभ में भी रात 8:32 बजे तक कर सकते हैं।
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दिवाली पर निशिथ काल की पूजा का मुहूर्त
दिवाली पर निशीथ काल में पूजा करने का भी विधान है। दिवाली पर तांत्रिक विधि से देवी लक्ष्मी और काली की पूजा करने वालों के लिए शुभ समय दोपहर 11:39 बजे से 12:30 बजे तक रहेगा। इस समय सिंह लग्न में पूजा करना बहुत लाभकारी और शुभ रहेगा।
वैसे देश के कुछ भागों में 1 नवंबर को भी दिवाली का पर्व मनाया जा रहा है। ऐसे में 1 नवंबर को दिवाली का पूजा मुहूर्त शाम में 5 बजकर 37 मिनट से 6 बजकर 14 मिनट तक ही रहेगा। इसमें निशीथ काल में पूजा का मुहूर्त नहीं है।
Diwali पूजन सामग्री लिस्ट
पंडित सत्यनारायण भार्गव के अनुसार Diwali की पूजन सामग्री में जल का पात्र, अर्घ्य पात्र, गट्टे, मुरमुरे, खील-बताशे, बही-खाता, स्याही की दवात, कलम, नारियल, तांबूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), मिट्टी की दीये, सरसों का तेल, अगरबत्ती, दीपक, लाल कपड़ा (आधा मीटर), तुलसी दल, इत्र की शीशी, मौली, लौंग, छोटी इलायची, मिठाई,नैवैद्य, गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े, दूध, दही, शुद्ध घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, पंच मेवा, दूर्वा, हल्दी की गांठ, सप्तमृत्तिका, धनिया साबुत,, कमल गट्टे, पान के पत्ते, सुपारी, रुई, सोलह श्रृंगार, सिंदूर, गुलाल, कुमकुम, अबीर,चावल, चौकी, चौक पूरने के लिए आटा, जनेऊ 5, केसर, कपूर, चंदन, गुलाब के फूल, कमल का फूल, आम के पत्ते, मिट्टी या पीतल का कलश, कलश ढकने के लिए ढक्कन, माला, गणेश-लक्ष्मी जी के वस्त्र, चांदी का सिक्का, कुबेर यंत्र, गणेश-लक्ष्मी जी मूर्ति लेना होगा।
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कैरे करें पूजा
पंडित राजकिशोर के अनुसार साधक को गंगाजल युक्त जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद जल के घूंट भरकर स्वयं को शुद्ध कर लें और पीले वस्त्र धारण करें। अब पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। इसके बाद एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं और लक्ष्मी गणेश जी की नई मूर्ति स्थापित करें। अब ध्यान मंत्र और आह्वान मंत्र का जाप करें। इसके बाद शास्त्रों के विधि-विधान से पंचोपचार पूजन कर लक्ष्मी गणेश जी की पूजा करें। पूजा के दौरान धन की देवी मां लक्ष्मी को फल, फूल, धूप, दीप, हल्दी, अखंडित चावल, बताशा, सिंदूर, कुमकुम, अबीर-गुलाल, सुगंधित द्रव्य और नैवेद्य आदि अर्पित करें। पूजा के दौरान लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें, लक्ष्मी स्तोत्र और मंत्रों का जाप करें। पूजा के अंत में आरती करें।
दिवाली पर करें दीपक पूजन
पंडित सुमित शास्त्री के अनुसार दीपावली के दिन दीपक की पूजा का बहुत ही महत्व है। इसके लिए दो थाली में दीपकों को रखें, छह चतुर्मुख दीपक दोनों थाली में सजाएं। 31 छोटे दीपकों में तेल व बत्ती रखकर जला दें। फिर जल, अक्षत, पुष्प, रोली, दूर्वा, चन्दन, अबीर, गुलाल, हाथ में लेकर अर्पित करें। धान का लावा अर्पित कर निम्न मन्त्र- ॐ दीपमालिकायै नमः मंत्र के बाद धूप व दीप दिखाकर लक्ष्मी जी, गणेश जी व कुबेर जी का सभी सामग्रियों आदि से पूजन कर भोग लगाएं। फिर आरती करें। बताया कि लक्ष्मी व कुबेर को प्रसन्न करने के लिए पूजा स्थल के पास बैठकर श्रीसूक्त या कनकधारा स्त्रोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। विद्यार्थियों को चाहिए कि इस दिन रात्रि के समय में मां सरस्वती का ध्यान करते हुए सरस्वती की कृपा प्राप्ति के लिए जरूर पढ़े व काले रंग की स्याही से लिखे।
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।।अष्टलक्ष्मी स्तोत्र।।
।।आदि लक्ष्मी।।
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये ।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ।
धान्य लक्ष्मी:
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ।
धैर्य लक्ष्मी:
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये ।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् ।
पंचांग के आधार पर 31 अक्टूबर को लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए पहला शुभ मुहूर्त प्रदोष काल के दौरान बन रहा है। इस मौके पर प्रदोष काल शाम 05 बजकर 36 मिनट लेकर 08 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।
गज लक्ष्मी:
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते ।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ।
सन्तान लक्ष्मी:
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये ।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।
विजय लक्ष्मी:
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।
विद्या लक्ष्मी:
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये ।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ।
धन लक्ष्मी:
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये ।
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते ।
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी ।।
शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम ।
।। इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम।।
दिवाली पर देवी लक्ष्मी के साथ, उन स्थानों की पूजा भी करनी चाहिए, जहां आप धन रखते हैं जैसे तिजोरी और दुकान का गल्ला आदि। आइए जानते हैं दिवाली पर कैसे करें तिजोरी और गल्ले की पूजा…
इस विधि से करें तिजोरी-गल्ले की पूजा
- दिवाली की शाम को शुभ मुहूर्त में पहले देवी लक्ष्मी की पूजा करें, इसके बाद तिजोरी और गल्ले की।
- सबसे पहले तिजोरी-गल्ले पर केसर या हल्दी से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके ऊपर चावल भी लगाएं।
- इसके बाद धूप-दीप जलाएं और तिजोरी में देवी लक्ष्मी के चरण चिह्न चिपकाएं ताकि धन की आवक बनी रहेगी।
- तिजोरी-गल्ले में कमल का फूल भी रखें और हाथ जोड़कर देवी लक्ष्मी का ये मंत्र बोलें-
ऊं श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्मी नम:। - तिजोरी-गल्ले के अंदर केसर-हल्दी से रंगे हुए चावल एक छोटे से लाल कपड़े में बांधकर रख दें।
- तिजोरी-गल्ले के हाथ जोड़कर देवी लक्ष्मी से प्रार्थना करें कि हमारे घर में कभी धन का अभाव न हो।
- इस बात का ध्यान रखें कि तिजोरी या गल्ला कभी खाली न रहें, उसमें थोड़े-बहुत पैसे जरूर रखें।
दिवाली का इतिहास
समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का अवतरण
दिवाली के दिन धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके पीछे की कहानी सागर मंथन से जुड़ती है। इसके अनुसार देवता और असुर क्षीर सागर में मंथन कर रहे थे उस समय कार्तिक अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी कमल के फूल पर विराजमान होकर प्रकट हुईं थी। भगवान विष्णु को लक्ष्मीजी ने अपने वर के रूप में चुना और संसार को धन, समृद्धि, और ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है।
वो गोबर से लिपे आंगन, पकवानों की सुगंध और मेल-मेलाप... सब भूल गए हम
अयोध्या आए श्रीराम
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, रावण से युद्ध जीतने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ कार्तिक अमावस्या के दिन ही अयोध्या लौटे थे। अयोध्या लौटने की खुशी में प्रजा ने श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण के स्वागत में पूरे राज्य को दीपों से सजाया था और उसी दिन से दिवाली का त्योहार मनाया जा रहा है।
भगवान श्रीकृष्ण ने किया था नरकासुर का वध
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भूदेवी और वराह (भगवान विष्णु के अवतारों में से एक) का एक पुत्र था जिसका नाम नरकासुर था। उसके लिए नरकासुर की मां ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा था कि वह उनके पुत्र को शक्तिशाली बनाएं और उसे लंबी आयु दें। उसे यह भी वरदान मिला था कि जिस दिन उसकी मृत्यु होगी, उसे उत्सव के रूप में मनाया जाएगा। बड़ा होने पर उसने लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। सभी देवी-देवता नरकासुर से परेशान हो गए। एक दिन वे मदद के लिए विष्णुजी के पास गए, तब श्री हरि ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे इसका कोई समाधान निकालेंगे। इसके बाद द्वापर युग में जब विष्णुजी ने कृष्ण अवतार लिया तो उन्होंने राक्षस राजा नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16000 महिलाओं को मुक्त कराया। इस वरदान के कारण ही नरकासुर की मृत्यु के दिन छोटी दिवाली मनाई जाने लगी।
जैन धर्म में Diwali का महत्व
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण भी दिवाली के दिन ही हुआ था। जैन मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और इसी घटना के उपलक्ष्य में जैन समुदाय इस दिन को 'महावीर निर्वाण दिवस' के रूप में मनाता है। भगवान महावीर की शिक्षाओं के आधार पर ही जैन धर्म ने अपने सिद्धांतों को वर्तमान स्वरूप दिया, जो अहिंसा, सत्य और आत्म-साक्षात्कार पर आधारित हैं। दिवाली के इस दिन जैन अनुयायी व्रत रखते हैं और भगवान महावीर की शिक्षाओं को याद करते हैं।
सिख धर्म में दिवाली का महत्व
सिख धर्म में दिवाली के त्यौहार को 'बंदी छोड़ दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी को मुगल बादशाह जहांगीर ने कैद कर लिया था। साल 1619 में दिवाली के दिन ही उन्हें रिहा किया गया था, जिसमें गुरु साहिब अपने 52 राजाओं के साथ जेल से बाहर आए थे। इस दिन गुरु हरगोबिंद साहिब जी अपने अनुयायियों के पास वापस लौटे थे और समाज में आजादी का संदेश दिया था, जिसे याद करते हुए सिख समुदाय आज भी दिवाली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। इस दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में विशेष सजावट की जाती है और दीये जलाए जाते हैं।