New Delhi. पटना में 23 जून को हुई विपक्षी बैठक में किसी खास मुद्दे पर राय नहीं बन पाने के कारण अगला पड़ाव शिमला तय किया। अब 10 जुलाई को सभी दल एक बार फिर शिमला में जुटेंगे। यहां तय करेंगे कि लोकसभा में चुनाव में किसी पार्टी को कितनी सीटों पर लड़ना है, मतलब सीधा है कि शिमला में सीटों का बंटवारा होगा। हालांकि इससे पहले ही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में तनातनी बढ़ती जा रही है। वहीं बंगाल में ममता कांग्रेस को तवज्जो नहीं दे रही है, क्योंकि कांग्रेस पंचायत चुनाव में तृणमूल पर लगातार हमलावर है। दूसरा संकट तीन राज्यों, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव है। यहां केजरीवाल की पार्टी आप अपना जनाधार चाहती है। ऐसे में कांग्रेस के लिए टीमसी और आप को साधना बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसे में सियासी गलियारों में आशंका जताई जा रही है कि विपक्षी एकता शिमला में दम तोड़ देगी क्योंकि कांग्रेस तीनों ही राज्यों में अपने क्षेत्र में दोनों ही पार्टियों को नहीं घुसने देगी।
आप और टीमसी के बीच फंसी कांग्रेस! दोनों से कैसे बैठाए सामंजस्य?
मालूम हो पटना की बैठक से पहले दिल्ली में अध्यादेश के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच तनातनी बढ़ रही थी। दूसरी तरफ पंचायत चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस आरोप लग रही है कि बीजेपी-कांग्रेस के भी गुप्त 'गठजोड़' है। ऐसे आरोप तृणमूल ने उस पोस्टर के दिखने के बाद लगाए हैं, जिनमें कांग्रेस और बीजेपी के चुनाव चिन्ह एक साथ दिख रहे हैं। वहीं आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने भी पटना की बैठक से पहले दिल्ली अध्यादेश को लेकर कांग्रेस-बीजेपी में 'आपसी सहमति' के आरोप लगाए थे। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के चीफ अधीर रंजन चौधरी ने भी पटना बैठक के बारे में ऐसी बात कही जो बैठक की गंभीरता पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने कहा कि पटना की पार्टी एक शादी की पार्टी जैसी थी जिसमें उनके दल को भी शामिल होना ही था।
कई पार्टियां के चुनाव लड़ने से बीजेपी को फायदा हो रहा
एक मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि पटना की बैठक में कांग्रेस ने कहा था कि कई पार्टियां के चुनाव लड़ने के कारण भी बीजेपी को फायदा हो रहा है और बीजेपी विरोधी वोट बंट रहे हैं। दरअसल, गुजरात और गोवा में आम आदमी पार्टी के चुनाव लड़ने के कारण कांग्रेस को नुकसान हुआ और पार्टी बैठक में शायद इसी तरफ इशारा कर रही थी। ऐसे में लोकसभा सीटों को लेकर मामला गरमा सकता है।
क्या ‘आप’ मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में खुद को दूर रखेगी?
कहा जा रहा है कि आप ने भी भरोसा दिया है कि वह आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव तक अन्य राज्यों में कदम जमाने के प्लान को विराम देगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस साल प्रस्तावित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में आप खुद को दूर रखेगी।
आप-टीमएसी की चिंता : अगर गठबंधन हो गया तो दूसरे राज्यों में पैर कैसे जमाएंगे?
दरअसल, आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस, दोनों ही अपने परंपरागत राज्यों से बाहर निकलकर दूसरे राज्यों में पैर जमाने की कोशिश में हैं। आप को इसमें पंजाब जैसे राज्य में जबरदस्त सफलता भी मिली है। वहीं गुजरात में पार्टी ने शुरुआती सफलता हासिल की है। तृणमूल कांग्रेस भी त्रिपुरा में अपनी ताकत लगा चुकी है. यही नहीं पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने एक के बाद एक कई बड़े विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर एक माहौल बनाने की कोशिश की है। ऐसे में विपक्षी गठबंधन से केजरीवाल की आप और ममता की टीएमसी की ‘विस्तार योजना’ खटाई में पड़ सकती है।
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कांग्रेस के सामने क्या है चुनौती?
ऐसे में अब देखना होगा कि शिमला बैठक के दौरान कांग्रेस कैसे इन दोनों पार्टियों के साथ सामंजस्य बिठाती है। तात्कालिक कारण दो हैं, पहला दिल्ली में केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश का और दूसरा पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव का। दरअसल पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव से पहले हिंसा को लेकर कांग्रेस भी राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल की सरकार को घेरती रही है। सूत्र बताते हैं कि अब अगर कांग्रेस दोनों का साथ देती है तो उसे लोकसभा सीटों का नुकसान होना तय है।
क्या विस्तार योजना कंट्रोल कर पाएंगे आप और तृणमूल?
अब अगर 2024 को लेकर एक आम राय बनानी है तो लोगों के बीच यह संदेश देने की कोशिश भी करनी होगी कम से कम विपक्षी पार्टियों के बीच किसी बात पर मतभेद नहीं है। साथ ही आगामी विधानसभा चुनावों में भी आप और तृणमूल अपने विस्तार योजना (एक्सपेंशन प्लान) को कितना कंट्रोल करते हैं, यह भी देखना होगा।