ग्रेजुएट को हर साल एक लाख रुपए दिए तो यह रकम करीब 5 लाख करोड़ रुपए का बोझ बढ़ाएगी

राहुल गांधी ने युवाओं को गदगद करते हुए कहा कि हर डिप्लोमा होल्डर व ग्रेजुएट युवा को प्राइवेट-सरकारी सेक्टर में अप्रेंटिसशिप पाने का अधिकार होगा और इस अप्रेंटिसशिप के लिए युवाओं को हर साल एक लाख रुपए (प्रतिमाह करीब 8,500 रुपए) दिए जाएंगे।

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Dr Rameshwar Dayal
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भोपाल. भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने घोषणा की है कि देश में कांग्रेस की सरकार बनी तो हर ग्रेजुएट और बाकी डिप्लोमा होल्डर युवाओं को सालाना एक लाख रुपए दिए जाएंगे। अब बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई ऐसा हो पाएगा, क्योंकि यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन यानी UGC और देश के बजट विवरण के आंकड़े देखें तो राहुल की प्रस्तावित योजना की राशि देश के कुल बजट की 11.47 फीसदी होगी। जबकि देश में HRD यानी शिक्षा और कौशल विकास पर सालाना कुल बजट की 7.5 फीसदी राशि ही खर्च की जा रही है। इसमें भी HRD का कुल बजट 6  फीसदी और कौशल विकास का कुल बजट 1.5 फीसदी है। अब राहुल की इस घोषणा के बाद खुद अर्थशास्त्री भी हैरानी जता रहे हैं कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है। क्योंकि आंकड़ों के आधार पर देखें तो ग्रेजुएट युवाओं को हर साल यदि एक लाख रुपए दिए गए तो ये रकम देश पर 5 लाख करोड़ रुपए से का बोझ बढ़ा देगी। दरअसल, यूजीसी के अनुसार साल 2023 में पौने पांच करोड़ स्टूडेंट्स ग्रेजुएट हुए हैं। साल 2024 में यह संख्या पांच करोड़ मान ली जाए तो एक लाख रुपए प्रति ग्रेजुएट के अनुसार यह रकम पांच लाख करोड़ रुपए सालाना होती है। ये भी जान लीजिए कि ये योजना का लाभ स्टूडेंट्स को ग्रेजुएशन पूरा होने वाली साल में ही मिलेगा। यानी यह वन टाइम स्कीम है। अगली बार इस योजना का लाभ ग्रेजुएशन कंप्लीट करने वाली बैच को मिलेगा। आइए, इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश करते हैं कि राहुल गांधी की ये योजना देश के लिए कितनी महंगी साबित हो सकती है। 

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क्या घोषणा की राहुल गांधी ने

राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) ने गुरुवार को राजस्थान के बांसवाड़ा में अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान इस प्रकार की घोषणा की। उन्होंने युवाओं से वादा किया कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो रोजगार की गारंटी का अधिकार लागू किया जाएगा, साथ ही खाली पड़े 30 लाख सरकारी पदों को भी भरा जाएगा। युवाओं को गदगद करते हुए उन्होंने कहा कि हर डिप्लोमा व ग्रेजुएट युवा को प्राइवेट-सरकारी सेक्टर में अप्रेंटिसशिप पाने का अधिकार होगा और इस अप्रेंटिसशिप के लिए युवाओं को हर साल एक लाख रुपए ( प्रतिमाह करीब 8,500 रुपए ) दिए जाएंगे। लेकिन सवाल यह है कि भारत जैसे विकासशील देश में यह संभव हो पाएगा और इस प्रकार की घोषणाएं देश का आर्थिक-तंत्र झेल पाएगा। क्या ऐसी घोषणाओं से देश के सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंच सकता है।  

देश का आर्थिक हालचाल कैसा है

इस घोषणा पर विचार करने से पहले हम देश के आर्थिक हालात पर भी गौर फरमा लें। आंकड़ों के अनुसार देश का इस वर्ष का कुल बजट 45.03 लाख करोड़ है। इनमें से सबसे ज्यादा खर्च करीब 37 प्रतिशत सामाजिक सेवाओं, उसके बाद आर्थिक सेवाओं पर 26 प्रतिशत खर्च किया जाता है। विशेष बात यह है कि शिक्षा ( HRD ) व कौशल विकास पर केंद्र सरकार कुल बजट का 7.5 प्रतिशत खर्च करती है। हैरानी की बात यह है कि राहुल गांधी युवाओं को जो एक लाख रुपये देने की बात कर रहे हैं, वह कुल बजट का करीब 11.47 प्रतिशत होगा। उसका कारण यह है कि देश में ग्रेजुएट और डिप्लोमाधारी युवाओं की संख्या करीब 5 करोड़ है। इस हिसाब से यह रकम करीब 5 लाख करोड़ रुपये बनेगी। गौरतलब है कि यहां सिर्फ ग्रेजुएशन पूरा करने वाले स्टूडेंट्स की बात की गई है। यदि इसमें डिप्लोमा होल्डर्स की संख्या जोड़ ली जाए तो यह बजट दोगुने से भी ज्यादा हो सकता है।

वित्तीय वर्ष    कुल बजट (करोड़ रुपए)
2019-20    30.42 लाख करोड़
2020-21    34.50 लाख करोड़
2021-22    39.45 लाख करोड़
2022-23    40.40 लाख करोड़
2023-24    45.03 लाख करोड़ ( भारत का सालाना बजट )

एक्सपर्ट की राय- एफडीआई व घरेलू निवेश बढ़ाया जाए

इस घोषणा पर कोई ‘कमेंट्री’ करने के बजाय हम सीधे एक्सपर्ट से बात कर लेते हैं। देश के सीनियर इक्नोमिस्ट व पॉलिसी एक्सपर्ट आकाश जिंदल से जब हमने बात की तो उनका कहना था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी का वह सम्मान करते हैं। युवा बेरोजगारों को मदद करने की उनकी भावना भी सराहनीय है। लेकिन आज देश में राजकोषीय घाटा ( FisCal Deficit) करीब छह प्रतिशत है। इस घाटे का अर्थ है कि कमाई और खर्च में छह प्रतिशत का फर्क है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार इसे बहुत ज्यादा माना जाता है। अगर सरकार या प्राइवेट कंपनी ग्रेजुएट युवाओं को एक लाख रुपये सालाना देती है तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार क्या प्राइवेट कंपनियों को इसके बदल आर्थिक क्षतिपूर्ति मुहैया कराएगी। ऐसा हुआ तो सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ जाएगा। एक्सपर्ट जिंदल के अनुसार ज्यादा अच्छा यह है कि सत्ता में आने पर वह एफडीआई ( Foreign Direct Investment) व घरेलू निवेश ( Domestic Investment) को देश में लाएं और बढ़ावा दें। ऐसा करने से सभी डिग्री व डिप्लोमा होल्डरों को रोजगार मिल जाएगा। ऐसा होने से उन्हें हर साल एक लाख रुपये से ज्यादा मिलेंगे और ऐसी कमाई उनके पूरे करियर तक चलेगी। 

आर्थिक व सामाजिक ताने-बाने को नुकसान

वर्ष     स्नातक         
2019    3.55 करोड़    
2020    3.85 करोड़    
2021    4.15 करोड़    
2022    4.45 करोड़    
2023    4.75 करोड़ ( UGC के अनुसार हर साल ग्रेजुएट होने वाले स्टूडेंट्स की संख्या )

इस मसले पर हमने एक अन्य सीनिय फाइइनेंसियल प्लानर से बात की। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा कि यह योजना देश व युवाओं के लिए घातक है। आप हर ग्रेजुएट  ( Graduate ) को हर रोज 300 रुपए देकर उसका क्या भला कर लोगे। लेकिन देश की बड़ी आबादी के लिए देश की आर्थिक स्थिति को नुकसान होगा। पहली बात तो यही कि आप प्राइवेट कंपनियों को इसके लिए कैसे मजबूर कर पाओगे? इसके लिए तो आपको कानून लाना होगा। लेकिन कानून लाते हैं तो लाखों छोटी कंपनियां शटर बंद कर देंगी। ऐसा होने से उलटे बेरोजगारी बढ़ जाएगी। दूसरे इससे सामाजिक विषमता भी फैलेगी। कम पढ़े लिखे को अगर आप आर्थिक मदद नहीं दोगे तो वह नाराज हो सकता है। दुख की बात यह है कि कोई भी राजनीतिक दल या नेता भारत की आर्थिक, सामाजिक व बढ़ती जनसंख्या के अनुसार योजना नहीं बना रहा है। यह भविष्य में देश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।  

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