डॉ. रामेश्वर दयाल @ NEWDELHI
ऐसा लग रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड ( Electoral Bonds ) के खुलासे का मसला लंबा खिंच सकता है। उसका कारण है भारतीय स्टेट बैंक ( SBI ) ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) से आग्रह किया है कि राजनीतिक दलों के इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल ( Detail ) उजागर करने के लिए उसे 30 जून तक का वक्त दिया जाए। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जानकारी चुनाव आयोग ( Election Commission of India ) को 6 मार्च तक मुहैया कराने का आदेश दिया था। बैंक की इस मांग पर कोर्ट के विचार अभी आना बाकि है। दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ( Congress ) का आरोप है कि बैंक जानबूझकर खुलासे की तारीख आगे कर रहा है ताकि लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Election ) हो जाएं और जनता को काले धन की जानकारी न मिल पाए।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
इस मामले की तह में जाने से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में जान लिया जाए। असल में यह एक तरह का सुधरा हुआ चुनावी चंदा है, जो उद्योगपतियों या धन्नासेठों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिया जाता है। इसे साल 2017 में बीजेपी ने पेश किया था और कहा था कि बस बॉन्ड के जरिए काले धन पर रोक लगेगी। कहा गया था कि कोई भी भारतीय एसबीआई से इसे खरीद सकता है। खरीदने वाले की पहचान गुप्त होगी और उसे टैक्स से छूट मिलेगी। खरीदने वाला बॉन्ड को चंदे के रूप में किसी भी राजनीतिक पार्टी को दे सकता है, लेकिन इस पर सवाल खड़े हुए और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताते हुए इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। कोर्ट का यह भी कहना था कि बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना भी संविधान विरुद्ध है और सूचना के अधिकार का उल्लंघन भी। उसने एसबीआई को आदेश जारी कर दिए कि वह इसकी डिटेल में जानकारी चुनाव आयोग को दे ताकि वह इसे सार्वजनिक कर सके। कोर्ट ने चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की जानकारी प्रकाशित करने के लिए कहा था।
कांग्रेस ने बॉन्ड को महालूट बताया
अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की है कि इतनी जल्दी बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दे पाएगा। इसके लिए उसे 30 जून तक का वक्त दिया जाए। बैंक की गुजारिश पर कोर्ट का विचार पेंडिंग है। दूसरी ओर कांग्रेस ने बैंक की ओर से मोहलत मांगने को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्टी की ओर से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया गया है कि 30 जून का मतलब- लोकसभा चुनाव के बाद जानकारी दी जाएगी। आखिर स्टेट बैंक यह जानकारी चुनाव से पहले क्यों नहीं दे रहा? महालूट के सौदागर को बचाने में SBI क्यों लगा है? गौरतलब है बॉन्ड के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और CPM शामिल हैं।
क्या कहना है सुप्रीम कोर्ट का
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि बॉन्ड स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। उसने राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने के तर्क को भी सही नहीं माना। कोर्ट का यह भी कहना था कि किसी एक व्यक्ति की ओर से दिए गए चंदे के मुकाबले किसी कंपनी की ओर से की गई फंडिंग का राजनीतिक प्रक्रिया पर ज्यादा असर हो सकता है। कंपनियों की ओर से की गई फंडिंग शुद्ध रूप से व्यापार होता है।