NEW DELHI. कर्मचारी पेंशन योजना से हायर पेंशन के लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख EPFO ने एक बार फिर बढ़ा दी है। अब हायर पेंशन के लिए 11 जुलाई तक अप्लाई कर सकेंगे। पहले इसकी आखिरी तारीख 26 जून थी। हायर पेंशन के लिए अप्लाई करने की आखिरी तारीख 3 मार्च थी, जिसे अब तक 3 बार बढ़ाया जा चुका है। पहले इसे बढ़ाकर 3 मई और फिर 26 जून किया गया था।
ईपीएस योजना क्या है
सबसे पहले जान लेते हैं कि ईपीएफओ की कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) क्या है और ये किसे,कब और कैसे मिलती है। कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) एक रिटायरमेंट स्कीम है, जिसका संचालन EPFO करता है। यह योजना संगठित क्षेत्र में काम कर चुके ऐसे कर्मचारियों के लिए है, जो 58 वर्ष की आयु में रिटायर हुए हैं और जिन्होंने किसी संस्थान में कम से कम 10 साल तक नौकरी की है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि नौकरी लगातार 10 साल की गई हो यानी किसी एक संस्थान या अलग-अलग संस्थानों में नौकरी की कुल अवधि 10 साल होनी चाहिए। इस योजना को वर्ष 1995 में लॉन्च किया गया था इसलिए इसे ईपीएस-95 के नाम से जाना जाता है। इस योजना में मौजूदा और नए ईपीएफ सदस्य शामिल हो सकते हैं। श्रम विभाग के नियमानुसार 20 से ज्यादा नियमित कर्मचारियों की संख्या वाले संस्थान में सभी कमर्चारियों की सैलरी से प्रोविडेंड फंड (पीएफ) की राशि काटकर ईपीएफओ में जमा कराना अनिवार्य है। इसके तहत नियोक्ता या कंपनी और कर्मचारी दोनों ही ईपीएफ में कर्मचारी की सैलरी में से 12-12 प्रतिशत राशि का समान योगदान करते हैं। इसमें कर्मचारी के योगदान का पूरा हिस्सा ईपीएफ में और नियोक्ता या कंपनी के शेयर का 8.33 प्रतिशत कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में और 3.67 प्रतिशत हर महीने ईपीएफ में जमा होता है। जब यह कानून बना था उस समय पेंशन फंड में अंशदान के लिए अधिकतम वेतन 6 हजार 500 रुपए तय किया गया था। इसे बाद में बढ़ाकर 15 हजार रुपए कर दिया गया। यानी इस राशि का 8.33 फीसदी हिस्सा पेंशन फंड जाता है। हालांकि इसमें 2014 में बदलाव किया गया जिसके बाद कर्मचारी को अपने बेसिक और DA की कुल रकम पर 8.33 फीसदी पेंशन फंड में अंशदान की छूट मिल गई।
ईपीएस के लिए योग्यता एवं शर्तें: कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए किसी भी व्यक्ति को ये शर्तें पूरी करना होती हैं-
- व्यक्ति EPFO का सदस्य होना चाहिए।
अपनी पेंशन कैसे कैलकुलेट करें-
ईपीएस में पेंशन राशि, सदस्य के पेंशन योग्य वेतन और पेंशन योग्य सेवा यानी कुल कितने साल नौकरी की है, इस पर निर्भर करती है। सदस्य की मासिक पेंशन राशि का कैलकुलेशन नीचे दिए गए फ़ॉर्मूला के अनुसार किया जाता है- कर्मचारी का पेंशन योग्य वेतन X पेंशन योग्य सेवा /70 = मासिक पेंशन राशि
पेंशन योग्य वेतन
किसी भी कर्मचारी का ईपीएस से बाहर निकलने से पहले पिछले 60 महीनों का पेंशन योग्य वेतन उसका औसत मासिक वेतन माना जाता है। यदि रोज़गार के अंतिम 60 महीनों में कुछ दिनों तक आपने EPS अकाउंट में योगदान नहीं किया है तो भी उन दिनों का लाभ कर्मचारी को दिया जाएगा। मान लीजिए कि व्यक्ति महीने की 3 तारीख से नौकरी करना शुरू करता है तो उसे महीने के अंत में 28 दिनों का ही वेतन मिलेगा लेकिन EPS में उसका योगदान 30 दिनों के हिसाब से ही जाएगा।
- यदि व्यक्ति का मासिक वेतन 15 हजार रुपए है, तो 28 दिनों के लिए उस व्यक्ति का वेतन 14 हजार रुपए होगा (दो दिनों के लिए प्रति दिन के हिसाब से 500 रुपए कम)। हालांकि EPS के लिए माना जाने वाला मासिक वेतन 30 दिनों के लिए यानी कि 15 हजार रुपए है। अधिकतम पेंशन योग्य वेतन हर महीने 15,000 रुपए तक सीमित है।
पेंशन योग्य सेवा
आपने कितने समय तक नौकरी की है वही आपकी पेंशन योग्य सेवा मानी जाती है। आपने जितने समय के लिए भी विभिन्न कंपनियों या संस्थानों के लिए काम किया है, वह आपके पेंशन योग्य सेवा अवधि को कैलकुलेट करते वक्त जोड़ा जाता है। हर कर्मचारी को हर बार नौकरी बदलने पर उसे EPS स्कीम सर्टिफिकेट हासिल कर नए संस्थान या कंपनी में जमा करना अनिवार्य होता है। यदि कोई कर्मचारी अपने EPS फंड को 10 साल की सेवा अवधि पूरी करने से पहले या किसी दूसरी कंपनी में जाने पर निकाल लेता है तो उसे EPS खाते में योगदान के लिए नए सिरे से शुरूआत करनी होगी और सेवा अवधि भी ज़ीरो से ही शुरू होगी।
कैसे करें हायर पेंशन के लिए अप्लाई ?
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में हर सदस्य के दो खाते होते हैं। पहला कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और दूसरा कर्मचारी पेंशन योजना (EPS)। पेंशन के लिए ईपीएस फंड में ही राशि डिपॉजिट की जाती है। कर्मचारी के बेसिक और DA से हर महीने 12 फीसदी राशि काटकर EPF में डाली जाती है औऱ इतनी ही राशि नियोक्ता या कंपनी की ओर से डिपॉजिट की जाती है। लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि नियोक्ता या कंपनी का पूरा अंशदान EPF खाते में नहीं जमा होता है। नियोक्ता के 12 फीसदी के हिस्से में से 8.33 फीसदी रकम EPS खाते में जाती है, जबकि 3.67% रकम EPF खाते में डाली जाती है।
क्या हायर पेंशन के लिए अप्लाई करने पर सैलरी कम हो जाएगी ?
यदि कोई कर्मचारी ईपीएस में ज्यादा पेंशन के लिए अप्लाई करता है तो उसकी सैलरी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बदलाव का असर नियोक्ता के अंशदान में होगा। यदि किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी और डीए हर महीने 25 हजार रुपये है तो इस हिसाब 3000 रुपये कर्मचारी के हिस्से से EPF खाते में जमा होता है और नियोक्ता यानी कंपनी को भी 3000 रुपये का योगदान देना होता है। लेकिन नियोक्ता का सारा पैसा EPF खाते में नहीं जाता है। नए नियम के तहत नियोक्ता का 8.33 फीसदी हिस्सा यानी 2082.50 रुपए पेंशन खाते में जाने लगेगा। बाकी 917.50 रुपये EPF खाते में जाएगा। अभी तक 15 हजार रुपये बेसिक सैलरी और डीए वाले कर्मचारी के EPS फंड में कंपनी का अंशदान 8.33 फीसदी यानी 1,249.50 रुपए जमा होता था जबकि बाकी पैसा यानी 550 रुपए EPF खाते में जमा होता था। लेकिन 2014 से EPS में अंशदान पर वेज कैप खत्म कर दिया गया और कर्मचारी की बेसिक और डीए के कुल पैसे का 8.33 फीसदी रकम डालने का विकल्प खुला है यानी अब बेसिक और डीए मिलाकर जितना फंड बनता है, उसमें से 8.33 फीसदी राशि पेंशन फंड में डालने का विकल्प उपलब्ध है।
रिटायरमेंट के बाद कितनी पेंशन मिलेगी, खुद करें कैलकुलेट ?
इसे कैलकुलेट करने के लिए एक फॉर्मूला है... पेंशन योग्य वेतन x नौकरी के साल/70..मान लीजिए आपकी बेसिक सैलरी + डीए 20 हजार रुपए है और आपने 30 साल तक नौकरी की तो इस हिसाब से पेंशन मासिक 8 हजार 571 रुपए होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इसके फॉर्मूले में बदलाव करते हुए नौकरी के अंतिम 60 महीने यानी पिछले 5 साल के औसत वेतन को पेंशन योग्य सैलरी करार दिया है। इस हिसाब से नौकरी के आखिरी 60 महीने का औसत वेतन (बेसिक + DA) 25 हजार रुपये है तो फिर इस राशि में नौकरी के कुल साल (30 वर्ष) को गुणा करना है,और फिर उसमें 70 से भाग किया जाएगा। इस तरह से हर महीने 10 हजार 714 रुपए पेंशन बनेगी। यदि किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी + डीए 50 हजार रुपए है तो फिर इस फॉर्मूले से पेंशन 21 हजार 428 रुपए हर महीने मिलेगी। ये 15 हजार रुपए बेसिक वाले से फॉर्मूले से 15 हजार रुपए ज्यादा है। 15 हजार बेसिक फॉर्मूले से हर महीने 6 हजार 428 रुपए पेंशन बनती है।
हायर पेंशन किनके लिए लाभदायक, किनको नुकसान
सीधे शब्दों में कहें तो ईपीएस में हायर पेंशन का विकल्प चुनने से रिटायरमेंट के बाद एक साथ मिलने वाली राशि कम हो जाएगी जबकि पेंशन ज्यादा मिलने लगेगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस योजना के फायदे-नुकसान दोनों हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है यदि किसी कर्मचारी की नौकरी में कम साल बचे हैं तो फिर हायर पेंशन के विकल्प को नजरअंदाज करना चाहिए। उसे एकमुश्त राशि का पुराना विकल्प ही चुनना चाहिए। लेकिन यदि नौकरी में ज्यादा साल बचे हैं तो फिर इसे विकल्प के तौर पर देख सकते हैं। ऐसे कर्मचारी जिनकी नौकरी 20 साल या इससे ज्यादा बची है उनके लिए हायर पेंशन का विकल्प फायदेमंद होगा।
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कैसे करें हायर पेंशन के लिए अप्लाई ?
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