परीक्षाओं में देरी और विवादित परिणाम के चलते बदनाम कर्मचारी चयन मंडल (ईएसबी) फिर नई एजेंसी खोज रहा है। हर साल दर्जनभर से ज्यादा परीक्षाओं की फीस से करोड़ों रुपए जुटाने वाला ईएसबी फंड के मामले में खासा धनी है।
इसके बावजूद अब तक परीक्षाओं के संचालन के लिए ईएसबी के पास अपना सिस्टम नहीं है। ईएसबी हर साल किसी एजेंसी से अनुबंध करता है, लेकिन किसी परीक्षा में देरी या रिजल्ट पर आरोप लगते ही जिम्मेदारी उनपर डाल देता है।
ऑनलाइन परीक्षा की निगरानी के लिए ईएसबी द्वारा एजेंसी की तलाश करना कोई नई बात नहीं है। साल 2022 में भी ईएसबी ने इसके लिए टेंडर जारी किया था, हालांकि इसे बाद में रद्द कर दिया गया। अब एक बार फिर परीक्षा और निगरानी के लिए दो एजेंसियों से अनुबंध की तैयारी की जा रही है, लेकिन गड़बड़ी सामने आने पर क्या ईएसबी अपनी जिम्मेदारी से बच पाएगा, अब ये सवाल सामने है।
क्या फुलप्रूफ होगी नई व्यवस्था
ईएसबी ने हाल ही में टेंडर जारी किया है। एक एजेंसी ऑनलाइन परीक्षा के लिए इंतजाम करेगी, वहीं दूसरी निगरानी रखेगी। यानी यह एजेंसी परीक्षा सेंटर पर सीसीटीवी कैमरों से केंद्र और प्रश्नपत्रों की गोपनीयता पर नजर रखेगी।
पेपर शुरू होने से पहले और परीक्षार्थियों के बाहर निकलने के बाद तक एजेंसी की नजर होगी। अलग- अलग एजेंसियां रखने के पीछे ईएसबी की अपनी दलीलें हैं। प्रबंधन का कहना है कि काम बंटने से परीक्षाएं समय पर होंगी और पारदर्शिता पर भी रहेगी।
कैसे तय होगी ईएसबी की जिम्मेदारी
अभी परीक्षा में गड़बड़ी की जिम्मेदारी ईएसबी पर आती है। बदनामी के दागों को छुड़ाने के लिए यह संस्था दो बार अपना नाम बदल चुकी है। पिछले महीनों में देशभर में एजेंसियों के माध्यम से कराई गई प्रतियोगी परीक्षाएं सवालों के घेरे में हैं।
हाल ही में पेपर लीक के चलते यूपी में आरक्षक भर्ती परीक्षा रद्द कर एजेंसी को ब्लैक लिस्टेड किया गया है। बड़ा सवाल वही है कि ऐसी परिस्थिति में ईएसबी पर जिम्मेदारी कैसे तय होगी?
फंड भरपूर, फिर संसाधन कम क्यों
प्रदेश में प्रतियोगी और कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए चयन परीक्षाओं का जिम्मा ईएसबी के हाथ में है। हर साल दर्जन भर परीक्षाओं की फीस से ईएसबी को सवा सौ करोड़ रुपए मिलते हैं। ईएसबी के पास इसी राशि से की गई 400 करोड़ की एफडी भी है। इसके बाद भी अब तक ईएसबी अपना ऑनलाइन परीक्षा सिस्टम तैयार नहीं कर पाया है।
ईएसबी की परीक्षा चुनी गई एजेंसी के सॉफ्टवेयर के जरिए ही होती है। इसी वजह से इन पर संदेह बना रहता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि भरपूर फंड होने के बाद भी ईएसबी अपना साफ्टवेयर और एग्जाम इंजन क्यों तैयार नहीं करा पा रहा है।
ऐसे समझिए कितनी है ईएसबी की कमाई
ईएसबी हर साल औसतन 12 से ज्यादा परीक्षाएं लेता है। इनमें पात्रता और चयन परीक्षाएं शामिल हैं। हर परीक्षा में करीब पांच लाख तक अभ्यर्थी शामिल होते हैं। एक अभ्यर्थी को कम से कम 500 रुपए परीक्षा फीस चुकानी होती है। यदि परीक्षा में अनारक्षित वर्ग के एक लाख अभ्यर्थी हैं तो उनसे ही 5 करोड़ रुपए जुटता है। साल भर में ऐसी परीक्षाओं में केवल अनारक्षित वर्ग से मिलने वाली फीस 60 करोड़ से ऊपर पहुंचती है। इसमें छूट प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों की फीस जोड़ दें तो यह सवा करोड़ तक पहुंच जाती है। जबकि एक अभ्यर्थी के लिए परीक्षा पर केवल 250 रुपए ही खर्च होता है। यानी आधी राशि खर्च भी मान लें तो ईएसबी को हर साल 65 से 70 करोड़ तक बच जाता है। इसी आंकड़े के आधार पर ईएसबी की 10 साल की कमाई को जोड़ें तो यह 650 करोड़ से ज्यादा पहुंच जाती है।
एजेंसियों के अनुबंध के बाद भी नहीं सुधार
प्रदेश में ऑनलाइन परीक्षा के लिए ईएसबी हर बार एजेंसियों का चयन करता है। इसके लिए टेंडर जारी होते हैं और कसौटी पर परखा जाता है। इन एजेंसियों को करोड़ों रुपया भी चुकाता है। इतना सब होने के बाद भी कभी परीक्षा में देरी, कभी सर्वर की समस्या तो कभी रिजल्ट में गड़बड़ी हो ही जाती है।
ईएसबी ने साल 2020, 2021, में भी एजेंसी से अनुबंध किया था। 2022 में तो दो बार टेंडर बुलाए गए थे। अब फिर ईएसबी ऑनलाइन प्रवेश, योग्यता और भर्ती परीक्षा के लिए एजेंसी को तलाशने में जुट गया है।
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