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अमेरिकी राजनीति और शिक्षा संस्थानों के बीच बढ़ते संघर्ष में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) को न्यायिक राहत मिली है। बोस्टन स्थित सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) द्वारा विदेशी छात्रों के प्रवेश और विविधता-संवर्धन (Diversity, Equity, Inclusion - DEI) कार्यक्रमों पर लगाए गए प्रतिबंधात्मक आदेशों को महज 24 घंटों के भीतर स्थगित कर दिया। यह फैसला विश्वविद्यालय द्वारा दायर याचिका के आधार पर आया, जिसमें विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि ट्रम्प के निर्देश अमेरिकी संविधान की मूल भावना और शैक्षणिक स्वतंत्रता के खिलाफ हैं।
हम नहीं झुकेंगे
यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन गार्बर (Alan Garber) ने ट्रम्प प्रशासन पर हमला करते हुए कहा कि “हार्वर्ड विदेशी छात्रों के बिना अधूरी है। हम किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेंगे।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रम्प का आदेश न केवल विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के खिलाफ है, बल्कि यह शैक्षणिक स्वतंत्रता और समावेशिता (Inclusiveness) पर सीधा प्रहार है।
ट्रम्प के आदेशों की मुख्य मांगें क्या थीं?
- विदेशी छात्रों को दाखिला न देना और उन्हें देश से डिपोर्ट करना।
- यूनिवर्सिटी द्वारा यहूदी विरोधी प्रदर्शनकारियों की पहचान और निष्कासन।
- बाहरी एजेंसी से विश्वविद्यालय की ऑडिट जांच।
- विविधता व समावेशी (DEI) कार्यक्रमों को बंद करना।
- ट्रम्प की इन मांगों को लेकर विश्वविद्यालय ने अदालत का रुख किया और इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दिया।
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क्यों है ये लड़ाई लंबी?
- हार्वर्ड की संपत्ति: 4.5 लाख करोड़ रुपए (लगभग $53 बिलियन)
- नोबेल विजेता: 161
- ग्लोबल नेटवर्क: अमेरिका ही नहीं, दुनिया भर की यूनिवर्सिटीज के साथ गठजोड़
- विचारधारा: लिबरल और समावेशी शिक्षा का पक्षधर
विश्वविधायलय लंबे समय से ट्रम्प की रूढ़िवादी विचारधारा के खिलाफ आवाज उठाता रहा है, जिससे दोनों के बीच टकराव बढ़ता गया है।
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हार्वर्ड अकेला नहीं
ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली के प्रमुख विश्वविद्यालयों ने हार्वर्ड के समर्थन में बयान जारी किए हैं।
फ्रांस की कई यूनिवर्सिटीज ने हार्वर्ड के स्कॉलर्स को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव भी रखा है।
अमेरिका के अंदर भी कई शिक्षाविद और संस्थान इस आदेश को शैक्षणिक स्वतंत्रता के खिलाफ मानते हैं।
फ्रांस की कई यूनिवर्सिटीज ने हार्वर्ड के स्कॉलर्स को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव भी रखा है।
अमेरिका के अंदर भी कई शिक्षाविद और संस्थान इस आदेश को शैक्षणिक स्वतंत्रता के खिलाफ मानते हैं।
आगे की कानूनी प्रक्रिया क्या होगी?
बोस्टन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को वॉशिंगटन फेडरल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
ट्रम्प एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कांग्रेस से मंजूरी लेनी होगी, जो इस समय काफी मुश्किल है।
हार्वर्ड को कांग्रेस के कई सदस्यों का समर्थन प्राप्त है, जिससे ट्रम्प का रास्ता आसान नहीं है।
ट्रम्प एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कांग्रेस से मंजूरी लेनी होगी, जो इस समय काफी मुश्किल है।
हार्वर्ड को कांग्रेस के कई सदस्यों का समर्थन प्राप्त है, जिससे ट्रम्प का रास्ता आसान नहीं है।
अप्रैल में दी थी चेतावनी
यूनिवर्सिटी को पहले ही अप्रैल 2025 में चेतावनी दी गई थी कि अगर उसने अमेरिकी इमिग्रेशन कानूनों का पालन नहीं किया तो उसका प्रमाण-पत्र रद्द कर दिया जाएगा। अब यह चेतावनी एक सख्त प्रशासनिक कदम में बदल गई है।राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के अंतरराष्ट्रीय छात्रों के दाखिले पर रोक लगाने का आदेश दिया है। यह फैसला होमलैंड सिक्योरिटी सचिव क्रिस्टी नोएम के निर्देश के बाद सामने आया, जिसने हार्वर्ड के स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (SEVP) प्रमाण-पत्र को समाप्त कर दिया। इस कदम का सीधा असर भारत समेत 125 से अधिक देशों के छात्रों पर पड़ा है।
नोएम के आरोप
क्रिस्टी नोएम ने आरोप लगाया कि यूनिवर्सिटी का कैंपस अब "यहूदी विरोध", "हिंसा" और "चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से सहयोग" का अड्डा बन चुका है। प्रशासन का कहना है कि गाजा युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले विदेशी छात्र हमास जैसे आतंकी संगठनों का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए इन पर कड़ी कार्रवाई ज़रूरी है।
788 भारतीय परेशान
शैक्षणिक वर्ष 2024-25 में हार्वर्ड में 788 भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं, जिनमें से 321 ने इसी वर्ष एडमिशन लिया था। दाख़िला रोकने से इन छात्रों के सामने ट्रांसफर या लीगल स्टेटस खोने का संकट खड़ा हो जाता। इससे भारतीय परिवारों में चिंता की लहर दौड़ गई थी। यूनिवर्सिटी में लगभग 27 फ़ीसदी बाहरी छात्र पढ़ रहे हैं।