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New Delhi: देश के लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए बोतलबंद पानी/पैकेज्ड वाटर को अब उच्च जोखिम वाले खाद्य पदार्थों (high-risk foods) की श्रेणी में डाल दिया गया है। यह निर्णय भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने लिया है। इस नियम के तहत इस तरह का पानी तैयार करने वाली कंपनियों की हर साल जोखिम आधारित चैकिंग की जाएगी, ताकि यह पता चल सके कि उनका तैयार और सीलबंद पानी स्वास्थ्य के नजरिए से नुकसानदायक तो नहीं है। दुनिया में 17वीं शताब्दी से इस तरह के पानी का कारोबार चल रहा है, जबकि भारत में 1990 के दशक में पानी की बिक्री ने रफ्तार पकड़ी। देश में पैकेज्ड पानी का बाजार 20 हजार करोड़ को पार कर चुका है और यह हर साल 10-12 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है।
पैकेज्ड पेयजल को 'उच्च जोखिम' खाद्य श्रेणी में रखने से क्या होगा
असल में FSSAI चाहता है कि खाद्य या पेय पदार्थों के सुरक्षा मानक मजबूत रहें ताकि उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य सिस्टम सुरक्षित रहे। यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि केंद्र सरकार ने दो माह पूर्व एक निर्णय लेकर इस तरह के पानी से जुड़े उत्पादों को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) से प्रमाणन की अनिवार्यता को हटा दिया गया था। प्रमाणपत्र का मकसद यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद भारतीय मानकों के अनुरूप है और उपभोक्ता को उच्च गुणवत्ता और सुरक्षा की गारंटी देता है। केंद्र सरकार ने पानी कारोबार को दिक्कतों से बचाने के लिए यह कदम उठाया लेकिन ग्राहकों की सेहत को ध्यान में रखते हुए FSSAI ने अब यह निर्णय लिया है कि पानी वाले उत्पादों पर अनिवार्य निरीक्षण होगा और तृतीय-पक्ष (third party) ऑडिट होगा।। संस्थान का मानना है कि इस कदम से उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों में सुधार होगा। ये दोनों कवायद पूरी किए जाने के बाद ही कंपनी को लाइसेंस या उसका रजिस्ट्रेशन किया जाएगा।
उच्च जोखिम वाल खाद्य पदार्थों की कहानी
फूड एक्सपर्ट मानते हैं कि उच्च जोखिम वाले खाद्य पदार्थ वे होते हैं जो पके या तुरंत पकाकर खाने लायक बनाए जाते हैं लेकिन इनमें बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों के पनपने की संभावना अधिक होती है। इन खाद्य पदार्थों में कच्चा या अधपका मांस और मछली, विशेष रूप से चिकन, मटन, और समुद्री भोजन, दूध, दही, पनीर, और क्रीम, अंडे और अंडे से बने उत्पादजैसे मेयोनेज़, पका हुआ चावल और पास्ता, कटे हुए फल और सब्ज़ियां या सलाद, सैंडविच, रोल्स और अन्य स्नैक्स जो बिना पकाए खाए जाते हैं। इन खाद्य पदार्थों को संभालते के लिए कुछ सावधानियां बरतनी होती है, जैसे कि सभी खाद्य पदार्थों को अलग-अलग रखना होता है, उन्हें एक निश्चित तापमान पर रखना जरूरी है और वहां साफ-सफाई का ध्यान रखना आवश्यक है। इन खाद्य पदार्थों का सही तरीके से भंडारण या पकाया न जाए तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं और फूड पॉइज़निंग का कारण बन सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि इन खाद्य पदार्थों को सही तापमान पर स्टोर करें, खाना पकाने के बाद जल्दी से ठंडा करें और फ्रिज में रखें, साथ ही उचित रूप से भोजन पकाएं और गर्म करके खाएं।
सैंकड़ों साल पुराना है बोतलबंद पानी का कारोबार
आधिकारिक जानकारी के अनुसार बोतलबंद पानी का सबसे पहला रिकॉर्ड वर्ष 1621में इंग्लैंड में पाया जाता है। यहां स्पा जल (spring water) को स्वास्थ्य लाभों के लिए बोतलों में भरकर बेचा गया। अमेरिका में बोतलबंद पानी का व्यवसायिक उत्पादन 1767में शुरू हुआ। वहां Jackson's Spa नाम की एक कंपनी ने यह कारोबार शुरू किया। यह पानी प्राकृतिक झरनों से भरा जाता था और औषधीय लाभों के दावे किए जाते थे। बाद में औद्योगिक क्रांति के दौरान कांच की बोतलों का उत्पादन सस्ता हुआ, जिससे बोतलबंद पानी का व्यापार बढ़ा। 1900 के दशक में फ्रांस की प्रसिद्ध कंपनी Evian और Perrier जैसी कंपनियों ने इसकी शुरुआत की, जिसके बाद यूरोप में बोतलबंद पानी की लोकप्रियता बढ़ी। साल 1970 के दशक में प्लास्टिक की बोतलों (PET bottles) के आविष्कार के बाद, बोतलबंद पानी का कारोबार तेजी से फैला और 1980-90 के दशक में यह उत्पाद अमेरिका और एशिया में लोकप्रिय हुआ। इसके लोकप्रिय होने का कारण यह था कि लोगों में स्वच्छ पानी की मांग बढ़ने लगी, सुविधाजनक और ब्रांडेड पानी का प्रचलन, साथ ही तेजी से बढ़ते शहरों में स्वच्छ पानी की जरूरत लगातार बढ़ रही थी। आज बोतलबंद पानी का वैश्विक बाजार अरबों डॉलर का है और यह दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक है।
भारत में बोतलबंद पानी के कारोबार की शुरुआत
भारत में पैकेज्ड वाटर (बोतलबंद पानी) का कारोबार 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में हुआ। हालांकि यह व्यापार मुख्य रूप से 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण और मल्टीनेशनल कंपनियों के आने के बाद तेजी से बढ़ा। पहले केवल उच्च वर्ग और बड़े शहरों तक इसकी पहुंच थी, लेकिन धीरे-धीरे यह सामान्य लोगों और छोटे शहरों तक फैल गया। बिसलेरी (Bisleri) कंपनी की जानकारी के अनुसार उसने 1977 में भारत में पहला पैकेज्ड पानी लॉन्च किया। यह पहले इटली की कंपनी थी, जिसे बाद में पारले ग्रुप ने खरीद लिया। इसके बाद 1990 में वैश्वीकरण के बाद कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कंपनियों ने इस क्षेत्र में निवेश किया। भारत का पैकेज्ड पानी का बाजार आज तेजी से बढ़ रहा है। 2023 तक यह बाजार लगभग 20,000 करोड़ रुपये का था और यह सलाना 10-12 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। भारत में पानी के इस कारोबार में बिसलेरी (Bisleri), एक्वाफिना (Aquafina, पेप्सिको), किन्ले (Kinley, कोका-कोला), रेल नीर (Rail Neer, भारतीय रेलवे) और हिमालयन (Himalayan, टाटा समूह) प्रमुख हैं।
पैकेज्ड पानी से पैदा होती चुनौतियां
पैकेज्ड पानी का बढ़ता कारोबार कई चुनौतियां भी पेश कर रहा है और पर्यावरण के लिए भी खतरा बन रहा है। पर्यावरण से जुड़े एक्सपर्ट बताते हैं कि प्लास्टिक बोतलों से उत्पन्न पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। इसके अलावा नकली ब्रांडों का प्रसार और घटिया गुणवत्ता वाली पानी की बोतलें एक बड़ी समस्या हैं। इस कारोबार के चलते जल संसाधनों का दोहन एक संवेदनशील मुद्दा बन रहा है। वैसे इससे बचाव के लिए कई कंपनियां बायोडिग्रेडेबल और रीसाइकल करने योग्य पैकेजिंग पर काम कर रही हैं। संभावना है कि आगामी दिनों में पर्यावरण हितैषी पानी का कारोबार शुरू हो जाएगा।
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