झारखंड के आदिवासी नेता हेमंत सोरेन एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए हैं। वह चौथी बार राज्य के सीएम बने हैं। राजनैतिक परिवार से आए हेमंत की राह अन्य नेताओं के लाडलों की तरह 'रेड कारपेट' सरीखी नहीं रही है। उनकी राह वाकई आदिवासी जीवन की तरह सरल नहीं रही। कभी छात्र नेता रहे हेमंत को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भी जाना पड़ा, लेकिन परिवार के साथ वह 'खाक' से फिर उठ खड़े हो गए। आइए जानते हैं उनके जीवन की पूरी कहानी।
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— TheSootr (@TheSootr) November 28, 2024
अकेले शपथ ली हेमंत सोरेन ने
हेमंत सोरेन ने आज शाम रांची के मोहराबादी मैदान में सीएम पद की शपथ ली। ऐसी जानकारी है कि इस शपथ ग्रहण समारोह में इंडिया गठबंधन के बड़े नेता भी शामिल होंगे। कभी राज्यसभा के सांसद रहे हेमंत आज राज्य के चौथी बार सिपहसालार बनने जा रहे हैं।
पिता बड़े जमीनी नेता
हेमंत के पिता शिबू सोरेन अपने समय में देश के बड़े आदिवासी नेता रह चुके हैं। उन्होंने केंद्र में कांग्रेस के साथ मिलकर (यूपीए गठबंधन) साझेदारी भी की है। शिबू सोरेन को भी जेल का दरवाजा देखना पड़ा था। लेकिन उनके बेटे में राजनीति की पथरीली राह को सुगम बनाकर परिवार का मान तो बढ़ाया ही साथ ही अपने परिवार को भी राजनीति में आगे लाए। हेमंत का जन्म 10 अगस्त 1975 को हुआ। उन्होंने अपनी स्कूलिंग पटना हाई स्कूल से की। वह आगे पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहते थे, लेकिन माता-पिता इसके लिए राजी नहीं हुए। जब अलग झारखंड राज्य बना, तब हेमंत की उम्र 26 साल की थी। राजनीति का ककहरा सिखाने के लिए उनके भाई दुर्गा सोरेन ने 2003 में हेमंत को झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्टूडेंट यूनिट ‘झारखंड युवा मोर्चा’ का अध्यक्ष बनाया। दो साल बाद वह दुमका से विधानसभा का चुनाव लड़े लेकिन हार गए।
अनगढ़ रही उनकी राजनीतिक यात्रा
पहला चुनाव हारने के बाद हेमंत राजनीति में सक्रिय रहे लेकिन साथ ही उन्होंने रांची से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। साल 2009 में उनके बड़े भाई दुर्गा की किडनी फेल होने के चलते मौत हो गई। इसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ वह फुलटाइम राजनीति में आ गए और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए। उसी साल वह राज्यसभा के सदस्य बने। हालांकि, इसी साल उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा देकर दुमका से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए। इस दौरान राज्य में खासी उठापटक रही। वह राज्य के उप मुख्यमंत्री भी बने लेकिन राज्य में अस्थिरता का माहौल बना रहा। इस अस्थिरता के चलते हेमंत साल 2013 में पहली बार राज्य के सीएम बने। डेढ़ साल बाद ही विधानसभा चुनाव हारने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। पांच साल सत्ता से बाहर रहने के बाद हेमंत ने फिर वापसी की और दूसरी बार 29 दिसम्बर 2019 को मुख्यमंत्री बने। वहीं मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी के बाद सोरेन को इसी साल जनवरी महीने में इस्तीफा देना पड़ा था। जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर आए और तीसरी बार जुलाई में फिर सीएम बन गए। आज वह चौथी बार राज्य का सीएम बनने जा रहे हैं।
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चुनाव में परिवार के चार लोग उतरे, भाभी हार गईं
इस विधानसभा चुनाव में हेमंत के अलावा उनकी पत्नी कल्पना, भाई बसंत व भाभी सीता ने चुनाव लड़ा. लेकिन भाभी को छोड़कर सभी चुनाव जीत गए। हेमंत ने बरहेट विधानसभा से, पत्नी कल्पना ने गांडेय से, भाई बसंत ने दुमका से शानदार जीत दर्ज की है। असल में उनकी भाभी ने परिवार और झामुमो से विद्रोह कर दिया था और अपनी राजनीति की राह बीजेपी की ओर मोड़ ली। उन्होंने बीजेपी के टिकट से ही जामताड़ा विधानसभा से चुनाव जीता। हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा। चुनाव में परिवार की हिस्सेदार को लेकर उन पर परिवारवाद के आरोप भी लगे थे, लेकिन राज्य की जनता ने इन आरोपों को नकारकर एक बार फिर से विश्वास जताया है।
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इसलिए शानदार जीत हासिल की हेमंत ने
इस चुनाव में झामुमो की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन को भारी जीत मिली। इस गठबंधन को 81 में से 56 सीटें मिली, जिनमें से झामुमो को 34, कांग्रेस को 16 और विपक्षी पार्टी बीजेपी को 21 सीटों पर संतोष करना पड़ा। असल में इस जीत में हेमंत की जेलयात्रा उनके लिए लाभकारी रही। जनता में संदेश गया कि उनके बेकसूर ‘भैया’ को जेल भेजा गया, जो उनके लिए सहानुभूति का कारण बना। वैसे इसके अलावा उनके अपने कार्यकाल की योजनाएं और आगामी सालों के लिए घोषणाएं भी उनकी जीत का कारण बनी। उन्होंने अपने राज्य में 200 यूनिट तक बिजली का बिल माफ किया, किसानों के कर्ज माफ किए, प्रभावी रूप से बुढ़ापा पेंशन लागू की और राज्य कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना भी लागू की। उनकी मंईयां योजना का जादू भी लोगो के सिर चढ़कर बोला, जिसके तहत महिलाओं को हर माह 2500 रुपये दिए गए। इसी योजना के चलते महिलाओं ने उनकी पार्टी को बंपर वोट दिए।
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