नई दिल्ली. नए साल के मौके पर चीन ने गलवान घाटी में झंडा लगाया और फहराया। इसके बाद इस मामले में विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला है। हालांकि सेना से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जिस इलाके में झंडा लगाया गया है वो इलाका हमेशा से चीन के कब्जे में रहा है और इस क्षेत्र को लेकर कोई नया विवाद नहीं है। चीन की तरफ से जब यह वीडियो सामने आया था, उसके बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ ही विपक्ष के दूसरे नेताओं ने भी मोदी सरकार को निशाने पर ले लिया था। आइए जानते हैं आखिर क्यों है गलवान घाटी में भारत औऱ चीन के बीच विवाद।
कब सुर्खियों में आई गलवान घाटी :
पिछले साल 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। इस साल फरवरी में चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया कि भारतीय सैन्यकर्मियों के साथ झड़प में 5 चीनी सैन्य अधिकारी और जवान मारे गए थे। हालांकि माना जाता है कि चीनी पक्ष में मृतकों की संख्या इससे ज्यादा थी। कई रिपोर्ट्स से भी सामने आया कि चीनी पक्ष को इस झड़प में काफी नुकसान हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि हमारे जवान मारते-मारते मरे हैं।
पिछले साल 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे। इस साल फरवरी में चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया कि भारतीय सैन्यकर्मियों के साथ झड़प में 5 चीनी सैन्य अधिकारी और जवान मारे गए थे। हालांकि माना जाता है कि चीनी पक्ष में मृतकों की संख्या इससे ज्यादा थी। कई रिपोर्ट्स से भी सामने आया कि चीनी पक्ष को इस झड़प में काफी नुकसान हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि हमारे जवान मारते-मारते मरे हैं।
क्या है ये क्षेत्र जरूरी: गलवान घाटी भारत की तरफ लदाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिनजियांग तक फैली है। यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के शिनजियांग दोनों के साथ लगा हुआ है।
साल 1962 में भारत-चीन के बीच हुए भयानक युद्ध की नींव गलवान इलाका ही माना जाता है। तब गलवान के आर्मी पोस्ट में 33 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई दर्जनों को बंदी बना लिया गया था। इसके बाद से चीन ने अक्साई-चिन पर अपने दावे वाले पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यहीं से भारत-चीन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई. साल 1962 युद्ध के एलान से चंद महीने पहले भी गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाएं जुलाई में आमने-सामने आ गयी थीं।
गलवान घाटी का इतिहास: गलवान घाटी को सबसे पहले खोजने वाले भारतीय रसूल गलवान हैं। रसूल गलवान ने वर्ष 1890 में इस घाटी की खोज की थी उस समय रसूल 12-13 साल के रहे होंगे। सन् 1892-93 में सर यंग हसबैंड ने व्यापार वास्ते सिल्क रूप के नए-नए रास्ते खोजने की कोशिश के तहत एक अभियान चलाया था। रसूल गलवान भी उसी अभियान का हिस्सा थे। जब सर यंग हसबैंड की टीम गलवान घाटी में भटक गई तो रसूल गलवान ने उन्हें रास्ता दिखाया था और टीम को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में मदद की थी। दरअसल, रसूल गलवान कई बार उस सुनसान घाटी का दौरा कर चुके थे और उन्हें गलवान नाला के बारे में भी पता था। ब्रिटिश सरकार ने रसूल गलवान से खुश होकर उनके नाम पर इस घाटी का नामकरण किया था। तब से यह इलाका गलवान घाटी के नाम से जाना जाता है।