दशहरा यानी कि विजयादशमी का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल दशहरे की डेट को लेकर लोगों को कन्फ्यूजन है। लोग सोच में पड़ गए हैं कि आखिर इस बार दशहरा 12 या फिर 13 अक्टूबर कब मनाया जाएगा। आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी के दिन ही भगवान राम ने रावण का संहार करके सीता मां को उसके चंगुल से छुड़ाया था।
तभी से दशहरे का त्योहार हर साल मनाया जाता है। इस दिन रावण के साथ ही कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है। इसी के साथ आइए अब जानते हैं दशहरे की डेट, दशहरे पर कौन से शुभ योग बन रहे हैं और साथ ही इस त्योहार का महत्व।
कब है दशहरा
पंचांग के अनुसार आश्विन शुक्ल दशमी तिथि 12 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होगी और 13 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 8 मिनट तक रहेगी। दशहरा का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। दशहरे के दिन रावण दहन का विशेष महत्व है।
शुभ योग
इस साल दशहरे पर यानी कि 12 अक्टूबर को बेहद शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग आपके सभी कामों को सफल बनाएंगे। 12 अक्टूबर को दशहरा के दिन रवि योग पूरे दिन रहेगा, जिससे हर तरह के दोष दूर होंगे। वहीं, सुबह 6 बजकर 20 मिनट से रात 9 बजकर 8 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इस योग में किए गए कामों के सफल होने की संभावना बहुत अधिक होती है।
पूजन विधि
दशहरे पर शस्त्र पूजा करने का शुभ समय दोपहर में 2 बजकर 3 मिनट से दोपहर 2 बजकर 49 मिनट तक है। दशहरे की पूजा दोपहर के समय करना उत्तम रहता है। इस दिन घर के ईशान कोण में 8 कमल की पंखुड़ियों से अष्टदल चक्र बनाया जाता है। इसके बाद अष्टदल के बीच में अपराजिताय नमः: मंत्र का जप करना चाहिए और मां दुर्गा के साथ भगवान राम की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद माता जया को राइट और विजया को लेफ्ट तरफ स्थापित करें। अब माता को रोली, अक्षत, फूल आदि पूजा की सामग्री अर्पित करें और भोग लगाएं। माता की आरती भी करें और जयकारे भी लगाएं।
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दशहरे का महत्व
त्रेता युग में आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ही भगवान श्रीराम ने रावण को पराजित किया था। रावण को अधर्म का प्रतीक माना जाता है। इसलिए दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है। असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की जीत हुई थी। दशहरा हमें यह याद दिलाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है।
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