मकर संक्रांति आज, जानें दान, पुण्य और तिल का महत्व, देशभर में कैसे मनाते हैं ये महापर्व

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Pooja Kumari
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मकर संक्रांति आज, जानें दान, पुण्य और तिल का महत्व, देशभर में कैसे मनाते हैं ये महापर्व

BHOPAL. आज (सोमवार, 15 जनवरी) मकर संक्रांति है। ये पर्व सूर्य के मकर राशि में आने पर मनाया जाता है। आज से दक्षिणायन समाप्त हो जाएगा और अब 6 महीनों तक सूर्य उत्तरायण में रहेगा। आज से धीरे-धीरे ठंड कम होने लगेगी और गर्मी बढ़ेगी और दिन बड़ी और रातें छोटी होने लगेंगी। शास्त्रों में बताया गया है कि मकर संक्रांति से देवताओं के दिन की शुरुआत होती है। इस दिन कई शहरों में पतंग उड़ाई जाती है।

मकर संक्रांति से जुड़ी मान्यताएं

मकर संक्रांति सूर्य की स्थिति के आधार पर मनाया जाने वाला पर्व है, बाकी पर्व चंद्र की स्थिति के आधार पर मनाए जाते हैं। इस दिन सूर्य की पूजा के साथ ही तिल, कंबल, मच्छरदानी, खिचड़ी, गुड़ आदि जैसे वस्तुओं का दान करने की परंपरा है। इस त्योहार से जुड़ी कई मान्यता हैं। जानिए मकर संक्रांति से जुड़ी 4 मान्यताएं

पहली मान्यता

जब सूर्य देव शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य और शनि पिता-पुत्र हैं। शनि अपने पिता सूर्य को शत्रु मानता है, लेकिन एक मान्यता ये है कि मकर संक्रांति पर सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने उसके घर जाते हैं। पहली बार जब सूर्य शनि के घर गए थे, तब इनके बीच के मतभेद दूर हो गए थे।

दूसरी मान्यता

राजा भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष नहीं मिला था। पूर्वजों के मोक्ष के लिए देवी गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना था। देवी गंगा को धरती पर लाने का काम राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से किया था। देवी गंगा धरती पर आईं तो मकर संक्रांति पर भागीरथ के पूर्वजों की अस्थियों से गंगा जल स्पर्श हुआ था और सभी पूर्वजों को मोक्ष मिल गया था। इस मान्यता की वजह से मकर संक्रांति पर गंगा नदी में स्नान करने की परंपरा है।

तीसरी मान्यता

मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में इसे देवताओं के दिन की शुरुआत माना जाता है। महाभारत युद्ध के बाद भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे। उस समय माना जाता था कि मकर संक्रांति पर मरने वाले लोगों को मोक्ष मिल जाता है। मोक्ष यानी मरने के बाद आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता है।

चौथी मान्यता

सूर्य के मकर राशि में आने से खरमास खत्म हो जाता है और मांगलिक कार्यों के लिए फिर से शुभ मुहूर्त मिलने लगते हैं। खरमास में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ जैसे मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं, लेकिन मकर संक्रांति के बाद ये शुभ काम फिर से शुरू हो जाएंगे।

माघ साजी

हिमाचल प्रदेश में, स्थानीय लोग माघ साजी को मकर संक्रांति के रूप में मनाते हैं। साजी संक्रांति का स्थानीय नाम है और माघ महीने का नाम है। इस दिन, लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिरों में जाते हैं। इसके अलावा, वे अपने दोस्तों और परिवार के पास जाते हैं और उन्हें चिक्की या खिचड़ी और घी जैसी मिठाई उपहार में देते हैं। बिहार और नेपाल में इसे माघी पर्व या माघी संक्रांति भी कहा जाता है।

बिहू

बिहू पूर्वोत्तर राज्य का प्रमुख त्योहार है, विशेषकर असम में इसकी खास रौनक होती है। असम में इस दिन के साथ ही फसल की कटाई और शादी-ब्याह के शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो जाती है। भोगाली बिहू (माघ बिहू) जनवरी महीने के मध्य में मनाया जाता है।

सवाल- सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायण होना किसे कहते हैं?

जवाब - उज्जैन शासकीय वेधशाला के अधीक्षक डॉ. राजेंद्र प्रकाश गुप्त के मुताबिक, उत्तरायण और दक्षिणायण सूर्य की गति को दर्शाते हैं। 6 महीने सूर्य उत्तरायण और 6 महीने दक्षिणायण रहता है। उत्तरायण का अर्थ है उत्तर की ओर गति। दक्षिणायण का अर्थ है दक्षिण की ओर गति। निरियन गणना के अनुसार 15 जनवरी से सूर्य उत्तर की ओर गति करना शुरू कर देता है, इसे उत्तरायण कहा जाता है। दरअसल, इस दिन पर्व मनाने का संदेश ये है कि अब सूर्य की दिशा बदल गई है और अब दिन धीरे-धीरे बड़े और रातें छोटे होने शुरू हो जाएंगे। ये मौसम में परिवर्तन को भी दर्शाता है।

Q&A

सवाल - मकर संक्रांति कभी 14 और कभी 15 को क्यों आती हैं?

जवाब - डॉ. गुप्त कहते हैं कि मकर संक्रांति सूर्य की गति के आधार पर मनाया जाने वाला एक मात्र पर्व है। पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर गति में हर साल 4 कला का अन्तर रहता है, इसी वजह से मकर संक्रांति की तारीख में बदलाव हो रहा है। सूर्य हर साल करीब 4 कला की देरी से मकर रेखा (मकर राशि) में आता है। साल दर साल ये 4-4 कला बढ़ते रहते हैं। वर्तमान में 14-15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जा रही है, लेकिन पुराने समय में 12 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती थी। स्वामी विवेकानंद का जन्म मकर संक्रांति पर ही हुआ था, उस दिन 12 जनवरी ही थी। अब ये पर्व 14-15 जनवरी को आने लगा है। भविष्य में कुछ सालों बाद मकर संक्रांति 15-16 जनवरी को आने लगेगी।

सवाल - मकर संक्रांति पर नदी स्नान और दान क्यों करना चाहिए?

जवाब - उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा कहते हैं कि मकर संक्राति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। शास्त्रों के अनुसार, पृथ्वी पर यानी इंसानों के एक दिन-रात 24 घंटे के होते हैं, लेकिन देवलोक में एक दिन-रात हमारे 12 महीनों के बराबर होते हैं, यानी 6 माह दिन और 6 माह की रात होती है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही देवताओं का दिन शुरू हो जाता है। देवताओं के दिन की शुरुआत में मकर संक्रांति पर उत्सव मनाया जाता है। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नदी स्नान, दान-पुण्य, पूजा-पाठ और तीर्थ दर्शन करने की परंपरा है। मकर संक्रांति सभी तरह के धर्म-कर्म करने के लिए सबसे अच्छे दिनों में से एक माना जाता है।

सवाल - मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ से जुड़ी मान्यता क्या है?

जवाब - डॉ. राम अरोरा, (एमडी) पूर्व प्रोफेसर, उज्जैन आयुर्वेदिक कॉलेज के मुताबिक, मकर संक्राति के समय शीत ऋतु यानी ठंड का असर काफी अधिक रहता है। इन दिनों में तिल-गुड़ का सेवन करने से हमारी पाचन शक्ति को मदद मिलती है। शरीर का तापमान संतुलित रहता है। गुड़ की मिठास से हमें ग्लूकोस मिलता है, जिससे हमें ऊर्जा मिलती है। ठंड से जुड़ी बीमारियों का सामना करने की शक्ति बढ़ती है। ज्योतिषाचार्य पं. शर्मा के मुताबिक, सफेद तिल और गुड़ सूर्य से संबंधित चीजें हैं। मकर संक्रांति सूर्य पूजा का पर्व है, इसलिए इस दिन सफेद तिल और गुड़ का दान करना चाहिए।

सवाल - मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का क्या महत्व है?

जवाब - ये पर्व ठंड के दिनों में आता है। इन दिनों में सुबह-सुबह धूप में बैठने से ठंड से राहत मिलती है और हमें विटामिन डी भी मिलता है। धूप की वजह से त्वचा संबंधी कई रोग दूर होते हैं। संक्रांति पर पतंग उड़ाने के लिए हम खुली जगह पर धूप में रहते हैं। धूप से हमें स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। इसलिए संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा है।

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