पुराने दिनों को याद कर भावुक हुए धीरेंद्र शास्त्री, बोले- मैंने फटे कपड़े पहनकर...

बिहार में आयोजित हनुमंत कथा के दौरान पंडित धीरेंद्र शास्त्री अपने पुराने दिन को याद करते हुए काफी भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि हमारे पिता को कोई भी शादी में नहीं बुलाता था। परिवार वाले शादी के कार्ड में मेरे पिता का नाम तक नहीं लिखते थे।

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Vikram Jain
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मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम के प्रसिद्ध पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इस समय बिहार के गोपालगंज में हनुमंत कथा कर रहे हैं। कथा के तीसरे दिन पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए एक भावुक बयान दिया, जिसमें उन्होंने गरीबी और अनदेखी के बारे में बात की। साथ ही, उन्होंने मंच से अपनी जिंदगी के संघर्षों और कड़वी सच्चाइयों को साझा किया। धीरेंद्र शास्त्री ने शायरी के जरिए भी अपनी भावनाओं को व्यक्त किया, जो जो श्रोताओं को गहराई से प्रभावित कर गई।

संघर्षों के दिनों को याद कर भावुक हुए धीरेंद्र शास्त्री

दअसल, गोपालगंज के रामनगर स्थित राम-जानकी मठ में हनुमंत कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। जिसमें बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री द्वारा कथावाचन किया जा रहा है। इस दिव्य दरबार में उत्तर प्रदेश-बिहार के साथ ही नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे रहे हैं। शुक्रवार को हनुमंत कथा के वाचन के दौरान पंडित धीरेंद्र शास्त्री बचपन के संघर्षों के दिनों को याद करते हुए भावुक हो गए। 

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हनुमंत कथा में सुनाई अपनी गरीबी की कहानी

हनुमंत कथा के दौरान अपने पुराने दिनों को याद करते हुए भावुक होकर पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने दरबार में पहुंचे श्रद्धालुओं से कई बातें साझा। उन्होंने बताया कि बताया कि कैसे उनके पिता को कभी भी शादी में नहीं बुलाया जाता था और उनके परिवार के सदस्य शादी के कार्ड में उनके पिता का नाम तक नहीं लिखते थे। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, "हम गरीब थे, इसलिए लोग हमें तवज्जो नहीं देते थे। फटे कपड़े पहनकर जब हम शादी में जाते थे तो हमारे परिवार की इज्जत जाती थी।"

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गरीब लोगों को कोई नहीं पूछता....

उन्होंने यह भी बताया कि उनकी मां हमेशा उन्हें भगवान राम को न छोड़ने की सलाह देती थीं, और यह भरोसा दिलाती थीं कि एक दिन उनके अच्छे दिन आएंगे। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि दुनिया में इज्जत वही पाते हैं जो अमीर या फेमस होते हैं, लेकिन साधारण और गरीब लोगों को कोई नहीं पूछता। "गरीब तो सिर्फ ताली बजाने के लिए होते हैं," उन्होंने कहा।

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सुनाई दिल छूने वाली शायरी

इस दौरान अपनी बातों को और प्रभावी बनाने के लिए पंडित शास्त्री ने एक शायरी भी सुनाई.... 

"मुझे कौन पूछता था तेरी बंदगी से पहले,
मैं खुद को ढूंढता था इस जिंदगी से पहले।"

यह शायरी दर्शाती है कि पंडित शास्त्री ने अपने जीवन के संघर्षों को किस तरह से महसूस किया और किस तरह से उन्होंने अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष किया। उनके इस बयान ने वहां मौजूद श्रोताओं को गहरे भावनात्मक रूप से प्रभावित किया और उनकी जुबान से निकली शायरी ने हज़ारों लोगों का दिल छू लिया।

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