Pitru Paksha 2024: गया में पिंडदान का कितना महत्व? प्रभु राम के अलावा पांडवों से भी जुड़ा है यह धार्मिक स्थल, जानें कैसे

बिहार के गया में पिंडदान को लेकर काफी मान्यता है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि भगवान राम के अलावा महाभारत के पांडव भी इस तीर्थस्थल पर आए थे।

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Raj Singh
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श्राद्ध पक्ष का समय बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पूरी तरह से पितरों को समर्पित होता है। हिंदू धर्म के अनुसार इस पक्ष (Pitru Paksh 2024) में पितरों को पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही आने वाली पीढ़ियों का भी उद्धार होता है। देशभर में कई ऐसी जगहें हैं जहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। इन्हीं में से एक बेहद महत्वपूर्ण जगह बिहार का गया  ( Gaya ) जिला है। 

गया के बारे में शास्त्रों में बहुत कुछ लिखा गया है। उनके अनुसार गया वह स्थान है जहां पिंडदान करने से 108 कुलों और अगली सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। पुराणों में गया को मोक्ष स्थल भी कहा गया है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु पितृदेव के रूप में इस स्थान पर निवास करते हैं। तो चलिए इस लेख में हम आपको गया से जुड़े कुछ रोचक तथ्य बताते हैं। पिंडदान के लिए लोग गया को ही क्यों चुनते हैं? साथ ही हम यह भी बताएंगे कि भगवान राम और पांडवो  का इस स्थान से क्या संबंध है।

गया में पिंडदान करने की क्या है वजह?

पौराणिक कथाओं के अनुसार देश में कुल 55 ऐसे स्थान हैं, जहां पिंडदान का बहुत महत्व है। लेकिन बिहार के गया में पितरों को पिंडदान करने का महत्व अपने आप में खास है। बता दें कि गया बिहार राज्य में स्थित है जो फल्गु नदी के तट पर बसा है। लोग अपने पितरों को पिंडदान करने के लिए इसी नदी पर पहुंचते हैं।

गया में पिंडदान करने की मान्यता है कि जो भी व्यक्ति गया में जाकर पिंडदान करता है, वह हमेशा के लिए पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। इसके बाद उसे श्राद्ध करने की जरूरत नहीं पड़ती।

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गया का संबंध, भगवान राम और पांडवों से जुड़ा

गया में पिंडदान को लेकर एक और मान्यता यह है कि भगवान राम ने भी यहीं पिंडदान किया था। पुराणों के अनुसार, वनवास के दौरान भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ के लिए गया में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया था। राजा राम ने यहीं अपने पिता के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण किया था और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की थी। भगवान राम के अलावा यह भी कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने भी यहां अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया था और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की थी।

इसके महत्व के बारे में एक अन्य पौराणिक कथा में कहा गया है कि गया में गयासुर नाम का एक राक्षस रहता था जो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था और उसने अपनी भक्ति से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया था। यह भी कहा जाता है कि गया के दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

हजारों-लाखों की संख्या में पहुंचते हैं तीर्थयात्री

पितृ पक्ष की अवधि को महालया के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस महालया के दौरान सभी मृत पूर्वज गया पहुंचते हैं, वे मोक्ष और मुक्ति की कामना के साथ गया में रहते हैं। पूर्वज अपने वंशजों के आने का इंतजार करते हैं कि कब उनका वंशज यहां आकर उनके मोक्ष और मुक्ति के लिए पितरों को पिंडदान करेगा। इसी मान्यता के साथ हर साल हजारों-लाखों तीर्थयात्री गया पहुंचते हैं।

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